जुग जुग जिए हो ललनवा
अगनवाँ के भाग जागल हो
ललना लाला होइयेहैं कुलवा के दीपक
मनवाँ में आस लागल हो
आजु के दिनवाँ सुहावन रतिया लुभावन हो
ललना दिदिया के होरिला जनमें
होरिलवा बडा सुंदर हो
सासु सुहागिनी बड भागिनि
अन धन लुटावहिं हो
ललना दुअरा पे बजत बधइया
अगनवाँ उठे सोहर हो
ललना लाल होइयेहैं कुलवा के दीपक
मनवाँ में आस लागल हो ............
गांव की कोकिल बैनी स्त्रियां बधाई गीत गा रही थी। किशोरिया ढोलक की ताल पर नृत्य कर रही थी। मंगल गान की धुन पूरी हवेली में गूंज रही थी। हवेली भी आज बंदनवारों और रंग-बिरंगे पुरुष की लड़यों से दुल्हन की भाँति सजाई गई थी ।सैकड़ों नौकर चाकर साफ-सफाई और साज-सज्जा में लगे हुए थे। कुछ शाम को आने वाले अतिथियों की बैठक व्यवस्था का इन्तजाम कर रहे थे ।तरह-तरह के पकवानों की सुगंध वातावरण में भूल कर के हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी ।आखिर ठकुराने में पुत्र ने जन्म लिया है ऐसे उत्सव का होना तो लाजमी है ।हवेली के मुख्य द्वार के पास एक किशोरवय लड़की हवेली से उठने वाली पकवानों की सुगंध की वजह से रुक जाती है ।अनुपम रूप सौंदर्य से युक्त वह लड़की वस्त्रों से गरीब और लाचार दिखाई पड़ रही थी ।दो दिनो की छुधा ने उसे हवेली के आगे ठिठकने पर मजबूर कर दिया था । उसे तरह तरह के पकवानों से कोई सरोकार नहीं था वह बस पेट की आग बुझाने के लिए कुछ रोटियां चाहती थी। इसी आस मे कि शायद कोई उसे कुछ दे जाए, वह हवेली की तरफ टकटकी लगाए देख रही थी। तभी हवेली के चौकीदार की निगाह उस पर पड़ी।
"ए लडकी क्या कर रही है ,चल भाग यहाँ से ।"चौकीदार ने उसे लताडते हुये कहा।
"बहुत जोर की भूँख लगी है ,कुछ खाने को देदीजिए मालिक ।"
"जवान खून होके भीख माँगती है ,शर्म नहीं आती तुझे "
"दो दिन से कुछ नही खाया ,माँ की तबियत ठीक नहीं है सो वो काम पर ना जा पाई ।घर में खाने को कुछ नही है ।माँ ने भी दो दिन से कुछ नही खाया है ।"
"मुफ्त मे खाने को कुछ भी न मिलेगा ,हवेली मे बहुत काम है आज जा जाकर कुछ काम कर ले तुझे भी कुछ खाने को मिल जायेगा ।"
चौकीदार की अनुमति पा कर वह अतिउत्साह से हवेली के अंदर जाती है ।हवेली की सजावट और ठाठ बाठदेखकर वह आश्चर्यचकित हो गई ऐसा मनमोहक दृश्य उसने जीवन में पहली बार देखा था ।