पिछले भाग में आपने पढ़ा ,अवनी कॉलेज में होने वाले वार्षिक उत्सव के लिए मंचन हेतु कहानी लिखने का प्रयास करती हैl परंतु आप कुछ भी लिख नहीं पातीl थक हारकर वह सो जाती है ,सोते समय वह फिर वहीं सपना देखती है । तभी अचानक रात 1:00 बजे उसकी नींद खुल जाती है। सपने के दृश्य से उसे कहानी का सब्जेक्ट सूझ जाता है और वह कहानी लिखना शुरु कर देती है। अब आगे.............................
रात भर कहानी लिखने के कारण भोर मे उठने वाली अवनी सुबह के 9:00 बजे तक सोती रहती है।
"अवनी उठ ,बेटा क्या हुआ? तेरी तबीयत तो ठीक है ना... आज इतनी देर तक सो रही है।" शोभा ने कहा
मां की आवाज सुनकर वह उठती है और मां से समय पूछती है मां के द्वारा समय बताने पर वह हड़बड़ा जाती है और मां से कहती है
" 9:00 बज गए आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं मम्मा, आज तो मैं कॉलेज के लिए लेट हो जाऊंगी"
" मैंने सोचा तेरी तबीयत ठीक नहीं होगी इसीलिए तू इतनी देर तक सो रही है, पहले तो तू कभी इतनी देर तक नहीं सोती थी।"
" हां ,वह कल रात कॉलेज में प्ले के लिए कहानी लिख रही थी। देर से सोई थी ना, इसीलिए नींद ही नहीं खुली। अच्छा अब मैं तैयार होने जा रही हूं ,बाद में बात करती हूं" कह कर अवनी बाथरूम में चली जाती है और शोभा किचन में अवनी के लिए नाश्ता बनाने के लिए चली जाती है ।
"बाय मम्मी "
"नाश्ता तो कर ले"
" नहीं आज बहुत लेट हो गई हूं वही कैंटीन में कुछ खा लूंगी"
" यह लड़की भी ना, खाने पीने का तो होश ही नहीं रहता। जब देखो तब इसकी ट्रेन छुटती रहती है "
अवनी क्लास रूम में पहुंचती है तो क्लास चल रही होती है और जब वह टीचर से अंदर आने की परमिशन मांगती है तो सर उसे देर से आने के लिए डांटते हैं ,और दोबारा ऐसा न करने की हिदायत देकर बैठा देते हैं। क्लास खत्म होने के बाद सभी कैंटीन में इकट्ठे होते हैं।
" क्या यार अवनी ,आज तो तूने हद कर दी, इतनी देर कैसे हो गई तुझे?" शिखा ने कहा
" हां यार ,वह रात भर सो नहीं पाई थी तो सुबह आंख नहीं खुली"
" अच्छा तो रात भर जाकर कहानी लिखी जा रही थी। चल सुना जल्दी से स्टोरी, मैं काफी एक्साइटेड हूं कुछ नया प्ले करने के लिए" शिखा ने कहा
" हां न, पर पेट में चूहे कूद रहे हैं पहले कुछ खा लूं ,सुबह जल्दी जल्दी में नाश्ता भी नहीं कर पाई थी ।"
"हां बाबा हां ,खा ले फिर अपनी कहानी सुना"
नाश्ता करने के बाद अवनी कहानी और डायलॉग सुनाने लगती है, शिखा सब को बुला लेती है ।और सभी कहानी सुनकर अब अपने व्यक्तित्व के अनुसार अपने किरदार का चुनाव करते हैं । सब डायलॉग के रिहर्सल में जुट जाते हैं लीड रोल के लिए अवनी और ध्रुव का चयन होता है। फिर वह दिन भी आ जाता है ,जिस दिन उन्हें अपना प्ले करना होता है। स्टेज पर अवनी ग्रामीण परिधान में एक और बैठी है ,वही ध्रुव भी ग्रामीण प्रधान में स्टेज की दूसरी और बैठा हैं ।
"रूपा मैं तुम्हारे बिना 1 दिन भी नहीं रह सकता। तुमसे दूर रहकर में केवल मौत का आलिंगन कर सकता हूं।"
ध्रुव ने कहा
" मेरी भी यही दशा है विजय तुम बिन मैं जल बिन मछली की बात तड़प कर मर जाऊंगी ।..............परंतु हमें एक दूसरे का सानिध्य पाने का कोई मार्ग नहीं दिखाई पड़ता। विधाता ने अजब रीत बनाई है, इंसान को उसने ऊंची नीची जात में बाटकर बहुत बड़ा अन्याय किया है ।एक ही रंग का खून सभी के रगों में बह रहा ,सभी की संवेदनाएं एक जैसी, सुख दुख का एहसास एक जैसा फिर जन्म के आधार पर हम अछूत कैसे हो गए?"अवनि ने कहा
" नहीं पगली ,यह रिवाज विधाता ने नहीं, स्वार्थी इंसानों ने बनाए हैं। ईश्वर के नजर में सभी एक बराबर है। मैं ऐसे किसी रिवाज को नहीं मानता जो हमें कष्ट दे।"
" परंतु समाज तो मानता है, क्या समाज से लड़कर तुम मुझे अपना पाओगे?"
