अवनी बरछी में रुक कर ग्रामीणों से उस महिला के बारे में जानकारी एकत्र करना चाहती थी। जिसके लिए उसे किसी घर में पेइंग गेस्ट की तरह कुछ दिन रहना था। अवनी इस गांव में किसी को ना जानती थी ।उसे होटल के मालिक सज्जन प्रतीत हो रहे थे तो उसने उन्हीं से इस बारे में बात करने का निर्णय लिया ।
"नमस्ते अंकल ..मैं अवनी. मुझे आपका कुछ समय चाहिए बात करने के लिए।
" नमस्ते बेटा ,बोलो क्या बात करनी है"
" अंकल मुझे जरूरी काम से इस गांव में कुछ दिनों के लिए रहना है। मैं यहां किसी को जानती भी नहीं यदि आप मुझे यहां रहने के लिए कोई कमरा दिलवा दे तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी । "
"तुम क्या काम करती हो बेटा अभी अभी कॉलेज समाप्त हुआ है ।अब पत्रकारिता करना चाहती हूं जिसके लिए मुझे गांव से जुड़ी खबरें इकट्ठी करनी है ।"
"काम तो अच्छा है चलो देखते हैं, मेरा एक दोस्त है राधेश्याम.. उसका काफी बड़ा मकान है पर अब वह सूना पड़ा रहता है बेटे बड़े होकर पढ़ाई के लिए शहर चले गए। वही नौकरी की शादी के बाद सब वहीं बस गए। एक बेटी है वह भी साल में एकाध बार ही आती है ।चलो उससे बात करते हैं शायद वहां तुम्हारे रहने का इंतजाम हो जाए ।"
"ठीक है अंकल "
"गोलू.... गोलू इधर आ जरा"
" जी मालिक दुकान का ध्यान रखना, मैं थोड़ी देर से आता हूं "
"ठीक है मालिक"
बृजभूषण और अवनी राधेश्याम के घर गए वहां उनसे कुछ दिनरहने के लिये कमरे की बात की।
विरान पड़ा घर वैसे भी राधेश्याम को काटने दौड़ता था इसलिए वह भी सहर्ष तैयार हो गए ।अवनी राधेश्याम के साथ जैसे ही घर के अंदर गई राधेश्याम का 55 वर्षीय नौकर भोला उसे देखकर सहसा चौका, जैसे उसने किसी भूत को देख लिया हो।
" क्या हुआ भोला घबरा क्यों रहे हो? यह मेरी नई किराएदार है, शहर से आई है अखबार के लिए समाचार एकठ्ठा करने कुछ दिन यहीं रहेंगी हमारे साथ ।रुची बिटिया का कमरा साफ कर दो और इनका समान वही रख देना। सुधा.. सुधा कहां हो देखो तो कौन आया है?"
कहते हुए राधेश्याम अपनी पत्नी को ढूंढते हुए रसोई घर की तरफ चले गए और अवनी बैठक में रखे सोफे पर बैठ गई ।सुधा और राधेश्याम अवनी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करके बैठक में आए ।
"नमस्ते आंटी"
" नमस्ते बेटा.. बैठो -बैठो खड़ी क्यों हो गई, क्या नाम है तुम्हारा "
"अवनी "
"बहुत ही प्यारा नाम है..... जब तक तुम यहां रहना चाहती हो रह सकती हो इस वीराने घर में मैं अकेली बोर होती जाती हूं अब तुम्हारे साथ दो चार बातें भी हो जाया करेंगी ।"
सुधा के अपनत्व ने जल्द ही औपचारिकता की दीवारें ढहा दी। वे दोनों आपस में बातें करने लगीं राधेश्याम भी अपने काम में लग गए वही भोला बार-बार अवनी को आश्चर्य से देख रहा था। जैसे वह उसे पहचानता हो या देखा हो उसे कहीं ।अवनी ने रहने का इंतजाम तो कर लिया अब उसका अगला कदम उस महिला के बारे में जानकारी जुटाना था, जिसकी कुछ दिनों पहले जलाकर हत्या कर दी गई थी ।वह कुछ सबूत भी इकट्ठा करना चाह रही थी ताकि वह अपराधियों को सलाखों के पीछे डाल सके। सुबह-सुबह अपनी आदत अनुसार अवनी उगते सूरज को देख रही थी। समूह पक्षियों का चहचहाते हुये दाने की तलाश में गंतव्य की ओर चलायमान था। अवनी प्रकृति के सौंदर्य पान में व्यस्त थी उसकी नजर पौधों को पानी देते हुए भोला पर गई जो बार-बार उसे ही घूर रहा था ।उसकी निगाह मिलते ही वह इधर-उधर देखने लगा अवनी को बोला का व्यवहार थोड़ा अजीब लगा ।लेकिन वह उसे अनदेखा कर अपने कार्य में लग गई। नहा धोकर वह जैसे ही नीचे आई सुधा ने मेज पर नाश्ता लगा दिया था। यह देखकर अवनी को मां की याद आ गई और उसकी आंखें भर आई।
" क्या हुआ बेटा नाश्ता पसंद नहीं है क्या ?उदास क्यों हो" सुधा ने कहा
"ऐसा नहीं है आंटी ,बस मां की याद आ गई वह भी ऐसे ही मेरी तैयार होते ही नाश्ता बना कर रख देती थी।"
" हां तो मुझे भी अपनी मा ही समझ मै भी तो कबसे बेटी के प्यार के लिए तरस रही हूं ।..2 वर्ष हो गए रुचि को आए हुए। सब अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं हम बूढ़ों को कौन याद करें ।"
कहते कहते सुधा की आंखें भी भर आई ,दोनों तरफ ममता का प्रवाह उमड़ पड़ा दोनों एक दूसरे के गले लग गई,
"चलो अब नाश्ता भी कर लो नहीं तो ठंडा हो जाएगा। आलू के परांठे बनाए हैं तुम्हारे लिए, रुचि को बहुत पसंद थे अब तुम्हारी पसंद तो मुझे पता है नहीं, आज यही खा लो कल जो पसंद होगा बता देना वही बना दूंगी।"
" आंटी मुझे भी आलू के पराठे बहुत पसंद है, आइए साथ में खाते हैं"
" भाई बहुत अच्छी खुशबू आ रही है मेरे मुंह में तो पानी आ रहा है ।रोज रोज दलिया खाकर बोर हो गया हूं" राधेश्याम ने घर के अंदर आते ही कहा
"हाथ मत लगाना आलू के पराठे खाओगे तो तुम्हारा शुगर बढ़ जाएगा। तुम्हारे लिए दलिया ही बनी है, वही खाओ।" सुधा ने रोकने का अभिनय करते हुए कहा
" आज बेटी आई है घर में मुझे कोई नहीं रोक सकता आलू के पराठे खाने से "
कहकर राधेश्याम अवनी के बगल में बैठ कर नाश्ता करने लगे
"बेटा तुझे अच्छा तो लग रहा है ना"
" जी अंकल"
" जिस चीज की जरूरत होगी मुझे बता देना मैं भोला से
मंगा दूंगा"
भोला का नाम सुनते ही अवनी की नजर बगीचे की तरफ खुलने वाली खिड़की पर गई। भोला उसे ही देख रहा था। सुधा और राधेश्याम के बीच की नोकझोंक और अपनत्व
में अवनी यह भूल गई कि वह पराए गांव और पराए घर में है।