उस लड़की ने वहां की सजावट को देखकर अंदाजा लगा लिया कि यहां पर कोई भव्य आयोजन होने वाला है। जहां तरह-तरह पकवान बने थे जिनकी सुगंध उसकी व्याकुलता को और बढ़ाने का कार्य कर रहे थे ।पर उसे समझ में नहीं आ रहा था वह किससे भोजन मांगे। वहां पर मौजूद सभी लोगों में अफरा-तफरी मची हुई थी ,सब जल्दी से जल्दी बैठक ,सजावट, भोजन दुरुस्त करने में लगे हुए थे तभी अंदर से बड़ी ठकुराइन किसी पर चिल्लाते हुए बाहर निकलीती हैं।
"तुम लोगों से तो कोई काम ठीक से नहीं होता है ।दो घड़ी में सांझ हो जाएगी अभी सजावट का काम ही अधूरा है ।जल्दी जल्दी हाथ चलाओ सब लोग"
वह लड़की बड़ी ठकुराइन को देखती रह गई लाल बनारसी साड़ी ,गले में रानी हार ,जड़ाऊ कंगन माथे में बड़ा सा टीका, रोबीला व्यक्तित्व और पोते की खुशी से उनके चेहरे में अद्भुत आभा दमक रही थी। उसके लिए वह किसी रानी से कम न थी ।तभी ठकुराइन उस लड़की की तरफ बढ़ी उससे अपनी ओर आता देख वह डर गई कि कहीं यह मुझे भी ना डाटने लग जाए ।
"ए लड़की कौन है तू यहां क्या कर रही है?"
" रानी सा मैं अवंतिका" बहुत तेज भूख लगी है कुछ खाने को मिल जाता तो आपकी बड़ी कृपा होती" अवंतिका ने डरते हुए कहा ।
@अभी ठाकुर जी को भोग नहीं लगाया अभी तू जा यहां से कुछ देर बाद आना"
" रानी से बड़ी दूर से आई हूं बार-बार ना सकूंगी कुछ बासी ही बचा हो तो वही खाने को दे दीजिए"
हमारे यहां बासी खाना नहीं बचता जो कुछ रसोई में बचता है सब नौकर -चाकर और कुत्तों को बांट दिया जाता है ।
"रानी सा कोई काम हो तो बता दो मैं करती रहूंगी जब भोग लग जाएगा तो मुझे कुछ दे देना।"
" हा हा हा अपनी हालत देखी है, हमारे यहां दूर-दूर से मेहमान आ रहे हैं तुझे यहां काम करते देख कोई हमारे यहां का दाना पानी न छुए गा हमारे घर के नौकर चाकर भी साफ-सुथरे नए कपड़ों में यहां काम कर रहे हैं ।तू जा यहां से मुझे बहुत सारा काम है कुछ घंटे बाद आकर ले जाना खाना।"
ठकुराइन की कठोर आवाज को सुनकर वह वहां से बाहर आने लगती है ।तभी ठाकुर हरिसिंह की नजर अवन्तिका पर पडती है ।गेहूंआ रंग ,कटीली आखें ,उलझे बाल ,चेहरे का एक एक अंग मानोभगवान ने स्वयं तराशा हो ।उस पर मासूम चेहरे का आकर्षण हावी होने लगा ।भले ही वह गरीब थी पर रूप का खजाना था उसके पास जिसे पाने के लिये हरिसिंह बेचैन हो उठा परन्तु अपनीं भावनाओं को काबू में रखते हुये वह अवन्तिका से बात करने लगा ।
"क्यों रे लड़की क्या चाहिए तुझे किस लिए आई है यहां?"
"कुछ नहीं मालिक भूख लगी थी सोच सोचा थोड़ा खाना मिल जाता"
" तो मिला खाना"
" नहीं रानी सा ने कहा है अभी भोग नहीं लगा थोड़ी देर बाद मिलेगा खाना यह कहकर वह उदास हो गई।"
"चलो मैं देता हूं खाना "
कह कर अवंतिका को नौकरों से मंगा कर कुछ खाना दे देता है जिससे वह बहुत खुश हो जाती है और उन्हें धन्यवाद कहने लगती है जब वह खाना लेकर जाने वाली रहती है तभी हरि सिंह उसे रोककर उससे बातें करने लगता है ।
"कौन-कौन घर में है तेरे "
"मां और मैं कुछ महीने पहले बाबा गुजर गए माँ दूसरों के घरों में जाकर काम करती थी ,हमारा गुजारा हो जाता था। लेकिन वह भी कुछ दिनों से बीमार है, इसलिए हमें खाने के लिए परेशान होना पड़ता है ।"
"काम करेगी तू हवेली में बदले में पैसे मिल जाएंगे "
"जी मालिक आपकी बहुत मेहरबानी होगी "
"ठीक है कल से आ जाना काम पर और ले यह कुछ पैसे हैं इसे अपने लिए राशन ला लेना और कुछ कपड़े खरीद लेना कल से उन्हीं कपड़ों में आना यहां "
"ठीक है मालिक"।
यह कहकर वह वहां से चली जातीहै । उसने पहली बार इतने सारे रुपए देखे थे वह बहुत खुश थी ।उसने रूपयो की मदद से अपने लिए मां के लिए कुछ कपड़े खरीदे फिर घर आकर रसोई के लिए कुछ राशन ले आई ।और मा से सारा हाल कह दिया ।"अंधा क्या चाहे दो आख "मां भी अवंतिका के हवेली में काम पर जाने की बात सुनकर बहुत खुश हुई। इधर ठकुराइन हरि सिंह की इन हरकतों से नाराज हो गई लेकिन उत्सव का माहौल जानकर कुछ ना कहा ।अगले दिन अवंतिका फिर से हवेली गई ।जन्म उत्सव की वजह से वहां बहुत सारा काम था अवंतिका को वहां देखकर ठकुराइन नाखुश होते हुए उसे से कहा।
" क्यों रे लड़की कल तो तुझे खाना पैसा मिल गया था, फिर क्यों आई है ?"
"रानी सा मालिक ने मुझे यहां काम करने के लिए बुलाया था"
नए कपड़ों में वह बहुत सुंदर लग रही थी आज उसने सलीके से कंघी भी की थी ठकुराइन को उसे मना करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था इसलिए उन्होंने उसे बेमन से काम बता दिया।
और एक कमरे तरफ इशाराकरते हुये कहा
उधर मत जाना वहाँ बहू और पोता सो रहे हैं ।
मानव स्वभाव है यह जिस कार्य को करने के लिए मना किया जाता है वह वही करने के लिए लालायित रहता है ।काम करते करते वह बार बार कमरे में झाकने का प्रयास करती ।