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कविता

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"कुंडलिया" महिमा माँ की पावनी, गई शरद ऋतु आय नव रजनी नव शक्ति की, नव दुर्गा हरषाय नव दुर्गा हरषाय, धरे नव रूप निराली साविध पूजत लोग, सजाएँ अपनी थाली कह गौतम चितलाय, प्रदायक अणिमा गरिमा करहु मनोरथ पूर्ण, आप की अनुपम महिमा।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

जिस देश के मोदी नेता हैं और जो डोवालों से रक्षित हैंभावी पीढ़ी जान ले अब उसका मुस्तकबिल सुरक्षित हैभारत के ताकतवर होने का असल समय अब आया है तभी काल ने पारिक्कर जैसे बेटे को रक्षा मंत्री बनाया है राजनाथ भी अब मोदी जी संग भारी भरकम लगते हैं सुरेश प्रभु और गडकरियों हाथों

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कहा था हमसे मत उलझो ।अब भुगतो ।सब्र का प्याला छलक गया ।अब भुगतो ।प्याला छलका है,बांध नहीं टूटा है अभी ।अब भी सुधर आओ वर्ना ,फिर भुगतो ।बांध टूटा तोभुगत भी न पाओगे ।कहाँ बह जाओगेकुछ खबर भी न पाओगे ।

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एक दर्द जो एक न एक दिन सबको मिल ही जाती है वह है मौत काजो सबको डराती है कोई दर्दनाक मरता है तो कोई बड़े आसानी से पर मंजिल सबकी एक होती है चाहे वह राजा हो या रंकजाना तो सबको वही हैंपर कहाँ ?किसे पता मौत कहाँ ले जाती है ?सपनो के दुनिया म

शीर्षक मुक्तक प्रदत शीर्षक- किरण- ज्योति, प्रभा, रश्मि, दीप्ति, मरीचि। “मुक्तक” भारती धरा अलौकिक है न्यारी है लालिमा भोर भाए किरण दुलारी है ब्रम्ह्पूत्र सिंधु नर्मदा गंगा कावेरी हिमालयी रश्मि प्रभा तिमिर ध्रुजारी है महातम मिश्र, गौतमगोरखपुरी

गीतात्मक मुक्त काव्य, अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें चाखी कितनी बानगी, चल अब लौट चलें..... खट्टा मीठा, कड़वा तीखा स्वाद सुबास, निस्वाद सरिखा ललके जिह्वा, जठर की अग्नि चातक चाहे, प्रीत अनोखा॥...... अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें........... कलरव करता, उड़ें विहंगा

"कुंडलिया" मानव के मन में बसी, मानवता की चाह दानव की दानत रही, कलुष कुटिलता आह कलुष कुटिलता आह, मुग्ध पाजी पाखंडी वंश वेलि गुमराह, कर दें नराधम दंडी कह गौतम चितलाय, पाक में घर घर दानव भारत राह दिखाय, बनो मत बैरी मानव।। महातम मिश्र, गौतम गिराखपुरी

जब भी मेरा भारत महान होता हैमेरा दिल सारे जहाँ से अच्छाहिन्दोस्तां होने को बेताब होता हैघूसखोर हाथों से जब तिरंगा फहरता हैमेरा दिल क्यों इतना कहरता हैबापू तुम तो भ्रष्ट ऑफिसों में टंगे होघुस के लिफाफे में लाखों करोङो में बंधे होतुम्हारे आज़ाद बन्दर न बुरा देखते हैंन बुरा सुनते है न ही बुरा कहते हैसि

@@एक दिन मानेगा तुझे,ये सारा संसार@@*********************************************पवित्र तुम्हारा प्यार है ,पवित्र तुम्हारे विचार |एक दिन मानेगा तुझे ,ये सारा संसार ||अभावों के रेगिस्तान में ,तुम मीठा जल बनो |दबी-कुचली नार का , तुम मजबूत सम्बल बनो ||देश की हर समस्या का ,तुम सटीक हल बनो |भारत के इस वर

बेटीयह कविता देश की दोनों बेटियों को समर्पित है जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतकर देश का मान सम्मान बढ़ाया है एवं उन लोगों के लिये कटाक्ष है जो कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं, या बेटी होने पर उपेक्षा करते हैं।जन्म लिया कन्या ने घर में, सन्नाटा पसर गया।माँ-बाप, दादा-दादी का सपना बिखर गया।चाहत थी सबको बेटे

