*सनातन
धर्म में तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की मान्यता है | इन देवी - देवताओं को शायद ही किसी ने देखा हो , ये कल्पना भी हो सकते हैं | देवता वही है जिसमें कोई दोष न हो , जो सदैव सकारात्मकता के साथ अपने आश्रितों के लिए कल्याणकारी हो | शायद हमारे मनीषियों ने इसीलिए इस धराधाम पर तीन जीवित एवं जागृत देवताओं कल्पना करते हुए "मातृदेवोभव" , "पितृदेवोभव" एवं "गुरुदेवोभव" का उद्घोष किया है | माता एवं पिता अपने सभी सन्तानों को समानरूप से जन्म देकर बिना किसी भेदभाव के उनका पालन - पोषण करते हैं तो गुरु के आश्रम में अनेकों शिष्य समानरूप से शिक्षा ग्रहण करते हुए देखे जा सकते हैं | माता , पिता एवं गुरु को निर्दोष मानते हुए इन्हे जीवित देवी - देवता की उपमा दी गयी है | हमारे इतिहास में अनेकों कथानक पढ़ने को मिलते हैं जहाँ वेदोक्त एवं पुराणोक्त देवी देवताओं की उपासना का त्याग करके मात्र माता - पिता की सेवा करते हुए पुत्रों ने अपना नाम अमर कर लिया | श्रवण कुमार , मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम , आदि ऐसे चरित्र हैं जिन्होंने माता - पिता की सेवा एवं उनके वचन पालन के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया | कर्ण , उद्दालक , कबीरदास जैसे अनेक शिष्य भी हुए हैं जिन्होंने अपने गुरु के दुर्वचन एवं श्राप को भी अंगीकार किया परंतु कभी अपने गुरु में दोष नहीं देखा | ऐसा करके ही वे इतिहास के पन्नों पर आज भी अमर हैं | इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है वह कभी भी इन तीनों (माता - पिता , गुरु) के ऋण से उऋण नहीं हो सकता | यदि माता - पिता न होते तो शायद जन्म ही न हो पाता , और यदि गुरु का संरक्षण न प्राप्त होता तो शायद
देश समाज को जानने , समझने के योग्य मनुष्य नहीं बन सकता था | इसीलिए हमारे मनीषियों ने "मातृदेवोभव" "पितृदेवोभव" एवं "गुरुदेवोभव" का उद्घोष किया था |* *आज समय बदल चुका है , अधिकतर घरों में धरती के जीवित देवता उपेक्षित जीवन जीने को विवश हैं | आज की संतान जब कुछ योग्य हो जाती है तो अपने जन्मदाता माता - पिता से यह कहते हुए देखी जा सकती है कि आपने हमारे लिए किया क्या है ?? यदि जन्म देकर पढ़ाया - लिखाया तो यह तो आपका फर्ज था ! इतना ही अनेक भरों में यह भी देखने को मिल रहा है कि जिन माता - पिता को पुत्र प्राणों से ज्यादा मानता है विवाहोपरान्त उन्हीं माता - पिता में उसे दोष ही दोष दिखाई पड़ने लगता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज इस दोष से निर्दोष कही जाने वाली "गुरुसत्ता" भी नहीं बच पाई है | ऐसे - ऐसे लोग इस समाज में देखने को मिल रहे हैं जो यह कहते हुए सुने जा सकते हैं कि :- यदि शिष्य नालायक निकल गया तो अवश्य ही गुरु का दोष है | ऐसे सभी लोगों की दृष्टि पर नकारात्मकता का पर्दा पड़ा होता है | जिन्हें हमारे धर्मग्रंथों ने देवी - देवता की उपाधि दी है उनमें अपना किंचित स्वार्थसिद्ध करने के लिए आज का मनुष्य दोष देख रहा है | यह ये नहीं समझ रहे हैं कि यहाँ कर्मप्रधान है , हम जैसा करेंगे वैसा ही फल प्राप्त होना है | आज जैसा हम अपने माता - पिता एवं गुरु के साथ व्यवहार कर रहे हैं वैसा ही व्यवहार आने वाले भविष्य में हमारी संतानें एवं शिष्य हमारे साथ करेंगे यह अकाट्य है | मनुष्य को यह चाहिए कि यदि हम अपने माता - पिता एवं गुरु का सम्मान न कर पायें तो कम से कम अपमान तो न करें ! उन्हें दोषी तो न बनायें ! उनका दोष क्या यही है कि उन्होंने जन्म देकर पालन करके समाज को समझने का तरीका बताया | आज यदि ऐसा हो रहा है तो इसका कारण यही समझा जा सकता है कि आज की संताने अधिक समझदार एवं बुद्धिमान हो गयी हैं जो ऐसे चरित्रों पर भी उंगली उठा सकती हैं जिन चरित्रों पर दोषारोपण करने का साहस राम , कृष्ण एवं अनेकों महापुरुष भी नहीं कर पाये | यह संस्कारविहीनता ही मनुष्य को दिग्भ्रमित कर रही है |* *प्रत्येक मनुष्य को अपने माता - पिता एवं गुरु के प्रति जीवन भर कृतज्ञ रहना चाहिए | क्योंकि भविष्य में वे भी इस पर पदासीन होने वाले हैं |*