"तो राजू अब कल आप हमें कहां घुमा रहे हैं ?"अलका ने बस से उतरते हुए कहा।
"जयपुर में देखने के लिए अभी कई स्थान बचे हुए हैं
जल महल ,नाहरगढ़, रामबाग पैलेस ,रायगढ़ किला, नाहर दुर्ग, जंतर मंतर यह सब यहां के खास दर्शनीय स्थल है। अब आप लोग जहां पहले चलना चाहो कल वही चलते हैं" राजू ने कहा।
"जंतर मंतर तो बहुत ही आकर्षक स्थान है ,मैंने इसके बारे में गूगल पर सर्च किया था यहां पर खगोलीय घटनाओं अध्ययन किया जाता था, है ना राजू "विकी ने कहा
"जी हां "
"ठीक है तो कल पहले हम जंतर मंतर चलते हैं उसके बाद उसके आसपास इलाकों में घूम लेंगे "
"ठीक है, आप सभी समय पर तैयार रहिएगा ,शुभ रात्रि" कहकर राजू अपने घर की तरफ चला गयाl अगली सुबह सभी जंतर-मंतर पहुंच गए ।वहां पर पहुंचकर राजू ने उन्हें जंतर मंतर का इतिहास बताया.......
"यह सवाई जयसिंह द्वारा 1724 से 17 34 में निर्मित खगोलीय वेधशाला है इस बेड शाला में 14 प्रमुख यंत्र है जोकि समय मापने, ग्रहण की स्थिति ,किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने ,ग्रहो की भौगोलिक स्थिति जानने में सहायक हैं ।यह यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में भी सम्मिलित हैं ।282 साल पहले लकड़ी, चूने, पत्थर और धातु से निर्मित यंत्रों के माध्यम से खगोलीय घटनाओं के अध्ययन की विधियों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है ।इन्हीं यंत्रों की गणना के आधार पर जयपुर का पंचांग आज भी प्रकाशित होता है। यहां के यंत्रों में जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र ,सम्राट यंत्र सबसे प्रसिद्ध यंत्र हैं। चलिए सब क्रमशः मैं आपको दिखाता हूं ।"
सम्राट यंत्र ,नाड़ी वलय यंत्र, ध्रुवपट्टीका यंत्र ,लघु जयप्रकाश यंत्र, जय प्रकाश यंत्र ,सम्राट यंत्र, लघु सम्राट यंत्र ,राशि वलययंत्र ,चक्र यंत्र, राम यंत्र, दक्षिणोदक भित्ति यंत्र ,दिशा यंत्र ,उन्नतांश यंत्र राजू ने सभी को यह सभी यंत्र दिखाएं। जिसे देखकर सभी के मन में अपनी प्राचीन संस्कृतिऔर ऐतिहासिक धरोहरों पर गर्व महसूस हुआ। बात-बात पर विदेशियों को ज्ञान विज्ञान में आगे समझने वाले यंगस्टर्स को जंतर मंतर से कई नई जानकारियां मिली।
जंतर मित्र घूमने के बाद सभी नाहरगढ़, रामबाग पैलेस रायगढ़ किला ,नाहर दुर्ग इत्यादि दर्शन स्थल देखने गये । अंत में सभी जलमहल देखने गए।

जल महल जयपुर के मानसागर झील के मध्य स्थित ऐतिहासिक महल है। अरावली पहाड़ियों के गर्भ में स्थित यह महल झील के बीचो बीच स्थित होने के कारण "आई बाल" भी कहा जाता है। स्माल का निर्माण सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ के बाद रानी और पंडितों के स्नान के लिए करवाया था राजा इस महल को अपनी रानी के साथ खास वक्त बिताने में इस्तेमाल करते थे। तपते रेगिस्तान के बीच बने इस महल में गर्मी नहीं लगती ।इस महल से पहाड़ और झील का खूबसूरत नजारा भी देखा जा सकता है। चांदनी रात में झील के पानी में इस महल का नजारा काफी आकर्षक होता है। वह तरह-तरह के वृक्ष और आकर्षक ।पेड़ पौधे भी लगे हुए थे अवनी प्राकृतिक सुंदरता को बहुत ही प्रसन्नता से देख रही थी। अवनी झील के पास बैठकर पानी से अठखेलियां करने लगी और बाकी सभी टूरिस्ट भी आसपास के सौंदर्य पान मे व्यस्त थे। झील के पास बैठे हुए अवनी पास में पडे पत्थरो पानी में फेंकने लगती है। उसने स्वप्न मे स्वयं को अनिरुद्ध के साथ इसी तरह पानी में पत्थर फेंकते हुए देखा था ।पत्थर फेंकते फेंकते व वह ख्यालों की दुनिया में खो जाती है। और उसे होश भी नही रहता। तभी उसे शिखा आवाज देती है । शिखा की आवाज से अवनी की तंद्रा भंग होती है। वह झटके से शिखा के पास जाने के लिए खड़ी होती है तभी उसका पैर झील के तरफ फिसल जाता है ।थोड़ी दूर पर खड़ा अनिल उसे देख रहा होता है वह उसे इस तरह फिसलता देख सहसा ही चीख पड़ता है...... अवंतिका संभल कर....
