मंदिर की सीढ़ियों पर अनिल बेसब्री से अवनी का इंतजार कर रहा था। एक मिनट उसे युगों के बराबर लग रहा था तभी उसकी नजर मंदिर की ओर आती हुई अवनी पर पड़ती है, गुलाबी सूट में वह किसी गुड़िया की तरह दिख रही थी ,उसके मासूम चेहरे में अनिल अपने लिए प्यार तलाश रहा था पर वो अभी भी नदाररद था। आज अवनी अकेले ही मंदिर आई थी। वह अनिल के साथ अपने सपनों के रहस्य को सुलझाना चाहती थी। उसे भी अनिल की बातों पर विश्वास हो चला था इसलिए वह अनिल के सपनों को समझकर एक दूसरे से जोड़कर उसकी सत्यता को परखना चाहती, फिर भी ना जाने क्यों उसे अनिल के पास जाने में घबराहट हो रही थी । किसी से ना डरने वाली अवनी अनिल से बातें करने में झिझक महसूस कर रही थी। दोनों मंदिर के लिए पूजा की सामग्री लेकर भोलेनाथ के दर्शन के लिए मंदिर के गर्भगृह में पहुंचते है ।पूजा के बाद अवनी पंडित जी को चरण स्पर्श कहती हैं।
"दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रहे ................(''अखंड सौभाग्यवती भवः '' पंडित जी ने अवनी और अनिल को आशीर्वाद देते हुए कहा
"पर पंडित जी मेरा विवाह अभी नहीं हुआ हैं' आपने ऐसा आशीर्वाद क्यों दिया।"
" ईश्वर की प्रेरणा से जो भी मुंह से निकला उसे ही आशीर्वाद समझो और कुछ रिश्तो के लिए विवाह या सिंदूर आवश्यक नहीं होते हैं वह तो अटूट होते हैं ।सदियों से"
कहकर पंडित जी अन्य भक्तों का प्रसाद भोलेनाथ को भेट करने लगे। अवनी पंडित जी की कहीं बातों का मतलब समझने में उलझ जाती है।
"अवनी यहां काफी भीड़ हैं, पास में ही एक तालाब है क्यों ना वहां चलकर बातें करें ।"
अवनी बिना कुछ कहे अनिल के पीछे चली जाती हैं। दोनों ही तलाब की मेड़ पर एक दूसरे से कुछ दूरी बना कर बैठ जाते हैं।पर दोनों आपस में बात नहीं करते हैं ।तलाब में कमल के फूल खिले हुए थे दोनों ही उन्हें देखने में व्यस्त रहते हैं। अनिल वही पास पड़े पत्थर उठाकर तालाब में फेंक देता है। छपाक की आवाज से अवनी का ध्यान अनिल की ओर जाता है ।उसे किसी घटना की पुनरावृत्ति होने का आभास होता है। सपने में वो अनिरुद्ध को ठीक इसी तरह तालाब मे पत्थर फेंकते हुए देखती हैं ।
"अवनी क्या सच तुम मुझे अपने सपनों में नहीं देखती, मैंने सिर्फ तुम्हारे प्यार के लिए ही दूसरा जन्म लिया हैं ।और तुम्हारा इस तरह से इनकार मेरा हृदय चीर कर रख देता हैl" अनिल ने दोनों के बीच की खामोशी तोड़ते हुए कहा।
"न जाने क्यों मुझे तुम पर विश्वास करने को मन करता है ...मैं देखती हूं सपना ....वर्षों से एक ही सपना.... जिसमें मैं जलती हूँ और साथ में वो भी जलता है । पर हर बार वह तस्वीर धुंधली ही रहती हैं ।मुझे ऐसा लगता है इश्वर ने हमें हमारे ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए दुबारा इस धरती पर भेजा है। अनिल यदि तुम ही मेरे अनिरुद्ध हो तो मुझे कुछ याद क्यों नहीं आता.. आखिर क्यों हमें जलाया जा रहा था..। जब से तुम्हें देखा है अजीब सा खिंचाव महसूस करती हूँ, पर केवल अनिरुद्ध के लिए मैं तुमसे हमेशा दूर भागती रही हूं ।"
"अवनी यहां आकर भी तुम्हें कुछ याद नहीं आता।अवनी मुझे भी सब कुछ याद नहीं आया पर कुछ तस्वीरें मेरे दिमाग में साफ ही बैठ चुकी है। ये मंदिर और यहां से थोड़ी दूर पर दो पेड़ जहां हमें जलाया गया था।"
" आखिर हमारे अतीत का रहस्य हमें कैसे पता चले? कुछ तो मदत करो भगवान अब बर्दाश्त नहीं होता ।"
"मैं केवल तुम्हें ढूंढता- ढूंढता यहां तक आ गया अब तुम्हारा अविश्वास मेरी सारी आशाओं पर पानी फेर रहा है। मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं अवनी ।"
अवनी अनिल के दर्द को महसूस करती हैं परंतु अभी वह अनिरुद्ध का स्थान अनिल को देने के लिए तैयार नहीं हैं ।उसे डर है कि यदि अनिल उसका अनिरुद्ध ना हुआ तो .."
