" कितने सुंदर फूल है, है ना काका।" अवनी ने कहा
अचानक से अवनी को अपने पीछे खड़ा देखकर भोला चौका और हड़बड़ाहट में खुरपी उसके हाथों से गिर गई। "आप मुझे देखकर डर क्यों जाते हैं ?क्या मेरी सूरत इतनी बुरी है।"
" नहीं ऐसी बात नहीं है ।"
"तो क्या बात है .......मैं जब से आई हूं तब से नोटिस कर रही हूं कि आप मुझे देखकर घबरा जाते हैं।
" वो क्या है कि तुम्हारी सूरत गांव की एक लड़की से मिलती है। "भोला ने स्वयं को संयत रखते हुए कहा
" तो अच्छी बात है ना मुझे यहां मेरा हमशक्ल मिल जाएगा ,इसमें डरने की कौन सी बात है"
" 30 साल पहले उसकी मौत हो गई थी................ बहुत ही दर्दनाक मौत "
"तो आपको क्या लगा मैं उसका भूत हूं" कहकर अवनी जोर जोर से हंसने लगी।
"वैसे उसकी मौत कैसे हुईथी"
"जल कर .........जला दिया था गांव वालों ने, मैंने अपनी आंखों से देखा था उसे तड़पते हुए "
यह सुनते ही अवनी के चेहरे की हंसी गायब हो जाती है उसकी जगह दर्द उमड़ पड़ता है उसके चेहरे में ,वही दर्द जिसे वह अक्सर सपनों में देखती है ।
"क्या नाम था उसका काका "अवनी ने उदास स्वर में कहा।
"कई साल हो गए नाम तो याद नहीं..... पर वो यही पास में ही रहती थी ....अपनी मां के साथl उसके मरने के बाद एक दिन उसके घर में आग लग गई जिससे उसकी मां भी जलकर मर गई ।"
"गांव वालों ने उसे क्यों जलाया था"
" लंबी कहानी है फिर कभी बताऊंगा अभी मुझे बहुत काम करने हैं"
"काका अभी कुछ दिन पहले भी इस गांव में मे एक लड़की को जलाकर मार डाला गया था।"
" हां डायन थी वह "
"क्या सच में........ ऐसा कुछ होता भी है"
" मैं क्या जानू बेटा, सब बड़े लोगों के चोचले हैं जब हम गरीबों पर जुल्म ढाना होता है तो नए नए पैंतरे आजमाते हैं।"
" क्या मतलब काका"
" बहुत ही प्यारी बच्ची थी वह, बस उसका गुनाह यही था कि गरीब के घर में खूबसूरती लेकर पैदा हुई थी। बड़े घरों में काम करने जाती थी। न जाने क्या बात हुई जमीदार के बेटे ने डायन कह कर सारे गांव में घुमाया फिर उसे जला दिया।"
" किसी ने रोका नहीं ,और पुलिस ने भी कुछ नहीं किया"
" किसकी शामत आई है जो बड़े लोगों से पंगा ले, फिर पुलिस वाले भी तो उन्हीं के टुकड़ों में पलते हैं ।"
"और कौन है उनके परिवार में"
" मां-बाप और एक छोटा भाई सब चीखते रहे पर गरीबों की सुनने वाला कौन है "
"काका मुझे उसके घर ले चलोगे "
"क्यों नहीं, पर पहले अपना काम खत्म कर लूं।"
"ठीक है काका मैं आती हूं थोडी देर से "
"कौन हो तुम, और क्यों हमारे जले पर नमक छिड़कने आई हो।"पिडिता की मां ने बिलखते हुए अवनी से कहा। "आंटी मुझे गलत मत समझिए ,मैं आपकी मदद करना चाहती हूं ताकि आपकी बेटी के कातिलों को सजा मिल सके ।"
"हमारे पास जगह-जमीन ,धन -दौलत कुछ भी नहीं है, किस लालच में तुम हमसे झूठे वादे कर रही हो"
" आंटी कोई लालच नहीं हैमेरा मैं केवल आपकी मदद करना चाहती हूं, विश्वास करिए मेरा। सच पूछिए तो मैं स्वयं की संतुष्टि के लिए यह सब कर रही हूं ।मुझे बहुत तकलीफ हुई थी यह सब जानकर, मैं अपने दोस्तों को छोड़कर केवल उसे न्याय दिलाने के लिए यहां चली आई। यह मैं क्यों कर रही हूं यह तो मुझे भी नहीं पता पर मैं ऐसा महसूस करती हूं जैसे उसका दर्द मेरा दर्द हो। पापियों ने उसे नहीं मुझे ही जलाया हो।....... एक बार मुझे उस घटना से जुड़ी सारी जानकारी दे दीजिए मैं वादा करती हूं जब तक मैं अपराधियों को सजाना दिला दूं मैं गांव छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।"
अवनी की बातों से पीड़िता की मां को उस पर भरोसा हो गया और उसने अवनी को सारा घटनाक्रम बता दिया।
