"इंतजार "(भाग 1)
यह एक काल्पनिक कहानी है इस कहानी के माध्यम से मैंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुप्रथा पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। यह पूर्ण रूप से काल्पनिक है इसका किसी व्यक्ति और स्थान से समानता संयोग मात्र है।
पहाड़ी पर स्थित मंदिर, जिसमें एक युवक और युवती हाथ जोड़े खड़े हैं ।वह अत्यंत प्राचीन दिखाई पड़ता है। कुछ देर के लिए धुंधला सा छा जाता हैं , एक पेड़ पर वह रस्सी से बंधी है ,उसके चारों तरफ आग जल रही है ,और वह जोर -जोर से अनिरुद्ध .......अनिरुद्ध चिल्ला रही है।
तभी अचानक उसकी नींद खुल जाती हैऔर वह उठ जाती है । सोचती है कि
"फिर वही सपना "
घड़ी देखती है तो सुबह के 5:00 बज रहे हैं ।वह मन ही मन सोचती है की,
" मम्मी कहती है कि सुबह के सपने हमेशा सच होते हैं पर ये कैसा सपना है? और यह अनिरुद्ध कौन है ?जिसे मैं बार-बार बुलाती हूं"
सपने के बारे में सोचते- सोचते वह घर के बाहर बने गार्डन में चली जाती है, और साथ में कुछ चावल के दाने ले लेती है ।वह बगीचे में रखी कुर्सी पर जाकर बैठ जाती है। वहां से उसे सूर्योदय साफ दिखाई पड़ता है ,और उसे निकलते सूरज की लालिमा देखना बहुत अच्छा लगता है।
अभी सूरज निकला नहीं है ,परंतु उसके किरणों की आभा से सारा आकाश मंडल रक्तिम हो गया है। पंछी अपने घोसले छोड़कर दाने की तलाश में निकल रहे हैं। चहचहाती हुई चिड़ियों का झुंड एकाएक उसके सर के ऊपर से गुजर जाता है ,जिसे वह अपलक निहारती रहती है ।फिर वह अपने साथ में लाएं कुछ चावल के दाने गार्डन में बिखेर देती है। तरह-तरह के पंक्षी दाने खाने के लिए बगीचे में उतर पड़ते हैं। वो वहीं किनारे बैठ कर उन्हें दाने चुगता देखती रहती है ।
"अवनी....... अवनी रोज सुबह यह लड़की कमरे की लाइट पंखा चालू छोड़कर न जाने कहां चली जाती है।
इसे तो किसी बात की फिक्र ही नहीं।"
तभी उनकी नजरे गार्डन में बैठी अवनी की तरफ चली जाती है
"इसका रोज का काम हो गया है, ये नहीं कि कमरे की सफाई कर ले ,कुछ देर बैठ कर पढ़ाई कर ले ,बस सुबह से चिड़ियों को दाना चुगाना और बैठकर उन्हें खाते देखना, इतना ही काम बचा है इस लड़की के पास।
ना जाने कब बड़ी होगी "
मम्मी की आवाज सुनकर अवनी उनके पास आ जाती है और उनके गले में बाहें डाल कर कहती है।
" कभी नहीं "
"चल दूर हट...और यह नखरे करना बंद कर जाकर तैयार हो जा ,मैं तेरे लिए चाय और नाश्ता बनाती हूँ।
"जी मम्मी "
कह कर अवनी मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चली जाती है, वहां पर पहले कमरा व्यवस्थित करती है फिर नहा धोकर नाश्ते की टेबल पर पहुंच जाती है ।
"मम्मी जल्दी नाश्ता दो कालेज के लिए देर हो रही है" तभी शोभा जी गरमा गरम पराठे दही और आलू की सब्जी लेकर आ जाती है "
ले बेटा नाश्ता कर "
अवनी आधा अधूरा नाश्ता करके बैग उठाकर निकलने लगती है
" सुबह से तो होश रहता नहीं है, अभी नाश्ते के टेंबल पर भगदड़ मच जाती है ,नाश्ता तो अच्छे से कर ले ।"
"बस हो गया मम्मी "
कहते हुए वह स्कूटी निकालकर कॉलेज चली जाती है
" शोभा जल्दी करो आफिस के लिए देर हो रही है। नाश्ते के साथ टिफिन भी लेते आना, और हां तुम्हें याद है ना शाम को लड़के वाले आ रहे हैं ।
उसकी सारी तैयारी करके रखना रोहन उसकी फैमिली बहुत ही अच्छी है यह रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए।" अवनी के पापा ने कहां "
"हां... हां सब याद है मैंने शाम के लिए नाश्ते का इंतजाम कर लिया है और अवनी को भी टाइम से घर आने के लिए कह दिया है ।"
"और अपनी लाडली को भी समझा देना,वो कोई गड़बड़ नहीं करेगी बहुत ही अच्छा परिवार है, खुद का बिजनेस है, लड़का भी सरल स्वभाव का है। मेरी बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी वहां ।"
"पर इसके नखरे खत्म हो तब ना"
"ठीक है मैं उसे सब समझा दूंगी। अब तुम ऑफिस जाओ लेट नहीं हो रही है ।"
शोभा ने रवि को टिफिन देते हुए कहा।
"ईश्वर करे शाम को सब अच्छा हो "कहते हुए शोभा घर के कामों में लग गईl
शाम का वक्त हाल में मेहमान बैठे हुए हैं, इधर शोभा अवनी को तैयार कर रही है ,सलीके से बंधी हल्के गुलाबी रंग की साड़ी, आंखों में काजल ,कानों मे आकर्षक छोटी-छोटी झुमकी, माथे पर छोटी सी बिंदी ,सादगी में भी अवनी बहुत ही आकर्षक लग रही थी ।छरहरा बदन, 5 फुट 2 इंच की लंबाई ,गोरा रंग,लम्बे घुघराले बाल ,जिसकी कुछ लटें चेहरे पर अटखेलियाँ कर रही थीं ।उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर ने स्वयं अपने हाथों से बहुत ही फुर्सत में उसे बनाया हो। वह साक्षात सौंदर्य की देवी लग रही थी। शोभा ने अवनी के कान के पीछे काला टीका लगाते हुए कहा।
" मेरी फूल सी बेटी को किसी की नजर ना लगे ।लड़के वाले तो तुझे एक नजर में ही पसंद कर लेंगे ,पर तू अपनी बचकानी ज़िद छोड़ दे। और अब की बार कोई ऐसी वैसी बात मत करना जितना पूछा जाए बस उसी का जवाब देना ।"
अवनी ने हाँ में सिर हिलाया और पीछे मुड़कर मुस्कुराने लगी उसके दिमाग में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी। इस बार रिश्ता टूटने का ब्लेम वह अपने ऊपर नहीं लेना चाहती थी ।इसीलिए वह एक सुशील संस्कारी बेटी की तरह माँ की हां में हां मिला रही थी ।
अवनी ने नाश्ते की मेज पर चाय का ट्रे रखा तब रोहन की मां ने उसे अपने पास बुला लिया।
" बेटी इधर बैठो नाम क्या है तुम्हारा?"
