भोला ने अवनी को अतीत की कुछ घटनाएं बताना प्रारंभ कर दी
" गरीब घर की बेटी थी। बेचारी न जानेकैसे ठाकुर के चंगुल में फंस गई। उसकी कुछ ख्वाहिशों को पूरी न करने के कारण किसी बहाने से ठाकुर ने उसे डायन घोषित कर दिया। धीरे धीरे लोग उससे दूरियां बनाने लगे, फिर एक दिन वह लकड़ियों के ढेर पर उसे खड़ा कर जलाने ही जा रहा था तभी एक लड़का वहां पुलिस वालों के साथ आया। वह उसे बचा कर वहां से ले गया।........ कुछ दिनों तक दोनों गांव में दिखाई नहीं दिये ,पर न जाने कैसे ठाकुर को दोनों के ठिकाने का पता लग गया । वह उन दोनों को पकड़ लेता है और दोनों को ही पेड़ से बांधकर जला देता है। तबसे इन जालिमों का कहर जारी है न जाने कब इनकी नजर किस पर पड़ जाए ।इनकी बात मान गए तो अच्छा वरना सारे गांव में बेइज्जत कर मौत के घाट उतार देते हैं ।"
भोला की बातें सुन अवनी सोच में पड़ जाती है कि कहीं यह घटना मेरे पिछले जन्म की तो नहीं,जिसे मै अपने सपनों में देखती हूँ ।........ वह लड़का अनिरुद्ध तो नहीं। ऊपर वाले तेरे खेल भी निराले हैं जिसे समझना सबके बस की बात नहीं। शायद तूने मुझ पर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए ही मुझे दूसरा जन्म दिया है जब तक मैं गुनाहगारों को सजाना दिला दूं मैं चैन से नहीं बैठूंगी।...........
यदि मैंने दूसरा जन्म लिया है तो अनिरुद्ध भी जरूर कहीं न कहीं होगा ईश्वर तेरी मर्जी अब तू ही जाने। जन्मों के बिछड़े प्रेमियों को न जाने तू कब मिलाएगा ।"
"क्या सोच रही हो बेटी"
" कुछ नहीं काका......... बस इन दरिंदों के पाप का घड़ा भर गया है जल्द ही यह सलाखों के पीछे होंगे ।"
अवनी, दीपू के साथ मंदिर जाती है जिसे देखते ही उसके मन में सपने में दिखाई देने वाले मंदिर का अक्स उभर आता है जिसमें वर्तमान में कुछ बदलाव आ चुका था। वह मंदिर में ईश्वर से अपने कार्य में सफलता पाने की प्रार्थना करती है मंदिर की सीढ़ियां उतरकर वह जैसे ही आगे बढ़ने को होती है तभी कुछ नकाबपोश गुंडे उसे घेर कर खड़े हो जाते हैंl तभी दीपू एक गुंडे को धक्का देकर आगे बढ़ने लगता है ,लेकिन वह गुंडों द्वारा दबोच लिया जाता हैl
"क्यों रे पिद्दी उस लड़की के दम पर इतना उछल रहा है, नाजुक सी कली है चुटकियो में मसल कर रख देंगे।" "छोड़ दो मुझे वरना बहुत बुरा होगा "
"अच्छा तुम हमें मारोगे."... कह कर भी सभी जोर जोर से हंसने लगते हैं। अवनी दीपू को छुड़ाने का प्रयास करती है। तभी उनमें से एक उसका हाथ मरोड़ देता है और अवनी को खींचकर पास ही खड़ी गाड़ी के पास ले जाने लगता है। यह सब देखकर वहां भीड़ इकट्ठी हो जाती है, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आता। तभी भीड़ से एक युवक निकलता है उसे देखकर अवनी चौक जाती है वह उन गुंडों से भीड़ जाता है। कुछ देर तक सभी में हाथापाई होती है लेकिन गुंडों की संख्या ज्यादा होने के कारण वे उन पर भारी पड़ जाते हैं तभी एक और युवक उन लोगों से गिर जाता है फिर चारों मिलकर गुंडों को खूब अच्छे से प्रसाद खिला कर भगा देते हैं ।
