*इस धरा धाम पर अनेक प्राणियों के मध्य में मनुष्य सबसे ज्यादा सामर्थ्यवान एवं शक्ति संपन्न माना जाता है | अनेक प्राणी इस सृष्टि में ऐसे भी हैं जो कि मनुष्य अधिक बलवान है परंतु यह भी सत्य है कि मनुष्य शारीरिक शक्ति में भले ही हाथी , शेर , बैल , घोड़े आदि से कम हो परंतु बौद्धिक बल , सामाजिक बल एवं आत्मिक बल में मनुष्य से शक्तिशाली इस सृष्टि में दूसरा प्राणी नहीं है | इससे आगे बढ़कर मनुष्य द्वारा
विज्ञान , तकनीकी उद्योग , निर्माण इत्यादि ना जाने ऐसी कितनी विधाओं का विकास कर दिया गया है जिसके कारण मनुष्य अपराजेय समझा जाने लगा है | कुछ लोगों को यह कष्ट होता है ईश्वर ने उनके साथ पक्षपात किया है जबकि ईश्वर ने सब को समान रूप से अवसर दिए हैं और प्रत्येक मनुष्य को अनंत संभावनाएं भी दी हैं , अब यह उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि उनका उपयोग किस प्रकार कर पाता है | इतिहास बताता है कि अनेक महापुरुषों ने अपने जीवन में विपन्नता में भी सफलता अर्जित की है | अनेक साधन उपस्थित होने पर एक व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता है वहीं दूसरी ओर साधनों के अभाव में मनुष्य अपनी कर्मठता से नित्य नई सफलताएं प्राप्त करता रहता है , इन सफलताओं का आधार ईश्वर द्वारा प्राप्त शक्ति साधनों का सम्यक उपयोग करना रहा है | किसी सफल पुरुष के पास जितनी शक्तियां उतनी ही शक्तियां परमात्मा ने हमको भी दी है लेकिन अनेक लोग उनका समुचित लाभ नहीं उठा पाते और दोष ईश्वर को देते हैं | जबकि इश्वर को समदर्शी कहा गया है और ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को समान अवसर प्रदान किये हैं |* *आज समाज में अनेक लोग ईश्वर के ऊपर पक्षपात करने का दोष लगाते देखे जा सकते हैं | कुछ लोग कहते हैं कि परमात्मा ने कुछ लोगों को अधिक शक्ति दे दी है और कुछ लोगों को शक्ति देने में पक्षपात कर दिया , जबकि यह शंका पूर्ण रूपेण निराधार है | क्योंकि मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक समझ पाया हूं कि ईश्वर ने प्रकृति के माध्यम से सभी प्राणियों को समान अवसर प्रदान किए है परंतु अधिकतर लोग इन शक्तियों का उपयोग व्यर्थ के उद्देश्यों को पूरा करने में लगा देते हैं , जिनका परिणाम कुछ नहीं निकलना होता है | ऐसे कार्यों से मनुष्य को ना तो कुछ लौकिक लाभ मिलता है और ना ही आत्मिक संतोष , और वे जीवन भर अभावग्रस्त ही दिखाई पड़ते हैं | कुछ लोग शक्तियों के दुरुपयोग में इंद्रियों का दोष देते हैं परंतु सत्यता यही है कि मूल जड़ हमारे मन एवं हमारे विचारों के भीतर है | मन में जन्म लेने वाली कामना , वासना एवं विषयभोगों को भोगने की लालसा इंद्रियों को उस दौड़ में लगा देती है , और हम मृगतृष्णा में सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं | ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों का , साधनों का समुचित उपयोग करके ही मनुष्य सफल हो सकता है |* *प्रत्येक मनुष्य को संयमित व अनुशासित होकर के रचनात्मकता की दिशा में बढ़ना चाहिए एवं शक्तियों के संचय के लिए अपनी इंद्रियों पर संयम रखना चाहिये |*