अवंतिका नियमित रूप से हवेली में काम करने लगी ।उसे नवप्रसूता और नवजात से दूर रखा जाता लेकिन उसके मन में नवजात को देखने की उत्सुकता बलवती होती जा रही थी ।हरिसिंह भी अवंतिका के रूप सौंदर्य से मोहित होकर उसके काम करने के दौरान उसके रूप सौंदर्य का पान करता रहता।
एक दिन परिवार की औरतें किसी विशेष पूजन के लिए घर के पूजा घर में एकत्रित थी नवजात अपने कमरे में सो रहा था। अवंतिका बैठक की सफाई कर रही थी। तभी उसे अचानक से नवजात कि रोने की आवाज सुनाई पड़ी। उसे ठकुराइन की हिदायतें याद थी इस वजह से वह कमरे के अंदर नहीं जा रही थी। उसने कमरे के बाहर से ही घर की महिलाओं को आवाज दी ,लेकिन सभी पूजा कक्ष में थी और उसकी आवाज नहीं सुन सकीं ।अवंतिका से उस बालक का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कमरे में प्रवेश करके बालक को अपनी गोद में उठा लिया । उसने पहली बार किसी नवजात को गोद में उठाया था ।
मासूम चेहरा, घुंघराले बाल, नन्हें-नन्हें हाथ, पैर देखकरवह भूल गइ कि ठकुराइन ने उसे बालक को छूने से मना किया है। वह उससे वहीं पर लेकर बैठ गई उसे याद न रहा कितनी देर हो गई तभी ठकुरानी और नवजात की मां ने कमरे में प्रवेश किया बालक को अवंतिका के गोद में देखकर दोनों क्रोध से आग बबूला हो गई।
" तुझे मना किया था ना कि इस कमरे में नहीं आना" ठकुराइन ने आवेशित होते हुए कहा ।ठकुराइन की आवाज सुनकर अवंतिका डरकर बालक को बिस्तर पर लिटा कर के एक किनारे खड़ी हो गई। उसके दोनों हाथ बंधे हुए नजरे झुकीथी वो थरथर कांप रही थी ।
"रानी सा कुंवर बड़ी देर से रो रहे थे, मैं बड़ी देर से आवाज दे रही थी किसी ने नहीं सुना ।"अवंतिका ने डरते डरते कहा
" चल निकल यहां से दोबारा इस कमरे में पैर रखा तो तेरा इस घर से दाना पानी उठ जाएगा" ठकुराइन ने क्रोध से कहा
अवंतिका शेर के पंजे से बचकर निकले हुए हिरण की भांति वहां से भागी और हवेली से बाहर जाकर रुकी। दौड़ने से उसकी धड़कने तेज हो गई और वह डर के मारे हाफ भी रही थी। जब वह कुछ सैंयत हुई। तब उसने नजर उठा कर देखा तो सामने ही थोड़ी दूर पर एक लड़का उससे इस तरह भयभीत होने का कारण जानना चाह रहा था। वह दूर से ही उसे देख रहा था परंतु संकोचवशवह उससे कुछ पूछ नहीं पा रहा था ।उसे अपनी ओर इस तरह से देखता देख अवन्तिका घबराकर पुनः हवेली मे चली जाती है ।
अवन्तिका रोज हवेली में काम करने आती, जाती तब वह लडका उसे रोज देखता था। धीरे धीरे अवन्तिका को उसका उसे यूं देखना अच्छा लगने लगा था ।कभी कभी वह भी उसे कनखियों से देखकर मुस्कुरा देती ।
इधर ठाकुर भी अवन्तिका के सौंदर्य पान करने को उतावला हुआ जाता था परन्तु उसे अवसर नहीं मिलरहा था ।उसके मंसूबो से अवन्तिका भीभलीभांति परचित थी परन्तु हवेली में काम करना उसकी मजबूरी थी ।
एक दिन हवेली के सभी सद्स्य पास वाले मंदिर मे जारहे थे ।तभी अवन्तिका काम करने के लिये वहां आ गई ।
"ए लडकी हम कुलदेवता के पूजन को जा रहें हैं।एक दो घंटे लग जायेगें तब तक सारी हवेली साफ कर देना " ठकुराइन ने कहा ।
"जी रानी साहिबा" ।
अवन्तिका हवेली की सफाई में लग जाती है ,तभी ठाकुर हरिसिंह ,पूजा से किसी जरूरी काम का बहाना करके घर आ जाता है ।वह अवन्तिका के अकेलेपन का फायदा उठानें की नियत से पीछे से उसका हांथ पकड लेता है ।