" अवनी"
" बहुत ही प्यारा नाम है"
"पढ़ाई क्या कर रही हो?
" M.A . फाइनल ईयर है ।"
"खाना बनाना आता है तुम्हें?"
" जी बहन जी यह तो बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती हैं। यह पकौड़ी अभी इसी ने बनाई है लीजिए ना बहनजी खाइए "
"जी बिल्कुल"
कहकर रोहन की मां पकौड़े खाने लगती है
" मम्मी भी ना ,बड़ी खूबी से सफेद झूठ बोल लेती है"
अवनी मन ही मन यह सोचकर मुस्कुराने लगी।
" और क्या-क्या शौक है तुम्हारे ?"रोहन की मां ने कहा
" पेंटिंग करना और डांस करना"
अवनी ने बहुत ही धीरे से कहा
" बहुत संस्कारी बेटी है आपकी मुझे तो बस ऐसे ही बहु चाहिए थी। भगवान की दया से घर में पैसे की कोई कमी नहीं है, नौकर चाकर भी हैं ।बहू में नौकरी करने के शौक ना रहे तो ही अच्छा है। बुढ़ापे में अब मुझ से काम भी नहीं होता है ,बहू घर आए घर के कामकाज संभाल ले तो मैं भी गंगा नहा लूं ।"रोहन की मां ने कहा
अवनी के पापा रोहन के पापा से बिजनेस के संबंधी बातें कर रहे थे ।वही शोभा जी भी रोहन की मां से बातें करने में व्यस्त थी ।और रोहन बड़ी देर से अवनी को देख कर मुस्कुरा रहा था। उसे अवनी पसंद आ गई थी। आखिर अवनी थी ही इतनी खूबसूरत कि जो भी उसे देख ले देखता रह जाए और आज माँ ने भी उसे बहुत प्यार से तैयार किया था ।तभीअवनी ने रोहन की तरफ देखा उसे अपनी तरफ़ ही देखता हुआ देखकर अवनी ने अपनी नजरें नीचे झुका ली। तभी रोहन की मां का ध्यान उन दोनों की तरफ गया और उन्होंने कहा
"बहन जी मुझे तो अवनी बहुत पसंद है।
यदि बच्चे भी आपस में बात कर लेते , एक दूसरे के बारे में जान समझ ले तो अच्छा रहेगा ,आखिरशादी तो इन्हें ही करनी है ।" रोहन की मां ने कहा
"जी क्यों नहीं, अवनी जाओ रोहन को अपना घर दिखा लाओ" शोभा ने कहा।
"जी मम्मी "
कहकर अवनी रोहन को घर दिखाने ले गई। अवनी के रूम में बहुत सारी पेंटिंग लगी थी जिसमें उसने प्राकृतिक दृश्यों को बखूबी से उकेरा था ।उन्हें देखकर रोहन ने अवनी से पूछा
"यह सभी आपने बनाई है बहुत खूबसूरत है"
"जी मुझे प्राकृतिक सौंदर्य की पेंटिंग बनाना बहुत पसंद है चलिए मैं आपको अपना गार्डन दिखाती हूं "
यह कर कर अवनी रोहन को घर के गार्डन में ले गई घर का गार्डन अवनी को बहुत पसंद था ।वह वहां से रोज प्रकृति के नजारे देखा करती थी ।वह रोहन के साथ गार्डन में रखी कुर्सियों पर बैठ गई।
अवनी का गार्डन बहुत ही प्यारा था। तरह-तरह के खुशबूदार फूल, सजावटी पौधे शाम को खुशनुमा बना रहे थे। अवनी के रूप पर फ़िदा रोहन रोमांटिक अंदाज में अवनी की तरफ देखते हुए कहा
"अवनी आप बहुत खूबसूरत हैं, मुझे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा मुझे आप पसंद है ।यदि मैं आपका हमसफर बन सकू तो यह मेरे लिए बहुत खुशनसीबी की बात होगी। परंतु आपकी राय जाने बिना यह संभव नहीं है, आपकी मेरे बारे में क्या राय है क्या आपको यह रिश्ता मंजूर है?"
अवनी का क्या जवाब होगा पढ़ते हैं हैं अगले भाग में।
क्रमशः