*भारत देश पुरातन काल में विश्व गुरु कहा जाता था क्योंकि हमारे देश में सनातन धर्म के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए अनेकों मान्यताएं एवं विधान बनाए गए थे | विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जिसने भारत की इन मान्यताओं एवं विधानों से शिक्षा न ग्रहण की हो | विश्व गुरु होने के साथ-साथ हमारा देश भारत चमत्कारिक एवं दिव्य इसलिए रहा है क्योंकि जो कार्य बड़े बड़े वैज्ञानिक एवं चिकित्सक नहीं कर पाते हैं वह कार्य सनातन नियमों का पालन करते सफल हो जाता है | चिकित्सा जगत में जिन रोगों का इलाज नहीं हो पाता है उनकी चिकित्सा सनातन की मान्यताओं से होती हुई देखी जाती रही है | ऐसे ही अनेकों रहस्य स्वयं में छुपाए हुए है वाराणसी में अस्सी घाट पर स्थित "लोलार्क कुंड" आज समस्त विश्व में चर्चित हो रहा है | ऐसी मान्यता है कि आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन सूर्य अस्सी घाट में इस स्थान पर पतित हो गया था जिसके कारण वहां एक कुंड का निर्माण हो गया जिसे लोलार्क कुंड कहा जाता है | लोलार्क भगवान सूर्य का नाम है | आज के दिन को लोलार्क षष्ठी या ललिता षष्ठी के नाम से जाना जाता है | यह भी कहा जाता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इस कुंड में स्नान करने मात्र से चर्म रोग जड़ से समाप्त हो जाता है तथा नि:संतान नारियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति भी होती है | लोलार्क कुंड की मान्यता है कि यहां स्नान करने के बाद वस्त्र यही त्याग दिया जाता है एवं नित्य भोज्य पदार्थ में प्रयुक्त होने वाली कोई एक सब्जी भी चढ़ाई जाती है जिसका त्याग तब तक के लिए कर दिया जाता है जब तक कामना की पूर्ति अर्थात संतान की प्राप्ति ना हो जाय | इस प्रकार नियम का पालन करके अनेकों लोगों ने संतान की प्राप्ति की है | सनातन धर्म की मान्यताएं संपूर्ण विश्व में अलौकिक एवं दिव्य रही हैं आवश्यकता है उनके विषय में जानने की |*
*आज वाराणसी के अस्सी घाट पर स्थित है लोलार्क कुंड पर देश के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु एवं निसंतान दंपतियों की भीड़ लगी हुई देखी जा सकती है |लोलार्केश्वर महादेव का दर्शन करने का भी महत्व आज लोलार्क षष्ठी के दिन है | आज जहां विदेशों ने हमारी मान्यताओं को मान करके प्रगति की है वही हम अपनी मान्यताओं को भूलते चले जा रहे हैं | कुछ लोग लोलार्क कुंड में स्नान करने की एवं चमत्कारिक रूप से संतान प्राप्ति करने के विधान को आधुनिक पुजारियों के द्वारा रचा जाल बताते हैं | ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूं कि लोलार्क कुंड का महत्व आधुनिक नहीं है | "स्कंद पुराण" के काशी खण्ड में , सूर्य पुराण में तथा शिव रहस्य में लोलार्क षष्ठी के दिन लोलार्क कुंड के महत्व का वर्णन किया गया है | मैं इतना जानता हूं कि सनातन धर्म स्वयं वैज्ञानिकता से ओतप्रोत है | आधुनिक वैज्ञानिक अनेक संसाधन लेकर जो अनुसंधान अब कर रहे हैं वही अनुसंधान हमारे ऋषि-मुनियों ने बिना किसी संसाधन के आज से बहुत पहले कर लिया था जिनको मानने के लिए आज के आधुनिक वैज्ञानिक भी विवश हो रहे हैं | आज भी अनेक महिलाओं को लोलार्क कुंड में स्नान करके मातृत्व सुख की प्राप्ति हो रही है , परंतु हम अपनी मान्यताओं को ना मानकर की दूसरों की ओर आशा भरी दृष्टि से देखते रहते हैं | इस संपूर्ण विश्व में कोई ऐसा रोग नहीं है जिसकी चिकित्सा सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में ना प्राप्त होती हो क्योंकि आज भी संपूर्ण चिकित्सा जगत सनातन धर्म के आयुर्वेद पर ही आधारित होकर चल रहा है | परंतु आज हम अपनी स्वयं की दिव्य पहचान को भूलते चले जा रहे हैं शायद इसीलिए हम बिछड़ते भी चले जा रहे हैं |*
*आज हम आधुनिकता की चकाचौंध में अपनी पुरातन संस्कृति को भूल गए | जहां संपूर्ण विश्व नए नए अनुसंधान कर रहा है वही सनातन मान्यताओं एवं अनेकों रहस्य को स्वयं में समाहित किये लोलार्क जैसे कई कुण्ड आज भी मानव मात्र का कल्याण कर रहे हैं |*