*मानव जीवन बड़ा विचित्र है , संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य सफलता एवं असफलता के बीच झूलता रहता है | इस जीवन में सफलता उसे ही प्राप्त होती है जो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ होता है | अनेक बाधाएं आने पर भी जो अपने लक्ष्य को नहीं भूलता एवं उसके प्रति अपनी दृढ़ता बनाए रहता है वह एक दिन अवश्य सफल होता है | हमारे महापुरुषों ने मनुष्य को तीन श्रेणी में रखा है उत्तम मध्यम एवं निम्न | पंचतन्त्र में लिखा गया है कि "प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः , प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः ! विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः , प्रारभ्य च उत्तमजनाः न परित्यजन्ति !!" अर्थात :- निम्न कोटि के मनुष्य विघ्नों के भय से कोई कार्य आरम्भ नहीं करते हैं | मध्यम कोटि के मनुष्य कार्य आरम्भ तो कर देते हैं किन्तु किंचित भी विघ्न आने पर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं , परन्तु उत्तम कोटि के मनुष्य कार्य आरम्भ करने के बाद बार-बार विघ्नों के आने के बाद भी उसे बीच में नहीं छोड़ते हैं और अनेक प्रकार के झंझावातों का सामना हिम्मत से करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं | इतिहास साक्षी है कि ५ वर्ष के बालक ध्रुव ने बहुत कठिन साधना की परंतु उसको भगवान का दर्शन नहीं हुआ तो उसने अपनी साधना को छोड़ा नहीं बल्कि और दृढ़ता से साधना को कठिन कर दिया , अंततोगत्वा परमात्मा को दर्शन देना ही पड़ा | कहने का तात्पर्य है कि किसी भी कार्य को यदि प्रारंभ किया जाय तो कैसी भी कठिनाई आ जाये उस कार्य को पूरा अवश्य करना चाहिए | इस जीवन में सफलता उसको ही प्राप्त होती है जो कठिनाइयों से लड़ना जानता है अन्यथा अनेक लोग संघर्षशील होने के बाद भी कठिनाइयों से घबरा का अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना कार्य को बंद कर देते हैं और उसका सारा दोष दैव को देते हैं |*
*आज समाज में अनेक ऐसे लोगों को देखा जा सकता है जो कोई भी कार्य प्रारंभ तो बड़े उत्साह से करते हैं परंतु बीच में ही उस कार्य को छोड़ देते हैं और कहते भी कि मेरा क्या दोष है मैंने तो कार्य प्रारंभ किया था परंतु परमात्मा को ही नहीं स्वीकार था | परमात्मा ने मनुष्य को कर्म रूपी तलवार दे दी है जिसके बल पर मनुष्य कैसी भी कठिनाइयों का सामना कर सकता है परंतु मैं आचार्य अर्जुन तिवारी देखता हूं कि कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो किसी भी कार्य को देख कर ही कह देते हैं यह हमारे बस की बात नहीं है | विचार कीजिए कि जो लोग किसी भी कार्य में सफल हुए आखिर वह भी तो मनुष्य ही हैं | यदि वह सफल हो सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? परंतु यदि कार्य प्रारंभ करने के पहले ही मनुष्य के मन में नकारात्मकता आ गई तो वह कभी भी सफल नहीं हो सकता | मानव जीवन में समस्याएं तो आती ही रहती हैं परंतु उन समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए | अपने लक्ष्य के प्रति निरंतर आशान्वित होकर कठिन संघर्ष करके ही उसे प्राप्त किया जा सकता है | प्राय: यह देखा जाता है कि अनेकों सुख - सुविधाएं पाने के बाद भी कुछ बालक शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते वहीं दूसरी ओर निर्धनता में जीवन यापन करने वाले अनेक विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं जो अपने लक्ष्य के प्रति सुविधाओं से वंचित होकर भी लगे रहते हैं और उन्हें सफलता प्राप्त होती है | इस जीवन में सफल वही होता है जो किसी भी कार्य के प्रति सच्ची लगन से जुटा रहता है अन्यथा सारे संसाधन होने के बाद भी यदि दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं है , अपने लक्ष्य के प्रति लगन नहीं है तो मनुष्य कभी भी सफल नहीं हो सकता | इसलिए आवश्यक है कि कोई भी कार्य प्रारंभ करने के बाद उसे पूर्ण करने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए यही जीवन का रहस्य है |*
*जो भी मनुष्य कार्य को कठिन जानकार उसे प्रारंभ नहीं करता या प्रारंभ करने के बाद बीच में छोड़ देता है वह अपने जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकता | सफलता प्राप्त करने के लिए उत्तमकोटि का मनुष्य बनना पड़ेगा |*