वो हमेशा कहते, जो भी करो, सुर में करो, बेसुरापन इंसानियत का सबसे बड़ा गुनाह है। लोग गरीब इसलिए नही होते कि उनके पास पैसे नही होते। वो गरीब होते हैं क्यूं कि उनको सुर में रहने का इल्म नही होता...!
... बहुत बाद में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब से भी यही बात सुनी...!
चचा जान ने हमसे एक बार कहा, देखो, तुम मेरे बेहद अजीज हो इसलिए कहता हूं, अच्छा बुरा कुछ नही होता। ये सब आदमी की अपनी गढ़ी हुई बेकार की घिसी-पिटी मोरैलिटी है। इस संसार में दो ही सत्य हैं- सुर और बेसुर। आवारगी भी अगर सुर में करो, तो मुकम्मलियत ही होगी...।
... ये जो बाप और चचा होते हैं, इनके साथ एक ही परेशानी है। बात कह कर निकल लेंगे और आप उमर भर सोचते रहिए कि वो जो बात कही, वो असल में कौन से मायने मतलब से कही...!
अब देखिए, ये जो विस्डम आफ वर्ड्स है, ये आपके चारों और वैसे ही बिखड़ा पड़ा है जैसे हवा। अब ये हवा आपको खुद ही अपनी नाक के जरिए फेफड़े में पहुंचानी पड़ती है। कोई ये काम आपके लिए नही कर सकता। रिवेलेशन इस वेरी इंडिविज्युलिसटिक ।
चचा जान ने ही एक कहानी सुनाई। बताया, कि एक नामी संगीतकार मरते वक्त अपने शिष्यों के बहुत पूछने पर बोले, सबसे उम्दा और महान संगीत है हृदय की करुणा। उसके ही सुर को साधो, जीवन-संगीत शायद सध जाये...।
उनकी इस विस्डम में मैने कुछ अपने सुर जोड़ दिए। गाइए करुणा के ही सुर, पर ये शर्त ना रखिए कि लोग वही सुने जो आप गा रहे हैं। ये भी उम्मीद ना रखिए कि आपके सुर को सराहना मिलेगी। एक उमर गुजर जाएगी खुद ही समझने में कि सात सुरों में ही करुणा के कितने राग बन सकते हैं। दूसरों को सुनाने की बात जब तक आएगी, तब वक्त आ चुका होगा...।
अपना सुर अपना ही संगीत बनाता है। गाइए, जिनको ये सुर समझ में आयेंगे, ये तय है, वो आपको दाद नही देंगे। बस पास बैठ कर रोएंगे। करुणा शब्द नही पैदा करती। शब्दों को पिघला देती है। अश्क बना देती है...