भाग 17
सीता देवी ठाकुर साहब का दरवाज़ा पीटने लगती हैं, तो शैतान ठाकुर साहब के शरीर में प्रवेश कर दरवाजा खोलता है,और गुस्से से सीता देवी को देखता है ,सीता देवी के आंखो में आंसु होने के बाद भी ठाकुर साहब उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं यह देख सीता देवी आहत होती है ,क्योंकि ठाकुर साहब खुद से अधिक उनसे प्यार करते थे , आंसु तो दूर की बात है अगर सीता देवी का चेहरे पर हल्की उदासी भी दिख जाती तो वह पूरा घर सर पर उठा लेते , वह जब तक उदासी कि वजह नही जान लेते और फिर उसका निवारण नही कर देते तब तक शांत नहीं बैठते और वही ठाकुर साहब उसकी आंखो में आंसु देखकर भी कोई रिएक्ट नही कर रहे थे, ठाकुर साहब उर्फ शैतान भर्राई आवाज में पूछता है ,*" क्यों परेशान करती हो बार बार मैं कुछ दिनों में स्वस्थ हो जाऊंगा तो फिर से सब पहले जैसा हो जायेगा अभी मैं बहुत परेशान हुं,मुझे अब नींद आ रही है ,*"! अब जनाब को नींद तो आनी ही थी जनाब ने ओवर डोज जो ले लिया था ,तीन तीन लोगो का रक्त पान किया था जिनमे दोनो पुलिस वाले तो कुछ अधिक ही तंदरुस्त थे ,कचरू जैसे दो लोगो का रक्त उनमें भरा था, सीता देवी अपने आंसु पोंछ कर कहती हैं *" कचरू कि मौत हो गई है ,नहर के आगे किसीने उसे मार दिया है पुलिस का फोन आया था हमे पुलिस स्टेशन जाना चाहिए बेटे कि मोटर साईकिल भी वही है ,*"! ठाकुर साहब अलसाये से बोलते हैं *" कौन कचरू ,हमारा क्या लेना देना है उस से तुम जाओ जहां जाना है ,मुझे सोने दो,*"! वह दरवाजा बंद करते हैं,*"! सीता देवी आवाक सी खड़ी रह जाती है ,वह सोच में पड़ जाती है की ठाकुर साहब इतना कैसे बदल गए, जो आदमी अपने जनवरी तक से बच्चो की तरह प्यार करता हो ,जो कभी किसी को दुखी नहीं देख पाता था , अपनी कमाई का आधा हिस्सा मजदूरी में यह कह कर बांट देता था कि क्या करेंगी इतना पैसा जमा करके,और वह आज अपने प्रिय नौकर कचरू को नही पहचान रहा था उसका नाम भी याद नहीं ,पूछ रहे हैं कौन कचरू, कहीं इनका दिमागी संतुलन तो नही बिगड़ गया कल इन्हे हॉस्पिटल ले जाना होगा , काली पीछे खड़ा था वह भी अचंभित था ठाकुर साहब के व्यवहार से ,उसी समय सीता देवी के फोन पर कचरू के घरवाली का फोन आता है वह बेचारी बहुत रो रही थी ,वह मालकिन से पूछ रही थी कि अब कचरू कब आएगा ,*"! सीता देवी वहीं फूट फूट कर रोने लगती है, काली उन्हे सम्हालने कि कोशिश करता है ,भोलू भी आकर जोर जोर से भौंकने लगता है ,उसे अपनी मालकिन का रोना पसंद नही था, सीता देवी को भोलू उनके कमरे में चलने के लिए कहता है, वैसे भी पुलिस ने बताया था कि जो भी होगा सुबह ही होगा , घर में वैसे ही अजीब सा माहौल था और अब तो जैसे मातम छा गया था,!!!
वीर सिंह पागलों की तरह गांव के एक एक कोने को खंगाल रहा था ,विशेष करके वह अपने दो जांबाज सिपाही को कर परेशान था ये दोनो सिपाही बहुत ही जीवट वाले थे ,उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे ,पिछली बार वह सब मल्लाह डाकू को पकड़ने गए थे तब ,चारो तरफ से डाकुओं ने उन्हे घेर लिया था ,कुछ सिपाही मौका पाकर भाग गए थे पर वह दोनो अपनी जान की परवाह किए बिना उसके साथ डाकुओं को भगाकर आए थे , अगर दूसरे सिपाही भी रहे होते तो शायद दो तीन डाकू पकड़े भी जाते पर उन तीनों कि जान बच गई यही बहुत बड़ी बात थी ,ऐसे जांबाज साथियों के इस तरह कत्ल हो जाना उसे बहुत खल रहा था , वह अब जल्द से जल्द कातिल को पकड़ कर गोली मारना चाह रहा था,वह और उसके सिपाही गांव के चप्पे चप्पे पर छा गए थे, वह ठाकुर साहब के घर भी आते है ,और रात में उनका भी दरवाजा खटखटाते हैं तो काली खोलता है ,वीर सिंह कहता है "* ठाकुर साहब से मिलना है अभी ,*"!! काली कहता है *" वह सो रहे हैं और मालकिन कचरू कि मौत कि बात सुन रो रही हैं उनकी भी स्थिति ठीक नहीं है , *"! पर सीता देवी दरवाजे के खटखटाने कि आवाज सुन नीचे आ गई ,उनका चेहरा बता रहा था कि वह बहुत रोई हैं वीर सिंह उन्हे प्रणाम करता है और कहता है *" हमे ठाकुर साहब से थोड़ी पूछताछ करनी थी दरअसल जब ये कतल हुआ उसके कुछ समय पहले ठाकुर साहब भी वहां से गुजरे थे तो शायद उन्होंने किसी को देखा हो ,*"!? सीता देवी लम्बी सांस लेते हुए कहती हैं *" माफ करिए दरोगा साहब इस वक्त वह दवा लेकर गहरी नींद में सो रहे हैं , इस समय उन्हे उठाना उचित नहीं होगा ,आप सबेरे सबेरे जल्दी आ जाइए तो बात हो जायेगी , ,*"! वीर सिंह उन्हे देखता है और फिर रात में परेशान करने के लिए माफी मांगता है फिर कचरू के बारे में थोड़ी पूछताछ कर जाता है,*"!
क्रमशः