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इन्तजार भाग 6

14 मार्च 2022

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पिछले भाग में आपने पढ़ा विजय रूपा से मिलने तालाब के किनारे आता है lऔर उससे कहता है कि वह उसके लिए कुछ उपहार लाया है lपरंतु वह उसे यहां नहीं दिखाएगा यह कह कर तालाब से उसे मंदिर के पीछे के जंगल की तरफ ले जाता है। अब आगे .................
"अब तो दिखाओ विजय तुम क्या लाए हो मेरे लिए?"
" ऐसे नहीं पहले तुम अपनी आंखें बंद करो "
रूपा अपनी आंखें बंद कर लेती है तो विजय अपने साथ लाया सिंदूर रूपा की मांग में भर देता है। रूपा घबराकर आंखें खोल लेते हैं ,और फिर विजय उसके गले में मंगलसूत्र भी पहना देता है रूपा इस अप्रत्याशित घटना से अचंभित रह जाती है ,उसे घबराया हुआ देख विजय उसे गले से लगा लेता है ।प्रथम बार किसी पुरुष के स्पर्श से उसके देह में तिरंगे दौड़ने लगती है ।वह आवाक् सी खड़ी रह जाती है ।उसके मुंह से किसी भी तरह के बोल नही निकल रहे थे, वह पलक झपकाए बिना विजय को निहारती जा रही थी ।समा संवादविहींन  हो जाता है ।धीरे से वह भी अपने हाथों को ऊपर करती है और विजय को अपने बाहूपास में जकड़ लेती है ।दोनों ही लंबे समय तक आलिंगन बंद रहते हैं । दोनों ही देश दुनिया से बेखबर एक दूसरे में समा जाने को मचल उठते हैं सहसा रूपा को बिरजू की बातें याद आती हैं ।और वह विजय से छिटक कर खड़ी हो जाती है ।रूपा  के इस तरह से दूर हट जाने से विजय के  सुख में अचानक से व्यवधान उत्पन्न हो जाता है, जिससे वह तिलमिला जाता है।
" क्या हुआ रूपा? तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है "
"है पर डर लगता है "
"अब किस बात का डर, तुम मेरी पत्नी हो मैंने तुमसे विवाह कर लिया है। फिर हम दोनों के एक होने में कोई पाप नहीं है।"
" तुम्हारी नजर में मैं तुम्हारी पत्नी हूं पर दुनिया की नजर में नहीं ,जिस दिन तुम मुझे समाज के सामने अपना लोगे, उस दिन मैं खुद को तुम्हें सौंपप दूंगी।"
" जैसी तुम्हारी मर्जी ,जब तक तुम नहीं कहोगी मैं तुम्हें छुऊगां भी नहीं।
रात हो रही है चलो घर चलते हैं।"
विजय का मन टूट जाने से रूपा अपराध बोध से ग्रसित हो रही थी। पर वह बिरजू की बातों को सच साबित नहीं होने देना चाहती थी। वह खुशी ग्लानि के मिश्रित भाव लिए घर की ओर चली जा रही थी, तभी बिरजू जो कि बहुत देर से उसकी राह तक रहा था, सामने आ गया और रूपा की मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र देखकर क्रोधित हो गया।  आदत अनुसार वह रूपा का रास्ता रोक लेता है।
" क्या बात है? आज तो बड़ी खुश नजर आ रही है रूपा।  खुश क्यों ना हो, आज प्रीयतम का साथ जो मिल गया, आज तो कोई कसर  नहीं बची होगी मिलन में।"
" बिरजू तू फिर आ गया मुझे परेशान करने, तू मेरा पीछा करना छोड़ दे मैं विजय की ब्याहता हूं। मेरी तरफ देखना भी पाप है।"
" क्या पाप है क्या पुण्य अब तू मुझे सिखाएगी। खुद तो प्रेम की गंगा में डुबकी लगाकर आ रही है और मुझे पापी कह रही है। मैं तो बस बहती गंगा में हाथ धोना चाहता हूं। कौन सा तू मुझे उम्र भर के लिए चाहिए अब तो कोई मेरे ऊपर शक भी नहीं करेगा। बस एक बार मेरी हो जा मैं तेरे रास्ते से हमेशा के लिए हट जाऊंगा ।"
"बस यही तो अंतर है   तुझ में और विजय में वह मुझसे प्यार करता है, और तू मेरे जिस्म  से। उसने मुझसे ब्याह करके भी मुझे नहीं छुआ और तेरी गंदी नियत के बारे में तो मुझे सोच कर भी घिन आती है।"
बिरजू यह जानकर की रूपा अभी भी कुमारी है वह उसके कौमार्य  का उपभोग करने के लिए तड़प उठता है। और रूपा को झपट कर पकड़ लेता है, एक हाथ से उसका मुंह दबा देता है ताकि वह चिल्ला न पाये और उसकी देह से वस्त्रों  को अलग  करने का उपक्रम करने लगता है। तभी रूपा दांतो से उसका हाथ काट लेती है जिससे बिरजू की पकड़ ढीली पड़ जाती है।रूपा भाग कर विजय की तरफ जाती है ।विजय अभी अभी बहुत दूर नही निकला था ।वह उसे भागता व चिल्लाता देख कर वहीं से वापस रूपा की तरफ आ जाता है।