शीर्षक मुक्तक आयोजन, अहंकार- दंभ, गर्व, अभिमान, दर्प, मद, घमंड, मान शब्द आन बान अरु शान पर, बना रहे अभिमान अहंकार जिसने किया, उसका मर्दन मान दंभ भर रहा पातकी, बेबुनियादी पाक मद घमंड में चूर है, बचे न नाम निशान॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

“कुंडलिया” ढोंगी करता ढोंग है, नाच जमूरे नाच बांदरिया तेरी हुई, साँच न आए आंच साँच न आए आंच, मुर्ख की चाह बावरी हो जाते गुमराह, काटते शीश मदारी कह गौतम चितलाय, पाक है पंडित पोंगी अस्त्र शस्त्र पकड़ाय, आतंक परोषे ढोंगी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

“पिरामिड”रे पाकहेकड़ी दिखाता है पीठ पीछे से वार कायर का दानत गिराता है।ले देख अपनी आँखों से कारगिल बंगला देश बचा ले लाहौर आँख तूँ मिलाता है॥ महातम मिश्र

"मनहर घनाक्षरी" बहुत विचार हुआ, दिल से करार हुआ, अब हिल मिल सब, मान भी बढ़ाइए राष्ट्र भाषा हिंदी बिंदी, ललिता लाली कालिंदी, कन्या कुमारी काश्मीर, राग धुन गाइए भेष भूसा साथ साथ, राष्ट्र गान सुप्रभात, बीर बलवान त्याग, सैन्य दुलराइए गौतम दुलार घर, वन बाग़ जल थल, माँ भारती

@@@@@@कोई किसी का नहीं@@@@@@******************************************************मुख्य फसल के बीच पनपा ,वह एक खरपतवार था |मातपिता की सन्तानों में ,उसका नम्बर चार था ||माँ की ममता से वंचित ,वो एक ऐसा बच्चा था |युवा हो जाने पर भी ,जो दुनियादारी में कच्चा था ||माँ की ममता का प्यासा,भाभी को माँ समझ बैठ

बेटियाँफूलों की तरह खिलखिलाती हैं।खुशबू की तरह मेहकाती हैं।परियों का रूप लेकर आती हैं।सबकी किस्मत में नहीं होती,किसी किसी घर को ही रोशनाती हैं बेटियां।दुखों में साथ कभी न ये छोड़ती।अपनों से कभी मुंह नहीं मोड़ती।अकेले में बैठ कर चाहे घंटों रो लें।सामने हर दुःख हंस के जर लेती हैं बेटियां।न चाहते हुए भी

@@@@@राम अगर भगवान होते तो @@@@*******************************************************राम अगर भगवान होते तो,त्याग सीता का नहीं करते |सीता को जंगल में भेज ,महलों में मौज नहीं करते ||राम अगर ईश्वर होते तो ,झूठी शान पर मरते क्यों ?गर्भवती सती पत्नी को,घर से बाहर करते क्यों ??राम अगर भगवान् होते तो ,वध

गुमनाम राहो पर एक नयी पहचान हो जाए चलो कुछ दूर साथ तो, सफ़र आसान हो जाए|| होड़ मची है मिटाने को इंसानियत के निशान रुक जाओ इससे पहले, ज़हां शमशान हो जाए|| वक़्त है, थाम लो, रिश्तो की बागडोर आज ऐसा ना हो कि कल, भाई मेहमान हो जाए|| इंसान हो इंसानियत के हक अदा कर दो

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बताया नहीं अपना हाल चाल वग़ैरा,ख़फ़ा हो क्यूँ , ऑफ हो क्यूँ वग़ैरा,हम तो समझते थे कि समझते हैं तुमको,हो गए जाने कैसे हम नासमझ वग़ैरा !ज़रा मानो तो करा दें शॉपिंग वग़ैराडिज़ाइनर साड़ी या फिर मूवी वग़ैरा,टेंशन छोड़ो क्रेडिट कार्ड जेब में है,म

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तुं ही है अभी मंजर में आ देख बहुजनो के बंजर मेंअभी तो सोया हुआ है,कुम्भकर्ण सी नींद में, तुझे जो करना है कर ले अभी हीजागेगा जब बंजर सारा, तेरा मंजर बदल देगा....वक्त की नजाकत का फायदा लिया है तूनेअपने लोगो को सत्ता में देखलाडला बनवाया है तुझेमोहरा जब उतरेगा,वह कफ़न किसी और का पुकारेगा,वह हाल बस होगा,

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