".अवनी क्यों ना हम उस स्थान को ढूंढे जहां हमें जलाया गया था, शायद वहां पर हमें कुछ याद आ जाए। "
"हाँ शायद.... भोला काका भी एक लड़की की कहानी बता रहे थे जिसे गाँव से बाहर कहीं पेड़ में बांधकर जला दिया गया था। मुझे लगता है कि वो कहानी मेरी ही पिछले जन्म की है यदि हम वो स्थान खोज ले तो शायद हमें कुछ याद आ जाए ।.."
".तो क्या भोला काका के पास चले"
" नहीं ....काका ने कहा था कि मंदिर के पास के ही जंगलों में वे दोनों छुपे थे।तो वो जगह मंदिर के आसपास ही होगी।"
" तो चलो ढूंढते हैं शायद हमें मिल जाए ,और ना मिले तो कल काका को साथ लेकर ढूढेंगे l "
दोनों काफी देर तक उस स्थान की तलाश करते हैं परंतु उन्हें कुछ भी नहीं समझ में आता। हार कर वो लौटने वाले ही होते हैं तभी अवनी की नजर थोड़ी दूर पर लगे दो वृक्षों पर जाती है। जिसकाआधा हिस्सा हरा-भरा और आधे तरफ झुलसी हुई टहनियां दिखाई पड़ती है।अवनी उधर की तरफ बढ़ जाती है अनिल भी उसके पीछे-पीछे वहीं चला जाता है। उन पेड़ों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि उनका एक हिस्सा अतीत के दर्द को दर्शा रहा हो । वही दूसरा नवीनता के विश्वास और उत्साह को। अवनी उन पेड़ों के पास पहुंचकर एक पेड़ को छूती है उसे छूते ही उसे सपनों में महसूस होने वाले दर्द का एहसास होता है। जिससे वह लड़खड़ा कर गिरने लगती है ।तभी दौड़ कर अनिल अवनी को गिरने से बचा लेता है और उसके हाथों को थाम लेता है ।दोनों एक दूसरे का स्पर्श पाकर जागृत अवस्था में भी सपनों में पहुंच जाते हैं परंतु इस बार सपने धुंधले नही बल्कि उनमें पूरी तरह से साफ दृश्य दिखाई देता हैl
इधर ध्रुव अवनी को खोजते खोजते दीपू के घर पहुंच जाता है।
" क्यों दीपू आज अवनी नहीं आई क्या?"
" नहीं भैया दीदी आज नहीं आएंगी आज वह अनिल भैया के साथ पहाड़ी वाले मंदिर में गई है। आगे का प्रोग्राम कल ही तय होगा ।"
"ठीक है दीपू मैं अपने रूम में जाता हूं कल फिर तुम लोगों से मुलाकात होगी"
कहकर ध्रुव वहां से चला जाता है, अवनी के अनिल के साथ होने की खबर जानकर उसे बहुत दर्द होता है उसे अनिल की बातों से पहले ही यकीन हो गया था कि अनिल ही अवनी का इंतजार है जिसे वह बरसों से कर रही है। फिर भी उसे खोने का डर उससे बहुत तकलीफ पहुंचा रहा था। वो किसी के गले लग कर खूब रोना चाह रहा था पर वहां उसके दर्द को बांटने वाला कोई न था। एक तरफ तो उसे अवनी के इंतजार के पूरे होने की खुशी भी थी वहीं दूसरी तरफ अवनी से बिछड़ने का दर्द भी। आसूं भी कब उसकी पलकों साथ छोड़ चुके थे उसे एहसास भी न था।
क्रमशः