आजकल हमारे देश में नौजवानो के लिए साहित्य से लगाव ही नहीं |कविता,कहानी क्या है जानते ही नहीं |न लेखक को पहचानते हैं न कवि को |साहित्य से दूर ही रहते हैं वो तो आजकल अश्लील वीडियो ,अश्लील मूवीज एंव भोजपुरी के अश्लील गाने एंव फिल्मो को देखना पसंद करते हैं इन सबका हमारे देश मे तेजी से वृद्धि भी हो रहा ह
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहर किसी को आज है, इंतेजार महफ़िल मे मेराफिर भी लगता है कि , बस हम ही बिन बुलाए है||मोहब्बत अगर गुनाह, फिर हम दोनो थे ज़िम्मेदारमहफिले चाँदनी तुम, हम सरे बज्म सर झुकाए है||खामोशी उनकी कहती है, कुछ टूटा है अन्दर तकलगता है जैसे मेरी तरह, वो जमाने के सताए है ||वैसे क्या कम सितम, ज
ना छुपाया गया, ना बताया गया..रिश्ता नाजुक सा था, ना निभाया गया..साँसे बेबस सी थी, बेकरारी भी थी..हालत मेरी जो थी, क्या तुम्हारी भी थी.?दिल बहुत था दुःखा, सब दिल में रखा..दर्द आँखों से मुझसे, ना बहाया गया..रिश्ता नाजुक सा था...की कई कोशिशें, पर समझ ना सका..मैं यूँ घुट घुट जिया, कि तड़प ना सका..कोई बात
रात सिर्फ रात नहींएक मंजिल भी है। सुबह की लगन की दोपहर के सफर की शाम की कथन की। ख्वाब सिर्फ ख्वाब नहीं एक तस्कीन भी है जख्म पर मरहम सी अजनबी चुभन-सी बांहों में दुल्हन-सी। गीत सिर्फ गीत नहीं एक सहारा भी है। तन्हाई में साथी-सा कश्ती में म
जिंदगी है इक झरोखा झांकते रहिये।लक्ष्य से भी अपनी दूरी नापते रहिये। साथ-साथ चलेंगे तो पा ही लेंगे मंजिलें। बस एक दूजे के दु:खों को बांटते रहिये।
सत्य की सड़क मिथ्या की चाैखट पर पहुंचकरमात्र एक गैलरी रह जाती हैऔर शेष भूमि परकविताएं लिख दी जाती हैं,कविताएंजो कभी भी किसी भी सूरत मेंसड्कें नहीं बन सकतीं।प्रशस्ति पत्रों से लिपटी सहमी ग्रामीण दुल्हनों जैसी जीवन भर चक्की पीसती रहती है, रोटियां पकाती रहती है और उधर मिथ्या की काली गैलरी में जेबें काट
नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||शिकायत है मुझे दिन सेजो की हर रोज आता हैअंधेरे मे जो था खोयाउसको भी उठाता हैकिसी का चूल्हा जलता होमेरी चमड़ी जलाता है |कोई तप कर भी सोया है,कोई सोकर थका हारा ||नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||मै जन्मो का प्यासा हूँनही पर प्यास पानी कीना
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजब तक आँखो मे आँसू हैतब तक समझो मे जिंदा हूँ||धरती का सीना चीर यहाँनिकाल रहे है सामानो कोमंदिर को ढाल बना अपनीछिपा रहे है खजानो को|इमारतें बना के उँचीछू बैठे है आकाश कोउड़ रहे हवा के वेग साथजो ठहरा देता सांस को|जब तक भूख ग़रीबी चोराहो परतब तक मै शर्मिंदा हूँ||जब तक आँखो मे आँस
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियआज बैठकर सोचा मैनेक्या खोया क्या पाया हैएक चीज़ जो साथ रहीवो तो बस माँ का साया है||आज मुझे हा याद नहीअपने बचपन की बातेमाँ ने क्या-२ कष्ट झेलेतब मिली मुझे ये काया है||संसार मे जब मैने जन्म लियाना जाने कितना रोया थापर सारी दुनिया को भूलमाँ के आचल मे निडर हो सोया था||मुझे ठीक से
जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नहीउसने पूछा नही, हमने बताया ही नही||कुछ ना समझे वो अगर, इसमे खता मेरी कहाँहाल ए दिल हमने कभी उनसे छिपाया ही नही||मेरी निगाहें है निगेहबान अभी तक उनकीजाने वाला तो कभी लौट कर आया ही नही||याद तन्हाई मैं जब भी तेरी आयी हमकोकैसे कह दूँ क़ि कभी अश्क बहाया ही नही||तेरी दुन
