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कविता

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प्रदत शीर्षक- अलंकार, आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर दोहा “मुक्तक” गहना भूषण विभूषण, रस रूप अलंकार बोली भाषा हो मृदुल, गहना हो व्यवहार जेवर बाहर झाँकता, चतुर चाहना भेष आभूषण अंदर धरे, घूर रहा आकार॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

“मुक्तक”प्रदत शीर्षक- दर्पण,शीशा ,आईना,आरसी आदिशीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतेंतहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

"कुंडलिया"लालीउगी सुबह लिए, पूरब सूरज तातनवतरकिरणें खेलती, मन भाए प्रभातमन भाएप्रभात, निहारूँ सुन्दर बेलाभ्रमरभंगिमा प्रात, पुष्प दिखलाए खेलाकहगौतम चितलाय, सुहानी बरखा आलीघटतबढ़त निशि जाय, पल्लवित हर्षित लाली।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

“कुंडलिया” नाचत घोर मयूर वन, चाह नचाए ढेलचाहक चातक है विवश, चंचल चित मन गेल चंचल चित मन गेल, पराई पीर न माने अंसुवन झरत स्नेह, ढेल रस पीना जाने कह गौतम चितलाय, दरश आनंद जगावतमोर पंख लहराय, टहूंको मय लय गावत॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

यह चार पदों(पंक्तियों मे) लिखा जाने वाला वार्णिक छंद है। इसमे वर्ण अर्थात अक्षरों की गिनती होती है, 8/8/8/7 पर यति अर्थात प्रति पंक्ति 31 वर्ण, भाव प्रभाव रचना मे तुकांत लघु गुरु पर अनिवार्य।"मनहर घनाक्षरी" दाना मांझी को बताई, प्रशासन ने अधिक, लाचारी जो लिए चली, चलन बीमा

प्रदत शीर्षक- दर्पण ,शीशा ,आईना,आरसी आदि “मुक्तक” शीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतें तहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

"एक बेटी- शिक्षिका बनने की ख़ुशी" ख़ुशी मिली है ख़ुशी मिली है यारों मुझको ख़ुशी मिली है......मेहनत लगन अधीर हुई थी करम करत तन पीर हुई थी आशा और निराशा के संग बोझिल यह तकदीर हुई थी आज मुझे भी सुबह मिली है यारों मुझको ख़ुशी मिली है...... अक्षर अक्षर लकीर हुई थी शब्द सुलह

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जब दर्द न था,जिंदगी का पता न था । अब लंबी उम्र की दुआ ,ख़ौफ़ज़दा करती है । अपनी मर्ज़ी से मैं, न आया, न जाऊँगा । होगी विदाई बिना मर्जी । पुकारता हूँ तो वो नहीं सुनता ,क्यों आवाज़ दूं उसे ,ए जिंदगी । दिखलाके आइना ,चेहरा उसे दिखाए कोई । सुनते है बड़ा मोम है । मैं बेतजुर्बा हूँ । मुझे मालूम नहीं ।

बेटो के बीच मे गिरे है रिश्‍तो के मायनेकैसे कहूँ कि इस झगड़े की वजह मे नही हूँ |कुछ और दिन रुक कर बाट लेना ये ज़मींमाना मै मर रहा हूँ, लेकिन मरा नही हूँ ||

@@@@ अपने हुनर को तराश इतना @@@@****************************************************अपने हुनर को तराश इतना ,कि तूदुनिया का सरताज हो जाये |हर ताज रहे तेरी ठोकर में ,और तू बादशाह बेताजहो जाये||अपने इल्म को निखार इतना, कि हर नजर दीदारको बेताब हो जाये |छू ले तू हर बुलन्दी को , और सच्चे तेरे ख्वाबहो जाये

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कुछ खोई खोई अपने सपनों मेंअपनी मुश्कान मेंअपने ही ख्यालों में अनजानी सी ....आवाज में वह नमी हैऔर पहचान भर बातेंदूर से छूती है दिल कोऔर लहराते बालो कोसँभालते गुजर जाती है अपनी एक अंजान पहचान छोड़करकोई नाम नहींकोई अनाम भी नहींकुछ सुहाने लम्हों को छोड़जाती है वह .....

कभी हाथों से से मिट्टी को तरासते,तो कभी पत्थरों को नए रूप में गढ़ते,कभी रंगों से कागज पर नयी दुनिया बसाते,या फिर मधुर संगीत की लहरी में हमें डुबाते,हैं तो वो आम हम सब के जैसे, पर लगें हम सबसेभिन्न हैं

टिमटिमाते तारे की रोशनी में मैंने भी एक सपना देखा है । टुटे हुए तारे को गिरते देखकर मैंने भी एक सपना देखा है । सोचता हूं मन ही मन कभी काश ! कोई ऐसा रंग होता जिसे तन-बदन में लगाकर सपनों के रंग में रंग जाता । बाहरी रंग के संसर्ग पाकर मन भी वैसा रंगीन हो जाता । सपनों से जुड़ी है उम्मीदे

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गुस्ताख़ रही मेरी नज़रेंतो शिकायत आपको रही / भला आपके हुस्न के फिदरत कि शिकायत हमने की है कभी/ कि बड़ी तल्क है आपकी नज़रें गिरती हैं शोले बनकर और दिल कहता है शिकायत नहीं हो

मध्यप्रदेशऔरछत्तीसगढ़मेंबाढसेतबाहीमुख्यमंत्री ने अफसरों के साथ समीक्षा की उत्तर प्रदेश में सभी नदियों का जलस्तर बढ़ा मुख्यमंत्री और उनके चाचा एक मंच पर दिखे प्रधानमंत्री पाक अधिकृत कश्मीर पर चिंतित उम्र ने अपना घर संभालने की नसीहत दीदिल्ली का मुख्यमंत्री जनमत संग्रह कराएगाप्रधानमन्त्री को भी काम करना

@@@@@@ इन्सान @@@@@@*********************************************सृष्टि का सबसे विचित्र , प्राणी है इन्सान |जीता है वो जिन्दगी,दिखा कर झूठी शान ||नहीं जी पाता वो कभी,सीधी सहज जिन्दगी |झूठ और कपट की ,करता उम्र भर बन्दगी ||बड़ा होना चाहता बचपन में, पचपन में चाहता फिर बचपन |अजीब है इन्सान की फितरत,जिन्द

हर मोड़ पर मिलते है यहाँ चाँद से चेहरेपहले की तरह क्यो दिल को नही भाते ||बड़ी मुद्दतो बाद लौटे हो वतन तुम आजपर अपनो के लिए कुछ आस नही लाते ||काटो मे खेल कर जिनका जीवन गुज़राफूलो के बिस्तर उन्हे अब रास नही आते||किसान, चातक, प्यासो आसमा देखना छोड़ोबादल भी आजकल कुछ खास नही आते ||

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सखी री मोरे पिया कौन विरमाये? कर कर सबहिं जतन मैं हारी, अँखियन दीप जलाये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... अब की कह कें बीतीं अरसें, केहिं कों जे लागी बरसें, मो सों कहते संग न छुरियो, आप ही भये पराये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... गाँव की

@@@@@ बो विश्वगुरु भारत देश कठे @@@@@ ******************************************************* मानवता है धर्म जकारो ,बे मिनख भलेरा आज कठे | भ्रष्टाचार ने रोक सके , इसो भलेरो राज कठे || पति रो दुखड़ो बाँट सके ,बा सती सुहागण नार कठे| घर ने सरग बणा सके ,बा लुगाई पाणीदार क

@@@@ कथित आधी घरवाली @@@@ ****************************************** उससे है रिश्ता ऐसा जो बोलचाल में गाली है | नाम है गुड्डन उसका,वो मेरी प्यारी साली है || शालीनता की प्रतिमूर्ति,वो नजर मुझको आती है | शर्म के मारे वो साली मेरी,छुईमुई बन जाती है || जब कभी किसी बात पर,वो म

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