हफ्ते भर जयपुर घूमने के बाद सभी वापस जाने का निर्णय लेते हैं तभी मयंक सुबह का पेपर पढ़ते हुए अवनी के रूम में आ जाता है
"अवनी आज का समाचार पढ़ा तुमने?"
नहीं, क्यों? कोई खास बातहै"
" हां यार पास के ही एक गांव में गांव के कुछ लोगों ने एक महिला को डायन करार देकर नगर के चारों ओर निर्वस्त्र घुमाया और अंत में पेड़ से बांधकर आग लगा कर मार डाला।"
"सच में!....... बहुत ही घृणित काम है यह तो देखूं जरा कहां की घटना है यह "
यह कहकर अवनी अखबार पढ़ने लग जाती है
" यह तो यहां से 20 किलोमीटर दूर बरछी(काल्पनिक) नामक गांव की घटना है"
" कितने निर्दई होते हैं लोग कैसे किसी को ऐसे प्रताड़ित और अपमानित कर सकते हैं ।उनकी आत्मा तक नहीं काँपती उन्हें किसी बात का भय नहीं होता । आसपास लोग मूक दर्शक बनकर तमाशा देखते रह जाते हैं। कुछ तो ऐसी घटनाओं को कैमरे में कैद कर लेते हैं ,ताकि भविष्य में वह इसे देखकर के मजे ले सके। पर सच पूछो तो... सही मायने में ऐसे लोग सिर्फ नपुसंक और कायर होते हैं अगर गांव के लोग हिम्मत दिखाते तो शायद उस महिला को बचाया जा सकता थाl"
"हां तुम सही कह रही हो "
"अपराधियों को सजा नहीं हुई ?"
"नहीं, न अवनी गांव के किसी भी व्यक्ति ने अपराधियों के खिलाफ बयान नहीं दिया ।पुलिस शक के बिना पर किसे ले जाए सारा गांव तो जेल में नहीं रख सकती है ना "
"ऐसे लोग अगर निडर होकर घूमते रहे तो आगे भी ऐसी ही घटनाओं को अंजाम देंगे "
"हां यह तो सच है पर हम कर भी क्या सकते हैं। चलो छोड़ो यह सब बातें और सब लोग पैकिंग कर लो कल का रिजर्वेशन है हमारा हमें वापस निकलना है।"
"हां..... कल सब वापस जा रहे हो पर मैं नहीं जा रही"
"क्यों ?तुम अकेले यहां क्या करोगी "
"मैं तब तक नहीं जा सकती मयंक, जब तक कि मैं उन अपराधियों को सजा न दिला दूं। कल मैं बरछी गांव जाऊंगी ।"
"तुम क्या बोल रही हो तुम्हें पता है ,तुम कैसे उन्हें सजा दिला पाओगी। मुझे भी इस घटना के लिए बहुत बुरा लग रहा है परंतु हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। इसलिए तुम्हारे रुकने का भी कोई मतलब नहीं है।"
""मैं नहीं जा सकती मयंक यदि आज मैं यहां से चली गई तो मेरी आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करेगी। मैं जी कर भी जी न पाऊंगी ।....प्लीज मयंक तुम सब जाओ मैं दो-चार दिनों में ही वापस आ जाऊंगी मम्मी पापा को बता देना कि मैं कही घूम रही हूंl"
"ठीक है जैसा तुम समझो तुम्हारे आगे तो कभी किसी कि ना चली है ,कहो तो हम सब चलते हैं साथ में।"
" नहीं मयंक मैं अकेली ही जाऊंगी, मेरे झंझट में तुम सब क्यों परेशान होगे"
" कर दिया न एक पल में पराया, वैसे भी हम तुम्हारे होते ही कौन हैं ?जब तुम्हें ध्रुव की भावनाओं की कदर नहीं तो हम किस खेत की मूली है ।अवनी तुम इतनी कठोर क्यों हो? क्यों तुम सब कुछ देख कर अनदेखा कर रही हो।....
एक बार ठंडे दिमाग से सोचना कहीं तुम ध्रुव के साथ गलत तो नहीं कर रही होl"
"मयंक प्लीज मुझे समझने की कोशिश करो समय आने पर मैं तुम्हें सब कुछ बता दूंगी मैं गलत नहीं हूं। पर मैं अपनी उन भावना का क्या करूं जो कि बचपन से किसी के साथ जुड़ चुकी है ।
"अच्छा मैं चलता हूं बाकी सब को इन्फॉर्म कर दूँ।"
"जाओ पर मेरा टिकट कैंसिल करवा देना..."........
"ध्रुव मैं तुम्हें कैसे समझाऊं मुझे भी तुम्हें इनकार करते समय तकलीफ होती है मैं जानती हूं कि अपने प्यार को ना पाना कितना दर्द भरा होता है ।वर्षों से मैं इसी तरह से तड़प रही हूं, पर विधाता ने न जाने क्या लिख रखा है मेरी किस्मत में। मेरी मंजिल का तो मुझे भी पता नहीं है, यह मुझे किस ओर ले जाएगी ।तुम्हें मुझे भूलना होगा ध्रुव तुम्हें अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना होगा। फिलहाल अभी मैं बरछी जाऊंगी जब से यह खबर पढी है। ऐसा लगता है जैसे वह सब घटनाएं मेरे साथ ही घटी हों .....जैसे मुझे ही आग में जलाकर मार डाला गया हो ।
जब तक मैंअपराधियों को सजा ना दिला दूं तब तक मैं चैन से नहीं बैठूंगी। आग से जलने का दर्द मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है ।भले ही सपने में ....खुद को जलते मैंने देखा है। मुझे माफ कर देना ध्रुव मैं तुम्हें बिना बताए ही जा रही हूं । तुम हमेशा खुश रहना ,ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना हैl