"थैंक्यू पर तुम यहां कैसे "
"अवनी मैंने तुम्हारा साथ न छोड़ने का वचन लिया है तो मुझे तो यहां होना ही था।"
" आपको भी बहुत-बहुत धन्यवाद हमारी मदद करने के लिए। वैसे आप यहां कैसे?" ध्रुव ने अनिल से पूछा
"बस किसी का पीछा करते करते यहां तक आ गया" अवनी उन दोनों को अचानक से वहां देख कर सोच में पड़ जाती है क्या यह दोनों मेरे पीछे-पीछे यहां तक चले आए हैं ?ध्रुव का तो समझ में आता है ,वह मेरा दोस्त है। पर यह यहां क्यों ।
"क्या हुआ अवनी क्या सोचने लगी "ध्रुव ने कहा
"कुछ नहीं चलो उधर पेड़ के नीचे बैठ कर बात करते हैं। चारों पेड़ की छांव में बैठ जाते हैं अवनी अनिल के अचानक से यहां पहुंच जाने का कारण समझ नहीं पाती लेकिन उसने पूछने में भी संकोच करती है ।अनिल स्नेहिल नेत्रों से अवनी की तरफ देखे जा रहा था ,वही अवनी अनिल से नजरें चुराने का प्रयास कर रही थी।
" दीदी आप इन दोनों को जानती हैं" दीपू ने खामोशी तोड़ते हुए कहा
"हां दीपू यह ध्रुव है हम दोनों ने कालेज साथ साथ किया है। इनका नाम तो मुझे नहीं पता पर हम लोग जयपुर टूर में एक साथ थे ।"
"भैया आप ही अपना नाम बता दो "
"अनिल और तुम्हारा "
"दीपू ,आप लोग नहीं आते तो हम उन गुंडों से लड़ नहीं पाते"
" पर अब हम आ गए हैं तो तुम लोग अकेले नहीं हो हम भी तुम्हारे साथ हैं कुसुम को न्याय जरूर मिलेगा "अनिल ने कहा ।
"ध्रुव तुम सब के साथ वापस नहीं गए थे, तो अभी तक कहां थे ?"
"बस यहीं होटल में रुका था ।"
"वैसे आप यहां किसी काम से आए थे या आपका यहां घर है "ध्रुव ने अनिल से पूछा।
" नहीं मैं यहां का नहीं हूं बस कुछ अनसुलझी पहेली को सुलझाने यहां चला आया "
तो सुलझ गई आपकी पहेलियां "
"कुछ हद तक बाकी की पहेलियां सुलझाने के लिए मुझे किसी के साथ की आवश्यकता है ,क्या आप सब मेरा साथ दोगे ?"
"जी जरूर हमसे जो बन पड़ेगा, पर पहले पहेली तो पता चले "ध्रुव ने कहा ।
"समय आने पर बता दूंगा "
"दीपू हमें जुलूस के लिए देर हो रही है ,अब हमें चलना चाहिए। "अवनी ने उठते हुए कहा
" रुको अवनी तुमने मुझसे नहीं पूछा कि मैं यहां क्यों आया हूं "
"होगा कोई काम मुझे इस से क्या लेना देना। मुझे अजनबी यों से बात करने की आदत नहीं है"
यह सुनकर अनिल हंसने लगा
"क्या तुम सच कह रही हो यह गांव यहां के लोग यहां का दर्द क्या यह सब अजनबी नहीं। फिर क्यों यहां आ गई अजनबियों के लिए लड़नेl"
" हां ये सब अजनबी नहीं , न हीं इनका दर्द मेरे लिए अजनबी है, जब से होश संभाला है रोज जीती हूँ इस दर्द को।" अवनी ने चीखते हुए कहा
" क्या इस दर्द में तुम अकेले होती हो" अनिल ने अवनी की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हुए कहा
"क्या मतलब आपका"
" क्या तुम्हारे साथ कोई और नहीं जलता इस दर्द से"
अवनी अनिल के द्वारा पूछे गए इन प्रश्नों से चौक जाती है। दीपू और ध्रुव भी इन दोनों की बातों को समझ नहीं पाते।
" अवनी एक बार अपने दिल से पूछो क्या उसे भी लगता है कि मैं अजनबी हूं ।खैर अभी हमें रैली के लिए चलना चाहिए शाम को इस विषय पर बात करेंगे ।"
