क्यों ये मन कभी शांत नहीं रहता ?ये स्वयं भी भटकता है और मुझे भी भटकाता है।कभी मंदिर, कभी गॉंव, कभी नगर, तो कभी वन।कभी नदी, कभी पर्वत, कभी महासागर, तो कभी मरुस्थल।कभी तीर्थ, कभी शमशान, कभी बाजार, तो कभी समारोह।पर कहीं भी शांति नहीं मिलती इस मन को।कुछ समय के लिये ध्यान हट जाता है बस समस्याओं से।उसके
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम* 🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲 *जय श्रीमन्नारायण*🦚🦜🦚🦜🦚🦜🦚🦜🦚 *जीवन रहस्य*🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 यह जीवन परमपिता परमेश्वर ने कृपा करके हमें प्रदान किया जिसे पाने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं जितने भी सजीव शरीर हैं उनमें मानव शरीर की महत्ता सबसे अधिक
पता नहीं ये जो कुछ भी हुआ, वो क्यों हुआ ?पता नहीं क्यों मैं ऐसा होने से नहीं रोक पाया ?मैं जानता था कि ये सब गलत है।लेकिन फिर भी मैं कुछ नहीं कर पाया।आखिर मैं इतना कमजोर क्यों पड़ गया ?मुझमें इतनी बेबसी कैसे आ गयी ?क्यों मेरे दिल ने मुझे लाचार बना दिया ?क्यों इतनी भावनाएं हैंइस दिल में ?क्यों मैंने अ
जीवन एक रास्ते जैसा लगता है मैं चलता जाता हूँ राहगीर की तरह मंजिल कहाँ है कुछ पता नहीं रास्ते में भटक भी जाता हूँ कभी-कभीहर मोड़ पर डर लगता है कि आगे क्या होगा रास्ता बहुत पथरीला है और मैं बहुत नाजुक दुर्घटनाओं से खुद को बचाते हुए घिसट रहा हूँ जैसे पर रास्ता है कि ख़त्म होने का नाम नहीं लेता कब तक और
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 *श्री राधे कृपा ही सर्वस्वम*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *जय श्रीमन्नारायण जय जय श्री सीताराम* 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 *सुखी जीवन के लिए क्षमा करना सीखें* सामाजिक जीवन में राग के कारण लोग एवं काम की तथा द्वेष के कारण क्रोध एवं पैर की वृत्तियों का संचार होता है क्रोध के लिए संघर्ष कल
*💐 श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम 🌹*☘🌳☘🌳☘🌳☘🌳 *जय श्रीमन्नारायण**जय श्री सीताराम*🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 *जीवन के विविध रंग*🌲🌷🦜🌳🌷☘🦚☘💐🌹 जीवन और मृत्यु यह दोनों परस्पर मानव जीवन की अभिन्न अंग है दोनों का संबंध परस्पर जुड़ा हुआ है जीवन का उपभोग वैसे तो मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी कीड़े मकोड़े
यह कविता मेरी दूसरी पुस्तक " क़यामत की रात " से है . इसमें प्रेम औ रदाम्पत्य जीवन के उतार-चढ़ाव पर जीवनसाथी द्वारा साथ छोड़ देने पर उत्पन्न हुए दुःख का वर्णन है .तुमने ऐसा क्यों किया जीवन की इस फुलवारी में, इस उम्र की चारदीवारी में।आकर वसंत भी चले गये, पतझड़ भी आकर चले गय
Hausale buland rakh aie pathik tu Zamane ki in chingariyon me Kahin jhulas na jana tuNam unhi ke hua karte hain sangemarmar ki deevaron par Jisane apne lahoo k katron ko Chhint kar sajai thi apne armano ki dunia koHatash ho ,nirash ho eisa jazba na rakh kabhiDil me apne.. Jab thaan hi li
*🌹श्री राधे कृपा ही सर्वस्वम🌷* *जय श्रीमन्नारायण* आज समाज की दयनीय स्थिति जीवन में अधिक पाने की लालसा का खत्म ना होना जीवन को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है की अंततोगत्वा कोई भी साथ में चलना पसंद नहीं करता दोष दूसरों को देते हैं और अपनी तरफ कभी ध्यान नहीं देते एक दृष्टांत याद आ रहा है एक राजा था
