भाग 1
जगत पुर गांव में मातम छाया हुआ है ,सुबह करीब 4 बजे गांव के जमींदार ठाकुर तेज़ प्रताप जी का निधन हो गया है, वह एक अच्छे इंसान थे , पूरा गांव उनकी बहुत इज्जत करता था, उनके परिवार में उनकी पत्नी सीता देवी , बेटी ज्योति और बेटा सर्वेश हैं दोनो बच्चे जवानी कि दहलीज पर हैं, और दो नौकर कचरू और काली हैं , उनके परिवार के सदस्य भोलू कुत्ता और किटी बिल्ली है दोनो ही हाई ब्रीड वाले है, जानवर से लेकर इंसान तक सभी लोग उदास है,ठाकुर साहब गांव के हर आदमी को अच्छी तरह से पहचानते थे, और कोई भी उनके दरवाजे आ जाए तो खाली हाथ लौटकर नहीं जाता था, शाम को सूरज भी जल्दी ही अस्त हो गए थे जैसे वह भी मातम मना रहे थे, सभी पशु पक्षी भी शांत थे उनके घर के बाहर के बड़े वाले पीपल के वृक्ष पर ढेरों पक्षी रहते हैं जिन्हे वह प्रति दिन दाना डाला करते थे, आज वह सब भी एकदम शांत थे, उन्हे भी अहसास हो गया था कि उन्हें दाना देने वाला चला गया, वैसे पशु पक्षी इन बातो को पहले से ही पता चल जाता है ,भोलू और किटी तो दोपहर से ही रो रहे थे खुद ठाकुर साहब भी उन दोनो को डांट कर भागा चुके थे, दोपहर तक ठाकुर साहब एकदम अच्छे थे उनकी उम्र भी अभी उतनी अधिक नही थी सिर्फ 58 साल के ही थे एक वीक बाद ही उनका जन्म दिन आने वाला था जिसकी तैयारी बड़ी जोर शोर से हो रही थी, अपने जन्म दिन को वह पूरे गांव के लोगो को भोज कराते थे गांव वालो को इसका बहुत इंतजार रहता था, क्योंकि कई गरीब लोगो को उस दिन छक कर अच्छे पकवान खाने को मिलते थे, और उन्ही ठाकुर साहब को सुबह करीब 3 बजे अचानक पसीने छूटने लगे और उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगी वह अपनी पत्नी सीता को आवाज लगाते हैं वह उनकी आवाज सुन भाग कर आती है, वह उनकी हालत देख घबरा जाती हैं, और बेटे को उठाती है वह घबराकर जल्दी से कार निकल कर गांव के डॉक्टर को लेकर आता है वह चेक कर कहता है इन्हे अटैक आया है हॉस्पिटल लेकर जाना होगा,सभी हॉस्पिटल लेकर भागते हैं जैसे ही गांव में खबर होती है तो करीब पूरा गांव ही हॉस्पिटल की तरफ दौड़ लगा देता है , पर हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उनकी डेथ हो जाती हैं , तो वह लोग वहीं से वापस लौट कर गांव आ जाते हैं , सभी रिश्तेदार के आने में समय लगता है दोपहर तक सभी आ जाते है , सारी विधि निपटाते और तैयारी करते शाम हो जाती हैं , और सब अर्थी कि तैयारी कर रहे थे, सभी लोग अर्थी ले जाने कि लिए खड़े होते हैं अर्थी को पूरे गांव में घुमाते हुए ले जाना था, पूरे गांव के लोगो की यही इच्छा थी ,क्योंकि ठाकुर साहब शाम को पूरे गांव का चक्कर लगाते थे, अर्थी निकलती है सभी लोग रोने लगते हैं, घर के लोग तो जैसे रो रो के पागल हो गए थे ,सीता देवी तो जैसे पत्थर की हो गई