यह कह कर अनिल आगे बढ़ जाता है। अवनी उसकी तरफ स्वयं के आकर्षण को महसूस करती है ,परंतु उससे कुछ भी याद ना होने के कारण कुछ समझ नहीं पाती। सभी रैली के लिए रवाना हो जाते हैं ध्रुव और अनिल अंगरक्षक के भाँति अवनी के आस-पास रहते हैं। इधर रतन सिंह अपने गुंडों के खाली हाथ लौट आने से बौखला जाता है। वह गांव में फैले विद्रोह को दबाने के लिए गांव के कुछ खास लोगों को धमकाता है ताकि वह सभी ग्रामीणों पर विशेष दबाव बना सके और लोगों में जमीदार का खौफ पहले जैसा हो जाए।
" क्यों रे कलुआ आजकल ज्यादा चर्बी जम गई है तेरे देह में, मालिक के विरोध में आजकल खूब नारे लगाए जा रहे हैं। वह कल कि आई छोकरी सब कुछ हो गई तुम लोगों के लिए। पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करते समझा देना गांव वालों को।..... अगर अब कोई मालिक के खिलाफ खड़ा हुआ तो किसी की बहू बेटी सलामत ना रहेगी। बाकी तुम लोग खुद ही समझदार हो" रतन सिंह के गुंडों ने गांव के ग्रामीण को धमकाते हुए कहा
" रावण कितना भी बलशाली हो उसकी लंका भी जलती है और उसका अंत भी होता है। जाकर कह देना रतन सिंह से अब उसके पाप का घड़ा भर गया है जल्दी ही उसका साम्राज्य समाप्त होने वाला है। हमें डराने की जगह खुद की सुरक्षा की तैयारी कर ले" कालू ने गुंडे से कहा
" इंस्पेक्टर साहब आप रतन सिंह के खिलाफ रिपोर्ट क्यों नहीं लिखते ।आप का काम मुजरिमों को सजा दिलाना है उनका साथ देना नहीं।" अवनी ने थाने में मौजूद इंस्पेक्टर से कहा
" कोई सबूत है तुम लोगों के पास उनके खिलाफ या खाली पीली हमारा और अपना समय खराब कर रहे हो" "इतनी बड़ी भीड़ आपके सामने उसके खिलाफ खड़ी है। और क्या सबूत चाहिए आपको "
"अभी भीड़ को यहाँ से लेकर जाओ मैं छानबीन करूंगा यदि मुझे कुछ सबूत मिला तो रिपोर्ट लिख लूंगा तुम लोगों की।"
" स्पेक्टर आप इंसान है या हैवान, कुसुम की तरह न जाने कितनों को लील गया यह राक्षस और आपको कुछ भी दिखाई नहीं देता।"
" ओ मैडम जी अपनी हद में रह कर बात कीजिए वरना मैं आपको भी अंदर कर सकता हूं"
" कर दीजिए मुझे भी और इस भीड़ को भी शायद तभी प्रशासन की आंख खुले।
" अभी आप जाइए यहां से देखता हूं हम क्या कर सकते हैं ।और रोज रोज यह थाने के सामने तमाशा ना लगाया करें हमारा काम बाधित होता है।"
" कौन सा काम मुजरिमों को बचाने का या नोट समेटने का"
"ओये लड़की अपनी हद में रह कर बात कर"वरना "अवनी चलो यहां से यहां हमें न्याय नहीं मिलने वाला अब हमें जिला स्तर पर शिकायत करनी होगी ।जब ऊपर से आदेश आएगा तभी इनके हाथ पैर डोलेंगे "
कह कर ध्रुव अवनी को थाने से बाहर ले आता है
बाहर कुसुम की मां व दीपू का चेहरा देखकर अवनी मायूस हो जाती है। हताश हो कर सभी वापस अपने अपने घर चले जाते हैं ।अनिल ,ध्रुव, अवनी सभी दीपू के घर में रुक जाते हैं।तभी कुसुम की मां सभी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने के लिए रसोई में चली जाती है।
क्रमशः