*इस संसार में अनेकों प्रकार के पंथ , संप्रदाय एवं
धर्म देखे जा सकते हैं , प्रत्येक
धर्म एवं संप्रदाय का अपना अपना नियम अपने व्रत , पर्व , त्यौहार यहां तक कि "नववर्ष" भी अलग होते हैं | जिस प्रकार ईसा (अंग्रेजी), चीन या अरब का कैलेंडर है उसी तरह राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने इन सबसे पहले ही भारतीय कैलेंडर विकसित किया था | इस कैलेंडर की शुरुआत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मानी जाती है | और यही हिन्दुओं का नववर्ष संवतसर होता है | नव वर्ष तभी मनाना सार्थक होता है जब प्रकृति में नवीनता देखने को मिले | जहां संसार के सभी धर्मों के नववर्ष असमय मनाए जाते हैं वहीं हिंदू "नववर्ष संवत्सर" के अवसर पर प्रकृति में नवीनता देखने को मिलती है | वृक्षों में नई कोपले फूटती हैं , खेतों में हरियाली लहलहा रही होती है , फलदार वृक्षों में फूल आ जाते हैं | इसीलिए चैत्र मास को मधुमास भी कहा जाता है | संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है | ऐसी मान्यता है कि आज के दिन ही परमपिता परमात्मा ने सृष्टि का सृजन किया था | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सतयुग का प्रारंभ हुआ और यह सृष्टि गतिमान हुई | जो सृष्टि का पहला दिन है उसी दिन से "नववर्ष" मनाया जाना चाहिए | यही सनातन की मान्यता एवं दिव्यता है | किसी भी
यात्रा को प्रारंभ करने के लिए मनुष्य को शक्ति की आवश्यकता होती है इसीलिए "नववर्ष संवत्सर" के पहले दिन से ही शक्ति आराधना का पर्व "नवरात्र" मनाया जाता है |* *आज संपूर्ण विश्व में भले ही ईसाई नववर्ष ने अपना संपूर्ण प्रभाव जमा लिया हो परंतु अभी भी प्राचीनता में "भारतीय हिन्दू नववर्ष संवतसर" की महत्वपूर्ण भूमिका है | जब संसीर के नये कार्य प्रारम्भ हों तभी नववर्ष मनाना सार्थक होता है |
भारत सहित अन्य देशों में भी आज भी मार्च / अप्रैल से ही वित्तीय वर्ष को प्रारंभ किया जाता है | सरकारी , अर्द्ध सरकारी कार्यालयों में नववर्ष संवत्सर अर्थात अप्रैल से नये वित्तीय वर्ष का प्रारंभ करके लेखा-जोखा प्रारंभ किया जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि नवरात्र मनाने का एक महत्वपूर्ण रहस्य यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक वर्ष की चार संधियां होती है , इसीलिए सनातन हिंदू धर्म में वर्ष भर में चार नवरात्र मनाने की परंपरा है | उनमें से चैत्र व आश्विन माह में पड़ने वाली गोल संधियों में वर्ष के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं | इसका वैज्ञानिक महत्व यह है कि इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक आशंका होती है | ऋतु संधियों में अक्सर सारी बीमारियां बढ़ती है उस समय शरीर को स्वस्थ रखने के लिए , तन मन को निर्मल रखने के लिए मनुष्य को शक्ति की आवश्यकता होती है | उसी शक्ति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य के द्वारा आदिशक्ति की आराधना की जाती है | जिसे निरंतर नौ दिन तक मनाया जाता है और उसे नवरात्र का नाम दिया गया | शक्ति के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं है , इसीलिए सृष्टि के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंतिक नवरात्र प्रारंभ होता है जिसमें नौ दिन तक मनुष्य एवं देव दोनों आदिशक्ति महामाया की आराधना करके जीवन यात्रा के पथ को सुगम होने की प्रार्थना करते हैं |* *सनातन की दिव्यता एवं वैज्ञानिक मान्यता का समावेश है "नववर्ष सम्वतसर" | आप सभी को हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |*