भाग 12
केवल नाथ गुरुजी आकर अलख जगाते हैं ,अलख निरंजन ,!!आदेश !!जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला,सीता देवी और बाकी लोग भी बाहर आकर प्रणाम करते हैं बच्चे तो दोनो ही शहर जा रहे थे, ठाकुर साहब नहाते नहाते आदेश सुन कर रुक जाते हैं, उनके अंदर का शैतान क्रोधित हो उठता है, पर वह कुछ कर भी तो नहीं सकता था, वह एक झटके में उठाकर पूरा गरम पानी ऊपर डाल लेता है , तभी सर्वेश कि आवाज आती हैं " डैड जल्दी आइए हम दोनों को जाना है,,"!! वह पानी पोचता ही नही उसी पर कपड़े चढ़ा कर बाहर आ जाता है ,उसके कपड़े भी गीले ही रह जाते हैं , दोनो बच्चे उनके चरण छूते हैं , वह आशीर्वाद के रूप में कुछ बुदबुदा देता है, दोनो बच्चे चरण छूकर चौक जाते है क्योंकि उनके पिता का पर बर्फ की तरह ठंडा था पर जाने की जड़ी में उतना ध्यान नही देते हैं, दोनो बाहर आते हैं गुरु जी बाहर ही चेयर पर बैठे हैं,दोनो गुरुजी का चरण छूते हैं तो गुरुजी उन्हे दो ताबीज़ देते है और कहते हैं " जब तक मैं न कहूं तब तक इसे उतरना नही चाहे कुछ भी हो जाए, और गुरुजी सभी घर के लोगो को ताबीज़ देते हैं, यहां तक कि भोलू और किटी के लिए भी लाए थे ,सभी तो थे पर किटी गायब थी, दोनो बच्चे गाड़ी लेकर जाते हैं , सीता काली से किटी को खोजने के लिए कहती हैं अब उन्हे भी याद आता है कि सुबह से किटी कि आवाज ही नहीं सुनी ,सुबह से कचरू बाजार से आते वक्त नहर का किस्सा ले आया था और सबके दिमाग तो उसी में चकराया हुआ था कि आखिर गांव में हो क्या रहा है, पूरे गांव में तो यही चर्चा चल रही थी ,कोई जानवरो का करतब बता रहा था तो कोई नगर के शैतान का जबकि नहर में कोई शैतान तो है ही नही, कुछ स्थानीय नेता भी आ गए थे अपनी दुकान चलाने के लिए, सभी अपनी अपनी रोटी सेकना चाहते हैं ,"!!
ठाकुर साहब के रूप में शैतान हाल में परेशान घूम रहा है , उसे सभी लोग बाहर चलने के लिए बोल चुके हैं पर वह बाहर नहीं जा रहा है , तो केवल नाथ कहते हैं "कोई बात नही आप लोग बाहर रुकिए मैं स्वयं मिल कर आता हूं, वह कुछ मंत्र पढ़कर अक्षत हाथ में लेते हैं और फिर दरवाजे पर फेकते हैं तो शैतान को थोड़ा झटका लगता है , वह गुस्से से दरवाजे कि तरफ देखता है, तभी गुरुजी अलख जगाते हुए अंदर प्रवेश करते हैं, अंदर प्रवेश करते ही उनकी आंखे ठाकुर साहब कि आंखो से टकराता है ,तो दोनो कि आंखो में द्वंद मचता है दोनो एक दूसरे कि आंखो ही आंखों में तौलने का प्रयास कर रहे थे , कोई काम नही था , तभी कचरू आ जाता हैं और कहता है " ,दरोगा साहब आएं हैं , मालिक आपसे अभी मिलना चाहते हैं , दोनो ही दिल मसोस कर रह जाते हैं ,वैसे दोनो ही विचलित हो रहें थे , पर हार कोई मानना नही चाहता था और तभी कचरू ने आकर खलल डाल दिया था ,वरना कोई न कोई पीछे हट ही जाता , शैतान भी समझ गया कि उसका पाला पहुंचे हुए तांत्रिक से पड़ा है ,वैसे भी नाथ पंथ के साधक भूत प्रेत को साधने में सिधस्त होते हैं, नाथ पंथ ने ही साबरी मंत्र का निर्माण किया था जिस से बड़े से बड़े भूत प्रेत शैतान हो या राक्षस हो उनके योनि के सभी को हराने कि शक्ति साबरी मंत्र में होती है, उसके साथ केवल नाथ भी समझ गए थे कि यह कोई साधारण शैतान नही है ,इसे जल्दी बाज़ी से नही ठंडे दिमाग से सोच समझ कर इस घर से निकालना होगा अन्यथा यह प्रलय मचा देगा वह एक ही भेट में इसका अंदाजा लगा लिए थे ,वह घर के सदस्यों को बचाने कि व्यवस्था तो फौरी तौर पर कर दी थी , पर इसे मारने या भगाने के लिए अधिक शक्ति कि आवश्यकता थी ,इसे अगर जरा भी मौका मिला तो वह उन्हे भी मारने में पीछे नहीं हटेगा ,"!!
ठाकुर साहब बाहर आते हैं ,गांव के कई लोग थे , दरोगा जी कुर्सी पर बैठे थे ,ठाकुर साहब को आते देख खड़े होकर प्रणाम करते हैं और उन्हे बैठने के लिए कहते हैं , गुरु जी पास ही खड़े पीपल को निहारने लगते हैं ,वह शायद कुछ देखना चाह रहे थे , दरोगा वीर सिंह कहते हैं " कल से आपके गांव में घूम रहा हूं पर आपके दरबार में आने का मौका नही मिला, तो आज यह सोच कर ही आया था कि पहले आपके दर्शन करूंगा फिर कहीं जाऊंगा, ";! ठाकुर साहब कहते हैं ," यह सब आप लोगो का प्यार है ,भाई चाय पानी ले आओ दरोगा साहब के लिए,"!! आज तीन दिन बाद इतना संवाद ठाकुर साहब ने बोला था , सीता देवी को थोड़ा खुशी होती है कि चलो आज बाहर आकर दरवाजे पर बैठे तो वरना कमरे से बाहर नहीं निकल रहे थे, वैसे ठाकुर साहब बैठे जरूर थे पर गुरुजी की नजरे उन्हे बैचेन किए हुए थी,"!!
क्रमशः