" बस तुम स्वीकृति दे दो, मैं अभी अपने रक्त से तुम्हारी मांग सजा दूं। तुम्हें मेरे प्रेम पर तनिक भी भरोसा नहीं है"
" है ना ,तभी तो सब लोक लाज मर्यादा छोड़ कर तुम्हारे पास बैठी हूं. पर डर लगता है यह समझ में नहीं स्वीकारेगा"
" कोई बात नहीं, हम यह गांव छोड़कर यहां से बहुत दूर चले जाएंगे, जहां ना तुम्हें कोई जानता हो ना मुझे केवल हम ही एक दूसरे की पहचान होंगे "
"पर मुझे बहुत डर लग रहा है, कल बिरजू ने मुझे यहां देख लिया था। बापू को बताने की धमकी दे रहा था"
" तो बताने दो, मैं जल्द ही तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारे घर आऊंगा"
" कहीं देर ना हो जाए, बिरजू की नियत मुझे ठीक नहीं लग रही थी।ललचाई नजर से मुझे देख रहा था"
" उसकी ये मजाल , उसने तुम्हें छुआ भी तो मैं उसके हाथ पैर तोड़ दूंगा ।बड़ा पंडित बना फिरता है और पीठ पीछे ताक झांक करता फिरता है।"
" ठीक है विजय, अब मैं चलती हूं देर हो जाएगी तो मां लाख सवाल पूछेगी"
रूपा वहां से जाने लगती है थोड़ी दूर चलने पर वह बिरजू आ जाता है और रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता है ,
"क्या बात है, बहुत चमक रही हो ।मना आई रंगरेलियां अपने यार के साथ" बिरजू ने कहा
"दूर हट बिरजू , मुझे घर जाने दे, देर हो रही है।"
" यार के साथ थी तो देर नहीं हो रही थी ,अब नखरे दिखा रही हैं।... जैसे उसे खुश करती है मुझे भी कर दे मैं तेरे रास्ते से हट जाऊंगा"
" छी, कितनी गंदी सोच है तुम्हारी ।तू उसकी बराबरी करेगा, तू तो उसके जूते के बराबर भी नहीं है ।उसने आज तक मुझे छुआ भी नहीं उसका मन बहुत पवित्र है यह तेरे जैसा मैला नहीं है। और बहुत जल्द ही वह मुझसे विवाह करेगा"
" हा...हा.. हा.. सपने देख रही है तू, यह ऊंची जाति वाले तेरे जैसे अछूतों को मजा लेने के लिए फासते हैं ।जब तुझ से मन भर जाएगा, दूध की मक्खी की तरह निकाल फेकेगा अपनी जिंदगी से।"
" नहीं वो ऐसा नहीं है, मेरा रास्ता छोड़ दे नहीं तो मैं शोर मचा कर गांव वालों को कट्ठा कर लूंगी।"
" चल जा, तू भी क्या याद करेगी ।पर कहे देता हूं जिस दिन वह तुझे नोच कर फेंक देगा ना, गिरेगी मेरे ही दामन में। मेरी बात मान ले, रानी बनाकर रखूंगा ।"
"ऐसी नौबत ही नहीं आएगी"
रूपा वहां से चली जाती है। पर एक अनजाना भय उसके जेहन में अपने पैर पसार रहा था ।क्या सच में विजय उससे ब्याह करेगा या बिरजू की बात में कोई दम है ।यह सोचते सोचते वह सो जाती है ।इसी दिन बीतने लगते हैं
एक दिन, दिन ढलते ही रूपा मंदिर के बहाने घर से निकल जाती है। और मंदिर के पास बने तलाब में विजय का इंतजार करती है। तभी उसे विजय आता दिखाई देता है। वह तालाब के पास बैठ जाती है, और विजय उसके नजदीक आ कर उसके बगल में बैठ जाता है ।विजय को अपने करीब बैठा देख वह घबरा जाती है ,क्योंकि इससे पहले विजय उससे काफी दूर बैठ कर बात किया करता था ,ताकि कोई इन पर संदेह न करें ।तभी विजय रूपा से कहता है ......
"रूपा मैं आज तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं "
"क्या लाए हो मेरे लिए"
" दुनिया की सबसे अनमोल चीज, पर यहां नहीं दिखाऊंगा चल मेरे साथ"
विजय रूपा को मंदिर के पीछे जंगलों की तरफ ले जाता है।
क्रमशः