*सम्पूर्ण सृष्टि परमपिता परमात्मा के द्वारा निर्मित है | इस सृष्टि में वन , नदियाँ , पहाड़ , जलचर , थलचर एवं नभचर सब ईश्वर को समान रूप से प्रिय हैं | मनुष्य उस ईश्वर का युवराज कहा जाता है | युवराज का अर्थ है राजा का उत्तराधिकारी जो राजा द्वारा संरक्षित वस्तुओं का संरक्षण करने का उत्तरदायित्व सम्हाले | प्रकृति में उपस्थित पहाड़ों का सदियों से मानव
समाज से गहरा नाता रहा है | हमारे
देश भारत में उपस्थित हिमालय पर्वत को "पर्वतराज" कहा गया है | इन्हीं पर्वतों की कन्दराओं में अनेक ऋषियों ने तपस्या की है तो इन्हीं पहाड़ों पर मानव का पोषण करने वाली अनेकानेक औषधियाँ भी हैं | पहाड़ प्रकृति का विस्तार है , वे आकाश को छू लेने की अभिलाषा है | पहाड़ों से मानव जाति को अनेक लाभ हैं | पहाड़ों की हरियाली से आकर्षित होकर बादल वर्षा का कारण बनते हैं , इसके अतिरिक्त प्रकृति के संतुलन बनाये रखने में पहाड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका है | इन पहाड़ों के संरक्षण का भार भी उस परमात्मा के युवराज अर्थात मनुष्य पर ही है | परन्तु मनुष्य अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कितनी गम्भीरता से कर रहा है यह किसी से छुपा नहीं है |* *आजकल परिदृश्य यह है कि गगनचुंबी पहाड़ अपना स्वरूप होते जा रहे हैं | इन गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाओं के स्थान पर मानव निर्मित निर्माण दिखाई पड़ रहे हैं | मनुष्य को विचार करना चाहिए कि प्रकृति ने इस सृष्टि में अपने सभी अंगों को भली प्रकार से पनपने और फलने फूलने का अवसर प्रदान किया है इसी कारण यह सृष्टि इतनी सुंदर दिखाई पड़ती है परंतु आज का मनुष्य सब कुछ काट छांट कर उसे भले ही अपने अनुसार सुंदर बनाने का प्रयास कर रहा हो परंतु प्रकृति के अनुसार यह सुंदर नहीं बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण है | आजकल मनुष्य की भावना पहाड़ों पर विजय प्राप्त करने की सी दिख रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूं कि आज हम पहाड़ों का स्वरूप किस प्रकार बदल रहे हैं ! किस तरह से नष्ट कर रहे हैं यह किसी से छुपा नहीं हुआ है | मनुष्य ने प्रारंभ में पहाड़ों पर चढ़ने के रास्ते बनाए और फिर धीरे-धीरे उन पर मकानों का निर्माण होने लगा और जब मकान बने तो वहां तक जाने के लिए सड़कों का निर्माण भी सरकारों द्वारा किया जा रहा है , सड़क निर्माण के पहले भयंकर विस्फोट करके पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है | यही कारण है कि आये दिन भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं से आज का मनुष्य जूझ रहा है |* *सनातन
धर्म में पहाड़ सदैव पूजनीय एवं देवस्वरूप रहे हैं | अतः हमें अपने देश के पर्वतों के महत्व को समझते हुए उनके संरक्षण व समृद्धि के उपाय करने चाहिए और उन्हें नष्ट होने से बचाना चाहिए |*