पचास साल की उम्र पूरी होने के बाद शुरू होती है दूसरी पारी।भागदौड़ भरी जिन्दगी को अलविदा कहकर पूरे करने होगे अधूरे रह गये सपने।अपनी रुचि के काम जैसे बागवानी,जरूरतमंद की मदद के लिए नरसेवा-नारायण सेवा ओ मूर्तरूप देना,सूखते रिश्तो को समय के जल से सीचना,सामाजिक सरोकार विषय पर लेखन के साथ प्रेरणादायक प्रस
*इस सृष्टि में आदिकाल से सनातन धर्म विद्यमान है | सनातन धर्म से ही निकलकर अनेकों धर्म / सम्प्रदाय एवं पंथ बनते - बिगड़ते रहे परंतु सनातन धर्म आदिकाल से आज तक अडिग है | यदि सनातन धर्म आज तक अडिग है तो इसका मूल कारण है सनातन के सिद्धांत एवं संस्कार , जिसे सनातन की नींव कहा जाता है | इस संसार में नींव
*मानव जीवन में शत्रु - मित्र , दिन - रात , सकारात्मकता - नकारात्मकता की तरह ही सुख एवं दुख भी आते जाते रहते हैं | यह सारे क्रियाकलाप या रिश्ते - नाते मनुष्य की सोच के ऊपर निर्भर होते हैं | यह मनुष्य स्वयं तय करता है कि वह सुखी रहना चाहता है या दुखी ? क्योंकि इसके मूल में मनुष्य की सोच ही होती है |
*परमपिता परमात्मा के द्वारा इस समस्त सृष्टि में चौरासी लाख योनियों का सृजन किया गया , जिसमें सर्वश्रेष्ठ बनकर मानव स्थापित हुआ | मनुष्य यदि सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है तो उस का प्रमुख कारण है मनुष्य की बुद्धि , विवेक एवं विचार करने की शक्ति | मनुष्य यदि अपने विचार शक्ति पर समुचित नियंत्रण कर
जाने कब नज़र बदल जाए, जो आज अपने हैं वो पराए बन जाएं। आईना भी संभल कर देखना , जाने कब अपनी ही नजर लग जाये। ख्वाबो को दामन मे सहेज कर रखना , जाने कब किस्मत के सितारे बदल जाएं ।दर्द को भी निगाहों मे छिपा कर रखना , जाने कब दर्द ही दवा बन जाये। हवाओं से भी शर्त लगा लेना , जाने कब हम हवाओं से भी आगे निकल
*इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियों में सर्वोत्तम योनि मनुष्य की कही गयी है | अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में मनुष्य यत्र - तत्र भ्रमण करता रहता है इस क्रम में मनुष्य को समय समय पर अनेक प्रकार के अनुभव भी होते रहते हैं | परमात्मा की माया इतनी प्रबल है कि मनुष्य उनकी माया के वशीभूत होकर काम , क्रोध , मोह , प
वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यबस्था जो की ब्रिटिश हुक़ूमत के समयानुसार भारतीय मूल्यों व् सभ्यता-संस्कृति को सामान्य भारतीय जन-मानस के मन-मष्तिस्क में स्वयं का ही परिहास कराकर पच्छिमी भौतिक वैज्ञानिक शिक्षा को ही सर्वमान्य परपेछित कर आज के भारतीय युवा-वर्ग को सीमित बौद्धिक छमताओ में किसी श्रापबंध से बांध
तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्
दादा-दादी, चाचा-चाची, भुआ, ताऊजी और मामा-मामी, मौसी ऐसे कई रिश्ते हैं जिनसे एक बड़ा परिवार बनता है. ये रिश्ते ही हमें अच्छे संस्कार सिखाते हैं. हमें परिवार के साथ जीना सिखाते हैं. पहले एक ज़माने में एक ही घर में कम से कम 12 से 15 लोग रहते थे मगर आज 2 से 4 ही लोग रह पाते
जीवन के अध्याय जिन्दगी में हर पल एक नई चुनौतियों को लेकर आता हैं,जो असमान संघर्षो से भरा होता हैं.इस पल को सामने पाकर कोई सोचने लगता हैं कि शायद मेरे जीवन में नया चमत्कार होने वाला हैं.अर्थात् सभी के मन में चमत्कार की आशा पैदा होने लगती हैं.चुनौतियां जो इंसानी जीवन क
जिन्दगी में हर पल एक नई चुनौतियों को लेकर आता हैं,जो असमान संघर्षो से भरा होता हैं.इस पल को सामने पाकर कोई सोचना लगता हैं कि शायद मेरे जीवन में नया चमत्कार होने वाला हैं.अर्थात् सभी के मन में चमत्कार की आशा पैदा होने लगती हैं.चुनौतियां जो इंसानी जीवन का अंग है,जो इन चुनौतियों का सामना दृढता के साथ क