बिरजू अपने मुंह से शिकार को बच निकलता देख बौखला जाता है ।वह उससे बदला लेने की ठान लेता है। वह जानता है कि रूपा भागकर विजय के पास गई होगी इसलिए वह चिल्लाकर गांव के सभी लोगों को इकट्ठा कर लेता है।वह रूपा और विजय के बारे में बताता है कि वे दोनों ने समाज , बिरादरी की।  नाक कटा दी है ।दोनों ने छुपके शादी कर ली है, और मैंने उन दोनों को मुंह काला करते हुए देख लिया तो दोनों जंगल की तरफ भाग गए यह सब सुनकर गांव के लोगों के सिर पर खून सवार हो जाता है। सभी गांव वाले  विजय और रूपा को जान से मारने के लिए बिरजू की बताई दिशा की तरफ दौड़ पड़ते हैं।कुछ युवक साथ में मसाल व मिट्टीका तेल लेकर पीछे पीछे जातें हैं। गांव वालों को अपनी ओर आता देख रुपा विजय डर जाते हैं वह भी तेजी से भागने लगते हैं। भागते भागते वे घने जंगलों की तरफ चले जाते हैं। तभी रूपा के पैर में एक कांटा चुभ जाता है। जिससे वह दर्द से चीख उठती है ,और वही गिर जाती है। बिरजू उसे गोद में उठाकर दौड़ने लगता है ,थोड़ी देर में थक कर वह भी लड़खड़ा कर गिर जाता है। इतने में  सभी गांव वाले वहां इकट्ठा हो जाते हैंऔर दोनों को घेर लेते हैं कुछ युवक उन दोनों को पकड़ लेते हैं तथा उनमें से कुछ बुजुर्ग व्यक्ति उन्हें समाज बिरादरी की दुहाई देकर गालियां देते हैं। फिर उन दोनों को अलग-अलग पेड़ में बांध दिया जाता है । कुछ युवक  विजय और रूपा के कपड़ों पर मिट्टी के तेल छिड़क देते हैं तथा साथ में लाए हुए मसाल से दोनों को आग लगा  देते हैं दोनों चीखते चिल्लाते रहते हैं परंतु उनकी कोई नहीं सुनता अतंतः वे दोनों मर जातें हैं।एक और प्रेमी जोडा आँनर किलिंग की भेट चढ जाता है।
                         पर्दा गिरता है
पर्दा गिरते ही सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। और अवनी स्टेज पर आ जाती है। तभी भीड़ में से एक व्यक्ति कहता है कहानी का अंत सुखद नहीं है कहानी में यह दोनों मिल जाते तब अच्छा लगता" इट्स सैड  स्टोरी" अवनी अनाउंस करती है "कहानी अभी खत्म नहीं हुई है यह तो ट्रेलर है पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त" यह कहकर अवनी भीतर चली जाती है। कुछ समय पश्चात पर्दा पुनः उठता है अब स्टेज पर दो परिवारों में दोशिशुओं का जन्म दिखाई देता है । दोनों ही अपने-अपने संतति को लेकर उत्साहित और मंगल गान करते हैं ।यह दोनों ही रूपा और विजय का पुनर्जन्म है .
फिर 20 साल बाद का एक बोर्ड स्टेज पर लाकर रख दिया जाता है अब रूपा और विजय मॉर्डन कपड़ों में स्टेज पर आते हैं। दोनों ही एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं और क्लास में जाते समय दोनों एक दूसरे से टकरा जाते हैं। दोनों की टक्कर से रूपा की सारी किताबें नीचे गिर जाती हैं ।जिसे विजय उठाकर उसे दे देता है।
" शुक्रिया आपका शुभ नाम" रूपा ने कहा
"विजय,और आपका"
" रूपा"
"पहचाना नहीं मैं तो बरसों से आपका ही इंतजार कर रहा हूं "
"और मैं भी सालों से इसी घड़ी के इंतजार में बैठी हूं ,दोनों एक दूसरे का हाथ थाम कर क्लास में बैठ जाते हैं, और एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते हैं। फिर दोनों कहते हैं, "आखिर हम मिल ही गए "
अंततः प्रेमी युगल का मिलाप हो जाता है।
पर्दा गिरता है ।


पुनः हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है ।स्टेज पर सभी कलाकार इकट्ठे हो जाते हैं ।मुख्य अतिथि के द्वारा उन्हें पुरस्कार प्रदान किया जाता है ।और वार्षिकोत्सव का समापन हो जाता है।
      क्रमशः.....


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रचनाएँ
इन्तजार
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इन्तजार ,सच्चे प्यार की कहानी है ।जिसमें कुछ सामाजिक कुप्रथाओं पर भी प्रकाश डाला गया है।दर्द, तडप ,साहस ,विश्वास सभी इस कहानी के प्रमुख तत्व हैं ।काल्पनिक होते हुये भी जीवन्तता कीअनुभूति कराती यह कहानी आपको अवश्य पसंद आयेगी ।
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अवंतिका नियमित रूप से हवेली में काम करने लगी ।उसे नवप्रसूता और नवजात से दूर रखा जाता लेकिन उसके मन में नवजात को देखने की उत्सुकता बलवती होती जा रही थी ।हरिसिंह भी अवंतिका के रूप सौंदर्य से मोहित होकर

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इन्तजार (भाग 29 ) अंतिम भाग

30 मार्च 2022
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