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियवक़्त को क्यो फक़्त इतना गवारा ना थाजिसको भी अपना समझा, हमारा ना था||सोचा की तुम्हे देखकर आज ठहर जाएना चाह कर भी भटका पर, आवारा ना था||धार ने बहा कर हमे परदेश लाके छोड़ाजिसे मंज़िल कह सके ऐसा, किनारा ना था||दुआए देती थी झोली भरने की जो बुढ़ियाखुद उसकी झोली मे कोई, सितारा ना था
रोटी की सही कीमत जानता है ,भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से प
आफिस का अंतिम दिन था, छोड़ना था शहर बस यही सोचता हूँ, कि कैसा होगा सफ़र... उम्मीदे थी बहुत सारी, निकलना था दूरसुबह से ही जाने क्यो, छाया था सुरूरबैठे-२ हो गयी देखो सुबह से सहर कैसा होगा सफ़र......शाम कल की थी, तब से थे तैयारसाथ सब ले लिया, जिस पर था अधिकारचल दिए अकेले ही पर नयी थी डगर
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियतेरे शहर मे मैने गुज़ारी थी एक जिंदगीपर कैसे कह दूं हमारी थी एक जिंदगी ||जमाने से जहाँ मेने कई जंग जीत लीवही मोहब्बत से हारी थी एक जिंदगी ||मुझको ना मिली वो मेरा कभी ना थीतुमने जो ठुकराई तुम्हारी थी जिंदगी ||महल ऊँचा पर आंशु किसी के फर्स परतब मुझको ना गवारी थी एक जिंदगी ||कलम
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजिंदगी के उस मोड़ पर(यह कविता एक प्रेमी और प्रेमिका के विचारो की अभिव्यक्ति करती है जो आज एक दूसरे से बुढ़ापे मे मिलते है ३० साल के लंबे अरसे बाद)जिंदगी के उस मोड़ पर आकर मिली हो तुमकी अब मिल भी जाओ तो मिलने का गम होगा|माना मेरा जीवन एक प्यार का सागरकितना भी निकालो कहा इससे कु
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजो भी आए पास सब दूर हो गयेतोड़ा हुए बदनाम तो मशहूर हो गये||कल तक जो दूसरो से माँगकर के जिंदा थेजीता चुनाव आज जो वो हुजूर हो गये||हम भी तो कल तक दफ़न थे चन्द पन्नो मेबाजार मे बिके जो सबको मंजूर हो गये||पहाड़ो से टकराकर के
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घरकैसी होगी ज़मीन, वो कैसा होगा शहरहाथो मे हाथ रहे, तू हरदम साथ रहेकुछ मै तुझसे कहूँ, कुछ तू मुझसे कहेमै सब कुछ सहुं, तू कुछ ना सहेसुबह शुरू तुझसे, ख़त्म हो तुझपे सहरजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...कुछ तुम चलोगी, तो कुछ मै चलूँगाकभी तुम थकोग
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियअब इन राहो पर सफ़र आसान लगता हैजो गुमनाम है कही वही पहचान लगता है||जिस शहर मे तुम्हारे साथ उम्रे गुज़ारी थीकुछ दिन से मुझको ये अनजान लगता है||कपड़ो से दूर से उसकी अमीरी झलकती हैमगर चेहरे से वो भी बड़ा परेशान लगता है||मुझको देख कर भी तू अनदेखा मत करतेरा मुस्करा देना भी अब एहसान
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|अगर माँग हे सीधीया फिर जुल्फे है उल्झीना करो जतन इतनासमय जाए लगे सुलझीदौड़ी चली आओ तुम,ज़ुल्फो को बिखरा रहने दोजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|कुछ सोई नही तुमआधी जागी चली आओसुनकर मेरी आवाज़ऐसे भागी चली आओजल्दी मे अगर छूटे कोई गहना,या
वो शायर था, वो दीवाना था, दीवाने की बातें क्यूँकवि:- शिवदत्त श्रोत्रियमस्ती का तन झूम रहा, मस्ती मे मन घूम रहामस्त हवा है मस्त है मौसम, मस्ताने की बाते क्योइश्क किया है तूने मुझसे, किया कोई व्यापार नहीसब कुछ खोना तुमको पाना, डर जाने की बाते क्योबड़ी दूर से आया है, तुझे बड़ी दूर तक जाना हैमंज़िल देखो