अभी तक आपने पढ़ा, अवनी एक स्वप्न देखती है फिर वह कॉलेज चली जाती है ।शाम को उसके घर में लड़की वाले उसे देखने आते हैं, जो कि लगभग उसे पसंद ही कर लेते हैं । अवनी और रोहन बगीचे में एक दूसरे से बात करने के लिए जाते हैं जहां रोहन उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर देता है, और अवनी की राय मांगता है। अब आगे.....।
"जी, मुझे भी आप पसंद हो"
अवनी ने शर्माते हुए कहा
"पर मुझे एक बात कहनी है, मैं हमेशा से ऐसा हमसफर चाहती थी जो मुझे समझे मेरे सुख-दुख में मेरा साथ दे। मेरी समस्याओं को अपनी समस्या समझ कर हल करें।"
"बिल्कुल अवनी जी,मैं जिंदगी में हर सुख दुख में आपका साथ दूंगा, हर तरह समस्या निजात दिलाने का प्रयास करूंगा।"
" परंतु रोहन जी समस्या तो मेरे पास अभी ही है ,अब जबकि हम दोनों विवाह बंधने जारहे हैं तो मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूं। मैं नहीं चाहती कि भविष्य में यह बात आपको किसी और से पता चले और आप मुझ पर शक करो।"
" मेरे कॉलेज में एक लड़का पढ़ता है हम दोनों अच्छे दोस्त हैं। मैं ऐसा ही समझती थी, लेकिन एक दिन उसने मुझसे कहा कि वह मुझसे प्यार करता है ,और मुझसे शादी करना चाहता है ।मैंने उसे समझाया कि हम दोनों केवल दोस्त हैं और मैं तुमसे प्यार नहीं करती। मेरी शादी मेरे मम्मी पापा की पसंद से ही होगी l
तो उसने मुझे धमकाया की मेरे सिवा तुम जिससे भी शादी करोगी मैं उसकी जान ले लूंगा। मुझे यह बताने में अच्छा नहीं लग रहा है ,पर आप के अलावा पहले भी एक दो रिश्ते आ चुके हैं परंतु उसकी वजह से किसी के साथ बात ना बन सकी। दोनों रिश्तेदारों से उसने झगड़ा कर लिया था और मेरे बारे में गलत गलत बातें फैला दी ।बस यही डर लगता है
यदि उसे आपके बारे में पता चलेगा तो वह इस बार भी वैसी ही हरकत करेगा यदि आप खुद को मेरी जगह रखेंगे तो आप मेरी बात समझ पाएंगे।..................... आप मैनेज कर लेंगे ना रोहन जी।"
" जी कोशिश करूंगा, मैं उसे समझाने का भी प्रयास करूंगा "रोहन ने कहा।
फिर वे दोनों बातें खत्म करके हाल में आ गए रोहन ने माँ को घर चलने के लिये कहा।
" रोहन बेटा तो आपका इस रिश्ते के बारे में क्या ख्याल है" शोभा ने कहा।
" शाम तक सोच कर बताता हूं आंटी जी", रोहन ने अनमने ढंग से कहा।
फिर वे सभी अपने घर चले जाते हैं वैसे तो रोहन को अवनी पसंद थी पर अपनी जिंदगी में वह किसी तरह की उलझन नहीं चाहता था। वह शांति से अपनी मैरिड लाइफ इंजॉय करना चाहता था। सो उसे अवनी की लाइफ क्रिटिकल लग रही थी। उसने रिश्ते केलिए मना कर दिया। "हेलो ....हेलो रवि जी मुझे बताते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा है पर रोहन अभी शादी नहीं करना चाहता अगर आप कुछ सालों की मोहलत दे दे तो अच्छा रहेगा" रोहन की मां ने कहा
"जी ठीक है, जैसा आप ठीक समझें बहन जी" रवि ने कहा।
"क्या हुआ क्या कहा रोहन की फैमिली ने ,कब तक की शादी की डेट रख रहे हैं। सुभा ने रवि से कहा "
वह अभी कुछ सालों तक शादी नहीं करना चाहते
" ऐसा तो उनकी बातों से लग नहीं रहा था रोहन की मां को तो बहुत जल्दी थी बहू लाने की, ऐसा क्या हो गया ?"
"कुछ नहीं शायद उन्हें यह रिश्ता नहीं करना"
" पर रोहन और अवनी की मुलाकात के पहले तो सभी बहुत खुश नजर आ रहे थे हो न हो यह अवनी का किया धरा हो" रवि ने कहा ।
"अवनी.... इधर आओ "
"आई मम्मी"
" रोहन ने रिश्ते के लिए मना कर दिया ,क्या तुम मुझे बता सकती हो क्यों ?"
"मुझे क्या पता "
"मेरी तरफ देख कर बोलो ,तुमने रोहन से क्या कहा?