अवनी गिरते-गिरते बच जाती है और उठ कर शिखा के पास चली जाती है । वह अनिल के द्वारा स्वयं को अवंतिका कहे जाने पर विस्मित होती है।
"अवंतिका यही नाम........ यही नाम था सपने में मेरा फिर उसने मुझे नाम से कैसे बुलाया? जबकि हम दोनों के बीच कभी कोई बात भी नहीं हुई ।........शायद उसने किसी से मेरा नाम सुन लिया हो और उसके मुंह से अवंतिका अनायास ही निकल गया हो। मैं भी न न जाने क्या क्या सोचती रहती हूं।"
अनिल के इस तरह से चीखने पर अलका स्वीटी और उसके दोस्त भी उसके पास आ जातेहैं।
"क्या हुआ भाई आप इस तरह चीखे क्यों?.... और यह वर्तिका कौन है ?"स्वीटी ने कहा।
"बस यूं ही "
कहकर अनिल मुस्कुराने लगता है और उसका शक यकीन में बदल जाता है।
अनिल को जयपुर आए एक हफ्ते हो गए थे। वह तब से अवनी में अवंतिका की झलक महसूस कर रहा था। इसीलिए वह उसके तरफ आकर्षित होता जा रहा था।... "वही बड़ी बड़ी आंखें, मासूम चेहरा ,बस पहनावा अलग है। हो न हो ईश्वर ने हमें मिलाने के लिए ही यहां बुलाया हो "
यह सोच कर अनिल मुस्कुराता हुआ अपने ग्रुप के साथ बातें करने लगता है।
इधर अवनी भी अनिल के तरफ स्वयं के आकर्षण को महसूस करती है ।पर वह उससे दूर रहने का प्रयास करती है परंतु आज अनिल के मुंह से अनायास ही उसके सपने में देखे जाने वाला नाम निकल जाने से वह भी विचारों के भवर में गोते लगाने लगती है।
"क्या अनिल ही अनिरुद्ध है,,,?
क्या यह वही है .....जिसके लिए मैं बरसों से इंतजार कर रही हूं। पर केवल अवंतिका कह देने से मैं इस बात पर कैसे यकीन कर लूं ।"
वह सारे रास्ते बस इसी विषय पर विचार करती रहती है।
"कहां खोई है ,कब से मैं तुझ से बातें कर रही हूं और तू तो हूँ हां के अलावा कुछ बोल भी नहीं रही" सिखाने व्यंग से कहा।
इधर ध्रुव भी अवनी से दूर रहने का अभिनय करता है, परंतु उसकी हर सांस हर धड़कन में केवल अवनी ही मौजूद है।
जब अनिल को अवनी की तरफ देखते हुए देखता है तो उसके सीने में सांप लूटने लगते हैं ।उसे लगता है कि जाकर अनिल की आंखें ही निकाल ले। परंतु वह अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखे हुए तन्हाइयों में रोता है।