*प्राचीन भारतीय संस्कृति में मनुष्य को तो महत्त्व दिया ही है साथ ही उसके आचरण को कहीं अधिक महत्व दिया गया है मनुष्य अपने जीवन में जाने - अनजाने अनेक प्रकार के गलत आचरण किया करता है इसीलिए किसी भी शुभ मंगल कार्य करने से पहले मंगलाचरण करने की व्यवस्था हमारे पूर्वजों ने बनाई थी | इसका प्रारंभ मनुष्य के प्रारंभिक जीवन अर्थात विद्यार्थी जीवन से ही प्रारंभ कर दी जाती है | विद्यालय में प्रवेश के बाद पठन-पाठन प्रारंभ करने के पहले ईश्वर की प्रार्थना करना मंगलाचरण ही है | किसी को शुभ कार्य को करने के पहले "श्री गणेशाय नमः" लिख देना मंगलाचरण का लघु रूप है | जब कोई अनुष्ठान प्रारंभ होता है तो सर्वप्रथम शांति पाठ किया जाता है शांति पाठ ही उस अनुष्ठान का मंगलाचरण कहा जाता है | हमारे साहित्यकारों , कवियों आदि में अपना लेखन प्रारंभ करने के पहले ईश्वर की प्रार्थना करने का विधान देखने को मिलता है , इसी को मंगलाचरण कहते हैं | मंगलाचरण क्यों किया जाता है ? इसका क्या कारण है ? इसका वर्णन हमारे साहित्य में देखने को मिलता है | जिसके अनुसार कर्म के आरंभ में ईश्वर की स्मृति उनका स्मरण अहंकार की स्मृति से कहीं श्रेष्ठ है | मनुष्य जीवन भर अपने विषय में ही विचार , चिन्तन - मनन किया करता है जिसमें छल - कपट , ईर्ष्या - द्वेष आदि विकार भी सम्मिलित होते हैं तो किसी शुभकार्य को प्रारम्भ करने के पहले अनेक विकारों को दूर करते हुए अपने मन को साधने की आवश्यकता होती है | मन को साधने का सबसे सरल साधन है ईश्वर का स्मरण एवं स्तुति वन्दना आदि | मंगलाचरण का सीधा सा अर्थ है कि ऐसा आचरण जिसमें हमारा एवं अन्य जीवमात्र का भी मंगल / कल्याण निहित हो | और मनुष्य का मंगल भगवान के स्मरण से ही हो सकता है | इसीलिए मंगलाचरण की व्यवस्था बनाई गयी है | संस्कृ एवं हिन्दी साहित्य में किसी भी ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण की प्राचीन परम्परा है | मंगलाचरण किये बिना यदि कोई भी कार्य प्रारम्भ किया जाता है तो उसमें विघ्न की आशंका बनी रहती है इन आशंकाओं को नष्ट करने के लिए ही मंगलाचरण की आवश्यकता है |*
*आज हम जिस युग में जीवन यापन कर रहे हैं , जैसा परिवेश वर्तमान में बनता चला जा रहा है उसको देखते हुए मनुष्य के आचरण का बखान करने में ही झिझक एवं लज्जा का आभास होता है | आज मनुष्य के आचरण के पतन का ही परिणाम है कि चारों ओर व्यभिचार , भ्रष्टाचार , नारियों के प्रति अनाचार देखने को मिल रहा है | इसका मुख्य कारण यह है कि जहाँ पूर्वकाल में मनुष्य को सुबह नींद से जगने के बाद सबसे पहले ईश्वर का स्मरण अर्थात मंगलाचरण करने की शिक्षा दी जाती थी वहीं आज मनुष्य मंगलाचरण से बहुत दूर होता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" मंगलाचरण के महत्त्व को को बताते हुए इतना ही कहना चाहूँगा कि मंगलाचरण के माध्यम से मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में तो करता ही था साथ नकारात्मक विचारों से मुक्ति प्राप्त करता था , परंतु आज प्रात:कालीन मंगलाचरण से स्वयं को दूर रखने के कारण मनुष्य अपनी इन्द्रियों को संयमित नहीं कर पा रहा है और उसके द्वारा ऐसे - ऐसे कृत्य हो रहे हैं कि मानवता भी लज्जित हो रही है | मनुष्य के जीवन में विचारों का बड़ा महत्त्व है मस्तिष्क में जैसे विचार चलते हैं मनुष्य की इन्द्रियां उन्ही विचारों से प्रेरित होकर क्रियाकलाप करने लगती हैं | विचारों को सकारात्मक बनाये रखने के लिए ही समय समय पर ईश्वर की आराधन / स्मरण अर्थात मंगलाचरण आवश्यक है जो कि आज का मनुष्य नहीं कर पा रहा है | जीवन के भागदौड़ में मनुष्य इतना उलझ गया है कि उसके पास समय ही शेष नहीं है | कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि जितनी देर हम पूर्वजों के बताये मॉगलाचरण पूर्ण करेंगे उतने समय में कई कार्य पूर्ण कर लेंगे | परंतु जब वही मनुष्य किसी संकट में फंसता है तो उसके पास ईश्वर स्मरण करने के लिए समय ही समय रहता हैं , क्योंकि तब उसको ईश्वर ही एक अवलम्ब दिखाई पड़ता है | ऐसी किसी भी स्थिति से बचने या निपटने के लिए मनुष्य को घर से निकलने से पहले विघ्न - बाधाओं से स्वयं को बचाये रखने के लिए ईश्वर स्मरण अर्थात मंगलाचरण अवश्य कर लेना चाहिए |*
*जीवन में सबकुछ मंगल हो , हमारा एवं हमारे साथ सबका मंगला होता रहे इसके सबसे पहले अपने आचरण को सकारात्मक करना होगा ओर यह तभी सम्भव है जब हम ईश स्मरण अर्थात मंगलाचरण करते रहेंगे |*