अवन्तिका ठाकुर की इस हरकत से हैरान हो जाती है व उससे छूटने का प्रयास करती है ।
" मेरा हाँथ छोडिये मालिक ये क्या कर रहें हैं आप ,आप को ऐसी हरकत शोभा नही देती ।"
"मैने छोडने के नही पकडा है तेरा हाथ ,तुझे देखते ही मेरे तनबदन मे आग लग जाती है ।मेरी प्यास तू ही बुझा सकती है । "ऐसा कहकर वह मर्यादा की सीमा लाँघने का प्रयास करने लगता है ।
अवन्तिका के आखों मे आसूँ आ जातें हैं ।वह हरिसिंह की पकड से छूटने का भरसक प्रयत्न करती है ।परन्तु वह विफल रहती है ।स्वयं का बचाव करने के दौरना उसके हाँथ एक फूलदान लगता है जिससे वह ठाकुर पर प्रहार करके स्वयं को बचा लेती है ।भागकर हवेली से बाहर चली जाती है ।अवन्तिका को इसतरह भागता देख वह युवक अनिष्ट की आशंका से घबरा जाता है ।
इस घटना के बाद अवन्तिका हवेली आना बंद कर देती है ।इधर मुह से शिकार छूट जाने से हरिसिंह तिलमिला उठता है वह उसे सबक सिखाने का अवसर मे.रहता ।
कुछ दिनो बाद नवजात की किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो जाती है । सारी हवेली में कोहराम मच जाता है।
"मना किया था कुलच्छनी को मेरे पोते को ना छुये ।खा लिया उसे, डायन थी वह मेरा पोते पर जादूटोना करके भाग गई वह ।इसीलिए काम पर आना भी बंद कर दिया डायन ने "।एसे तीखे वचनो से ठकुराईन अवन्तिका पर दोषारोपण करने लगी ।
पुत्र के अंतिम संस्कार करने के बाद ठाकुर ने अवन्तिका का जीना मुहाल कर दिया ।एकदिन वह अवन्तिका को डायन कहकर बीच चौराहे पर जलाने जा रहा था ।तभी वह युवक आकर अवन्तिका को छुडाकर पास के जंगल मे ले गया वहीं एक नदी के किनारे दोनो बैठे थे पर दोनो ही बात करने मे संकोच कर रहे थे ।
"तुम्हारा नाम क्या है"?
अवन्तिका ,और तुम्हारा ?
अनिरुद्ध ,
"मुझें बचाकर तुमने ठाकुर से बैर मोल ले लिया है "
"मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ "
"क्यों ?एक अजनबी के लिये इतनी परेशानी क्यों मोल ले रहे हो।"
"क्यों ........क्यों की मै तुमसे प्यार करता हूँ । क्या तुम मुझसे शादी करोगी ।"
अनिरुद्ध के इस प्रश्न पर अवन्तिका कुछ पल स्तब्ध रह जाती है फिर अपनी मौन स्वीकृति दे देतीं है ।वो दोनो पहाडी पर स्थित मंदिर मे जाते हैं ।अवनी को मंदिर में खडा करके अनिरुद्ध विवाह हेतु सिंदूर,मंगलसूत्र लेने चला जाता है ।तभी ठाकुर लठैत मंदिर से अवनी को अगवा कर के ले जातें है और जंगल मे स्थित पेड में बांध देते हैं।
इधर अनिरुद्ध जब मंदिर मे अवन्तिका को नहीं पाता तो वह घबडाजाता है ,वह अवन्तिका को चारो तरफ खोजने लगता है ।तभी जंगलमे अवन्तिका पेड में बंधी दिखाई देती है ।वह उसे छुडाने जाता है तभी ठाकुर और उसके साथी उसे भी पेड से बांधकर उनपर केरोसिन छिडक कर आग लगा देतें हैं ।
दोनो ही दर्द से चीखते हुये एकदूसरे का नाम लेकर प्राणत्याग देते है।
इतना दृश्य देखने के बाद अनिल व अवनी की आखें खुल जाती हैं ।दोनो के मध्य कुछ कहने सुनने को शेष नहीं बचता दोनो एक दूसरे के गले लग कर.जनमो के दर्द को महसूसकरके रोतें हैं ।
अब इन आखों मे आसूं नही आने दूगां मैं अब रोने की बारी पापियों की है ।
अनिल अवनी के आखें पोछते हुये कहता है।