"रतन सिंह को सजा होगी न दीदी "दीपू ने अवनी से कहा
" दीपू जब तक मैं इन्हे सजा ना दिला दूं हार नहीं मानूंगी बस तुम सब विश्वास बनाए रखना। कब तक वह भाड़े के टट्टू के सहारे हमें डराएगा "
"जी दीदी हम सब आपके साथ ही हैं"
" अवनी सुबह कुछ बातें अधूरी रह गई थी यदि तुम्हे एतराज ना हो तो मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं "अनील ने अवनी से सका ।
"हां पूछो "
"तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि तुम मुझे जानती हो।"
" मुझे ऐसा क्यों लगेगा? मैंने तो पहली बार आपसे बात की है" अवनी ने अपनी भावनाओं को छुपाते हुए कहा।
" पर मुझे लगता है जब से मैंने तुम्हें पहली बार देखा है तब से। जब तुम मुझसे पहली बार टकराई थी तब मेरी आंखों के सामने वही विजन दिखाई दिया जो मुझे बेहोशी की हालत में दिखाई पड़ता था। हर बार धुंधली दिखने वाली तस्वीर पूरी तरह साफ थी और उसमें तुम थी अवनीतुम । इसीलिए मैं तुम्हारा पीछा करते-करते यहां तक आ गया। और जब मैंने तुम्हें कुसुम को न्याय दिलाने के लिए अपनी परवाह न करते हुएआतताइयों से भिडते देखा तो मुझे पूरा विश्वास हो गया की हो ना हो मेरी तरह तुम्हें भी ऐसे ही कुछ विजन आते हैं। मैं सच कह रहा हूं ना अवनी"
अनिल की बातें सुनकर अवनी सोच में पड़ जाती है की उसे सपने में ऐसे ही दृश्य दिखाई देते थे जिनमें वह और अनिरुद्ध आग की लपटों से घिरे हुए हैं ,और मदद के लिए गुहार लगा रहे हैं। भले ही वह सपना था पर जलने का दर्द उसे महसूस होता था। तो क्या यह अनिल ही अनिरूद्ध है। जिसने पिछले जन्म में मुझे बचाते हुए अपनी जान गवा दी। क्या हमारे ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए ही हमारा पुनर्जन्म हुआ है। पर मैं इसकी बातों पर कैसे विश्वास करूं मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा।"
"क्या सोच रही हो अवनी क्या तुम्हें अभी भी मेरी बातों पर विश्वास नहीं है"
अवनी खामोश रहती हैं इधर ध्रुव को अनिल की बातों से विश्वास हो गया कि अनिल वही है जिसका अवनी वर्षों से इंतजार कर रही थी। ध्रुव अवनी से अलग होने की कल्पना से ही तड़प उठता है। उसके सीने में दर्द उमड पड़ता है। आंखों में भावनाओं का सागर लहराने लगता है। जिसकी लहरें सभी किनारों को छोड़कर बाहर आने के लिए बेताब थीं जिसे रोक पाना अब ध्रुव के बस में नहीं था। इसलिए वह वहां से उठकर थोड़ी दूर चला जाता है और बिना आवाज के रोने लगता है। उसके आंसू पलकों का साथ छोड़कर उसके कपड़े भिगोने लगते हैं। उसे ऐसा महसूस होता है जैसे कोई उसके प्राण उसके जिस्म से अलग कर दे रहा हो ।तभी कुसुम की मां सभी के लिए चाय नमकीन लेकर आ जाती हैं। अवनी ध्रुव को आवाज देकर बुलाती है वह अपने आंसू पोछ कर सबके बीच आ जाता है वह चाय नहीं पी पाता है।
अनिल अवनीको अपनी याद के अनुसार कुछ घटनाक्रम बताने का प्रयास करता है पर अवनी को अभी भी कुछः याद नहीं आता वह पूरी तरह से अनिल पर विश्वास नहीं कर पाती।
"अवनी लगता है तुम्हें अभी भी मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है फिर भी मैं एक मौका और चाहता हूं तुम्हें सब कुछ याद दिलाने के लिए। क्या तुम कल मेरे साथ पहाड़ी वाले मंदिर चल सकती हो ।शायद वहां तुम्हें कुछ याद आ जाए ।"
अवनी सहमति में सर हिला देती है उसके बाद सभी वहां से अपने अपने रुकने के स्थान में चले जाते हैं ।आज अवनी की आंखों से नींद कोसों दूर थी।वह इसी उधेड़बुन में थी कि
"क्या अनिल ही अनिरुद्ध है ?जिसे मैं रोज सपनों में देखती हूं। जब से उसे देखा है न जाने कैसा आकर्षण है जो मुझे उसकी ओर खिचें चले जा रहा है अगर ऐसा है तो मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है।
वर्षों मैने जिसका इन्तजार किया ,जिसके लिये मेरी साँसे चलती हैं ,जिसके लिये मैने न जाने कितने रिश्ते ठुकरा दिये वो अनिल ही है ।जब से मैने उसे देखा है तब से एक अजीब सी कसक दिल में उठती है ।उसकी आखें मुझे अपनी ओर खीचती हैं ।ये दिल जो आज तक किसी के लिये बेचैन नहीं हुआ ,उसके पास होने. से बेतहाशा धडकने लगता है ।उसकी कही हर बात पर यकीन करने का मन करता है ।हे ईश्वर यदि वो ही मेरा अनिरुद्ध है तो मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ।अब मेरा और इंतहान न ले ।मुझे सच का आईना दिखा भगवान ।"