"कुछ भी तो नहीं"
" झूठ मत बोलो तुम्हें तो बहुत खुशी हो रही होगी यह जानकर तुम्हारी मुराद जो पूरी हो गई है हर बार की तरह इस बार भी रिश्ता टूट गया ।आखिर तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है "शोभा ने खींझते हुए कहा
"जब आपको पता है कि मुझे शादी नहीं करनी तो क्यों आप लोग मेरी शादी के लिए परेशान रहते हैं"
" हम तेरे मां-बाप हैं, दुश्मन नहीं। हमारे भी कई अरमान है अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखने के ।अब तेरा अपना घर परिवार बस जाए तो हमें भी चैन मिले।"
" क्यों यह मेरा घर परिवार नहीं ,आप लोग मुझे खुद से दूर करना चाहते हैं"।
" ऐसी बात नहीं है बेटा, पर हर किसी को अपना घर तो बसाना पड़ता है, फिर आज तो हम हैं, कल को हम रहे ना रहे, तो जीवन बिताने के लिए जीवनसाथी तो बनाना ही पड़ता है "रवि ने कहा
"पर पापा मैं अभी शादी नहीं करना चाहती "
"लेकिन क्यों कारण भी तो नहीं बताती । तुम किसी और को पसंद करती हो तो बता दो। हम तुम्हारी शादी उसी से करा देंगे"" शोभा ने कहा
" नहीं मां मैं किसी को नहीं चाहती हूं बस मुझे अभी शादी नहीं करनी।"
"यह तो कोई बात ना हुई अवनी, अब बचपना छोड़ दो, और सोच समझकर निर्णय लो ।तुम छोटी नहीं हो "
"जी पापा "पर आप लोग मुझे कुछ समय दीजिए सही समय आने पर मैं सब कुछ आपको बता दूंगी ।"
इसकी बातें तो मेरी समझ से परे है ,ना जाने कैसी पहेली भरी बातें करती है,"
" शोभा छोड़ो इन बातों को रात हो रही है उसे आराम करने दो "।
"बच्ची है, समय के साथ उसे हमारी बातें समझ में आ जाएगी"
खाना खाकर वह कमरे में चली जाती हैं ।अवनी बिस्तर पर लेट तो जाती है, पर उसकी आंखों से नींद कोसों दूर है।
" मैं शादी क्यों नहीं करना चाहती क्या जवाब दूं मैं मम्मी को ,इस प्रश्न का जवाब तो मुझे भी नहीं पता क्या कहूं मैं मुझे इंतजार है अनिरुद्ध का जिसे मैं सपने में देखती हूं। अनिरुद्ध तुम कौन हो कहां हो आखिर मेंरे सपने में तुम क्यों आते हो? वह सपना केवल सपना नहीं हो सकता। नहीं तो हमेशा एक ही सपना क्यों देखतीं।
हे ईश्वर ,आपकी मर्जी आप ही जानो पर मुझे मेरे अनिरुद्ध से मिला दो ।
यह सब सोचते सोचते अवनी की आंख लग जाती है पूर्णिमा की उंजली रोशनी में सारा सामा नहा रहा था। वही नदी के किनारे एक युवक और एक युवती बैठे हुए थे। युवक की उम्र लगभग 23 _24 के आसपास थी वहीं युवती की 18 उन्नीस के आसपास लग रही थी l जहां युवती ग्रामीण वेशभूषा मे थी।
वहीं युवक की पोशाक से वह युवती के समकक्ष नहीं लग रहा था वह संभ्रांत परिवार का प्रतीत हो रहा था 5 फुट 8 इंच की लंबाई गेहुआ रंग सुडौल शरीर वह युवक काफी आकर्षक लग रहा था वहीं युवती का भी रूप अनुपम था सादगी में।
चन्द्रमाके समानआकर्षक लग रही थी, और उसके वस्त्र चंद्रमा में दिखने वाले धब्बे के समान।
दोनों युवक युवती पास में पड़े पत्थर उठाकर नदी के पानी में फेंक रहे थे ।और एक दूसरे को देख रहे थे परंतु दोनों के मध्य कोई बात नहीं हो रही थी। हाव भाव से वह दोनों ही चिंतित नजर आ रहे थे। फिर धुंधला सा छा जाता है फिर वह युवती एक पेड़ पर बंधी है। उसके चारों ओर आग जल ही है ।वह मदद के लिए अनिरुद्ध..... अनिरुद्ध की आवाज लगा रही है। तभी वहां वहीं युवक आ जाता है और वह उसे बचाने के लिए आग में कूद जाता है। उसकी रस्सी खोलने लगता है ।तभी अचानक से वहां कुछ गुन्डे आ जाते हैं ,और वह उसी युवक को खींचकर दूसरे पेड़ से बांध देते हैं। वह युवती पुनः चीख पड़ती है।
" अनिरुद्ध....... अनिरुद्ध ,छोड़ दो अनिरुद्ध को "।
और इसी चीख के साथ अवनी की नींद खुल जाती है। "फिर वही सपना, अनिरुद्ध तुम कौन हो? कहां हो?
मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा ,पर ना जाने क्यों मेरी सांसे सिर्फ तुम्हारे लिए ही चल रही है। यदि तुम मुझे नहीं मिले तो मैं सारी उम्र अविवाहित रह जाऊंगी, और अपने प्राण त्याग दूंगी।
" हे ईश्वर मैं तुम्हारे खेल को नहीं समझ सकती ।आखिर मुझे इस तरह के सपने बार-बार क्यों आते हैं ।मैं बस इतना जानती हूं कि मुझे मेरे अनिरुद्ध से मिला दो।
ऐसे सोचते हुए वह अपने दैनिक कार्यों में लग जाती है।
क्रमशः