थी, उनकी बेटी ज्योति बेचारी रोना छोड़ अपनी मां को सम्हालने में लगी थी , पूरा माहौल गमगीन हो गया था, अर्थी पूरे गांव से घूमते हुए श्मशान घाट कि तरफ चल दिए, संयोग वश उस दिन अमावस्या था, अभी वह लोग अर्थी ले जा रहे थे, अर्थी एक बड़े से बरगद के नीचे से गुजरती है उसके ऊपर एक बहुत बड़ा उल्लू बैठा हुआ था, जैसे ही अर्थी वृक्ष के नीचे से गुजरता है ,वह उल्लू उड़कर अर्थी के ऊपर तीन चक्कर मारकर वहीं फड़फड़ा कर गिर पड़ता है, अर्थी शमशान घाट पर जाकर रखी जाती है सभी लकड़ियों का इंतजाम और बाकी कामों में लग जाते हैं , कई लोग तो अब भी रो रहें हैं, सभी व्यवस्था में लगे अभी भी लोग दूर दूर से आ ही रहे हैं,तभी चिता तैयार हो जाने का संदेश शमशान का सेवक देता है, सभी अर्थी जैसे ठाकुर जी का शरीर उठाते हैं तभी उनके शरीर में हलचल होती हैं, और वह उठ कर बैठ जाते हैं, उनके उठते ही जितने भी पक्षी पेड़ो पर थे सब फड़ फड़ा कर उड़ जाते है, कौए काव काव करके चिल्लाने लगते हैं , और उल्लु जोर जोर से चीखने लगते हैं, पहले तो जो लोग लाश को उठा रहे थे ,वह घबरा कर भागते हैं, पर ठाकुर साहब कि आवाज सुन रुकते हैं, ठाकुर साहब कहते हैं " अरे मुझे इस तरह कफन में क्यों लपेटा हुआ है, "!! फिर चिता को देख कहते हैं " ये क्या तुम सब मुझे जीते जी जला देना चाहते थे, अरे मैं अभी जिंदा हूं , "!! उनकी आवाज़ थोड़ी से भरी जरूर हो गई थी, लोगो को लगता है कि इतने देर तक बेहोश होने का असर भी हो सकता है ,कुछ लोग उस डॉक्टर गौरव को गालियां देने लगते हैं कि उसने ढंग से चेक नही किया और जीवित ठाकुर साहब को मृत घोषित कर दिया था, फील हाल तो सभी खुश हो गए थे, ठाकुर साहब उठते हैं, तो वहीं पास खड़ा कुत्ता अपनी पूंछ पिछवाड़े डाल कर कु कू करते भागता है, वही पास एक अघोर तांत्रिक जिसे लोग पागल भी कहते हैं वह अपनी साधना में बैठा था वह अचानक खड़ा हो जाता है, और ठाकुर के पास आकर कहता है, रुक जाओ इस लाश को कहां ले जा रहे हो, इसे अभी तुरंत जलाओ वरना अनर्थ हो जायेगा , ठाकुर साहब उसे गुस्से से देखते हैं, "! वह भी ठाकुर साहब को अपनी जलती आंखो से देखते हुए कहता है," तेरे देखने से में डर नही जाऊंगा, "!! वह सभी से कहता है, इसे जला दो ये शैतान है ,शैतान ,"!! एक गांव वाले को गुस्सा आता है वह एक डंडा उठा कर उस पागल अघोरी तांत्रिक को दो डंडे जम कर लगाता है ,जिस से वह तांत्रिक बेचारा बिलबिला उठता है ,फिर भी वह कहता है," मैं पूरे गांव की भलाई के लिए कह रहा हूं ,में कई सालो से इस गांव का नमक खाया है , में नही चाहता की यह गांव वीराना हो जाए,सभी गुस्से से उसकी तरफ बढ़ते हैं,"!!
यह मेरा एक नया हॉरर धारावाहिक है आप लोग इसे पढ़िए और शेयर भी करिए ,
आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए"!!