" फूल सी बेटी थी मेरी, कुसुम नाम बड़े ही प्यार से रखा था मैंने। बस 17 बरस की थी वो गोरा रंग ,कजरारी आंखें, घुंघराले बाल हंसती थी तो सारी घर में रौनक छा जाती थी। दीपू और कुसुम सारा दिन धमाचौकड़ी करते थे घर में। पर हमारे हंसते खेलते परिवार को नजर लग गई रतन सिंह की।"
" यह रतन सिंह कौन है"
"गांव के जमींदार का बेटा , मैं उसके घर काम करने जाती थी ,कुसुम के बापू भी मजदूरी करके चार पैसा कमा लेते थे दाल रोटी चल रही थी। गरीब थे पर हमें संतोष था। एक दिन मेरी तबीयत बिगड़ गई , मैं काम पर ना जा सकी। बीमारी बढ़ने लगी ....हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी ,तो ठकुराइन ने संदेशा भिजवाया कि तू अपने बदले बेटी को भेज दे काम पर ।मेरी भी मत मारी गई थी मैं रतन सिंह की करतूतें जानती थी फिर भी मैंने कुसुम को काम करने के लिए भेज दिया। कुसुम का रूप रतन सिंह की आंखों में चढ गया वह उसे पाने का प्रयास करने लगा जब मेरी बेटी ने उसे भाव न दिया , तब उसने मेरे सामने बेटी का सौदा करने का प्रस्ताव रखा ।.......कहता था हमारी गरीबी दूर कर देगा.... रानी बनाकर रखेगा उसे... उसके लिए एक घर भी दे देगा ।पर जब मैंने उससे विवाह के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया बोला ठाकुराने में लड़कियों की कमी है क्या जो वह कुसुम से ब्याह रचायेगा जाती विरादरी में क्या इज्जत रह जाएगी मेरी। पर तेरी बेटी को कोई कमी ना होगी, रानी की तरह रखूंगा ।.......रखैल बनाना चाहता था मेरी बेटी को... मैं उसकी बात कैसे मान लेती। हम गरीब हैं हमारी आबरू ही हमारा धन है। जब हमने उसे मना कर दिया तो वह बौखला गया और उसने गांव में हमारा जीना मुहाल कर दिया हमें कहीं काम नहीं मिलता फिर भी हम नहीं झुके मेरी बेटी ने कहा मर जाऊंगी पर तेरे इरादे कभी पूरे नहीं करूंगी। तब उसने कहा मरने का इतना ही शौक है तो जल्दी ही तेरे ऊपर जाने का इंतजाम करता हूं।.......
फिर गांव में मेरी बेटी के डायन होने की अफवाह फैला दी गई। किसी को कोई भी बीमारी होती उसका दोष मेरी बेटी को लगाया जाता। वह रो-रोकर बेहाल हो जाती घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था उसने ।
..............फिर 1 दिन अपने गुंडों और गांव वालों के साथ रतन सिंह घर आया ।घर से खींचकर मेरी बेटी को सड़क तक ले गया बोला इस डायन की वजह से गांव में रोज कोई न कोई बीमार पड़ता है ।रोज किसी न किसी की मौत होती है। आज हम इस समस्या को ही खत्म कर देंगे कह कर वह उसे गांव की सड़कों पर निर्वस्त्र घुमाने लगा। हम चीखते. चिल्लाते रहे.....उसके गुंडों ने हमें पकड़ लिया फिर मिट्टी का तेल छिड़ककर मेरी बेटी को जला दीया। मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी जलती रही लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकी .......किसी ने हमारी मदद नहीं की सब तमाशा बने देखते रहे कुछ लोगों ने तो वीडियो भी बनाया पर उन्हें रोकने कोई भी आगे ना आया।"
" इतना कहकर कुसुम की माँ फफक फफककर रोने लगी।"
" आप ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई "
"गई थी पुलिस मे भी ,बस खाना पूर्ति के लिए उनके कुछ गुंडों को पुलिस ने जेल में डाल दिया था ।फिर दो-तीन दिन में वह सब भी जमानत पर छूट गए। पापियों को तो पुलिस ने हाथ तक नहीं लगाया ।....जिनका खाते हैं उनके खिलाफ भला क्यों जाने लगे ।
.......फिर यह तो यहां हमेशा होता रहता है किसी न किसी कारण से इस गांव की गरीब बहू बेटियों को डायन करार दे देते हैं और फिर अंत में उनको मार दिया जाता है।"
" पर अब से ऐसा नहीं होगा ,अगर आप मेरा साथ दो तो"
" मैं आपका साथ दूंगा दीदी मुझे मेरी बहन की मौत का बदला लेना है मैं उन राक्षसों को जान से मार डालूंगा "दीपू ने दांत पीसते हुए कहा ।
"हमें गुस्से से नहीं सोच समझ कर काम लेना होगा दीपू"
क्रमशः