‘मोर जीवनभर ब्रह्मचारी रहता है. वह मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता, इसीलिए वह राष्ट्रीय पक्षी है. मोर के जो आंसू आते हैं. मोरनी उसे चुगकर गर्भवती होती है.’
कुछ याद आया? राजस्थान हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हैं. महेश चंद्र शर्मा. दो साल पहले मोर की सेक्सुअल लाइफ पर अपनी कीमती टिप्पणी करके उन्होंने सुर्खियां बटोरी थीं. बेदम भद्द पिटी थी उनकी. भयानक ट्रोल हुए थे.
पर्सनली कहूं तो बंदा क्यूट है. एक मम्मी-पापा हुए थे जो कहते थे कि बेबी को भगवान मम्मा के पेट में रखके जाते हैं. उसके बाद हुए महेश जी.
अपने मोर वाले लॉजिक के कुछ दिन बाद वो रिटायर हो गए. लॉजिक के रहनुमाओं ने राहत की सांस ली. लेकिन शर्मा जी के लड़के को अभी बहुत आगे जाना था. नई मिसालें तय करनी थी. तो बन गए राजस्थान मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष. मतलब बना दिए गए. अभी इसी पोस्ट पर हैं. अब इन्होंने एक और बेढब आदेश जारी कर दिया है.
उस ऑर्डर का लब्बोलुआब ये है-
लिव-इन रिश्तों पर बैन लगना चाहिए. ऐसे रिश्ते में औरत ‘रखैल’ जैसी होती है. ये जीवन शैली जानवरों जैसी है और औरतों के मानवाधिकारों के खिलाफ है.
ये ऑर्डर उन्होंने और जस्टिस प्रकाश टांटिया ने मिलकर जारी किया है. जिसमें ये भी लिखा है कि ये केंद्र और राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे रिश्तों को प्रोत्साहित न किया जाए.
कीवर्ड्स देखिए. रखैल. जानवरों की जीवनशैली. और औरतों का मानवाधिकार.
रखैल मतलब वो औरत जिसे आदमी बिना शादी के अपने साथ ‘रखता’ है. अपनी ‘शारीरिक ज़रूरतों’ के लिए. बदले में वो उसकी आर्थिक ज़रूरतें पूरी करता है. राजाओं के दौर में, ज़मींदारों के दौर में ऐसी व्यवस्थाएं हुआ करती थीं. गूगल पर ‘रखैल’ ढूंढ़ने पर मोटा-मोटी यही परिभाषा मिलती है.
शर्माजी ने लिव-इन पर इतनी भद्दी टिप्पणी करके कई तरह से अपनी जहालत का परिचय दिया है:
1. इनके मुताबिक़ लिव-इन में आदमी औरत को ‘रखता’ है. मतलब औरत ही बेचारी अबला पकड़कर जबरन लाई जाती है. उसकी खुद की तो मर्जी होती ही नहीं है. इनके मुताबिक़ लिव-इन रिलेशनशिप दो लोगों के बीच नहीं, बस पुरुष की तरफ से होता है. शास्त्रों में इसे सेक्सिजम कहा गया है.
2. रखैल एक गाली के तौर पर इस्तेमाल होता है. इनके मुताबिक़ लड़के के साथ रह रही है, तो लड़की चरित्रहीन ही होगी.
3. लिव-इन रिलेशनशिप में केवल सेक्स होता है. है न? सुबह उठते हैं तो करते हैं. शाम को करते हैं. रुकते नहीं. घपाघप. इमोशन, प्यार, समझदारी, दोस्ती, ये सब तो कपल्स के बीच होता ही नहीं है.
अरे कोई शर्मा जी के टच में हो तो उनको बताए. कि जिस कोर्ट में वो जज थे, उससे भी बड़ा एक कोर्ट है. सुप्रीम कोर्ट. जो लिव-इन रिलेशनशिप को पूरी तरह कानूनी मानता है. अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि घरेलू हिंसा कानून, 2005 के तहत महिला अपने लिव-इन पार्टनर से गुज़ारा भत्ता भी मांग सकती है.
यानी लिव-इन में रहने वाले जोड़ों को कानूनी संरक्षण मिला हुआ है.
शर्मा जी अकेले नहीं हैं. हैं तो इसी समाज का प्रोडक्ट. कई ऐसे लोग हैं जिनकी समझ बस इतनी ही है कि दो लोग लिव-इन में सिर्फ सेक्स के लिए रहते हैं. इसीलिए बिना कुछ सोचे, बिना लॉजिक लगाए अपना जजमेंट चांप देते हैं. कहते हैं कि ये जानवरों की जीवनशैली है. मगर हां, शादी का टैग लगते ही जानवरों की वही जीवनशैली उनके लिए सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पता नहीं क्या-क्या हो जाती है.
लिव-इन में रह रही लड़की सिंदूर लगाते ही रखैल से लक्ष्मी हो जाती है. कैसे?