*कार्तिक मास में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं | इसी क्रम में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को वर्ष भर का सर्वोत्तम दिन माना जाता है , और इसे "अक्षय नवमी" का नाम दिया गया है | अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय (विनाश) न हो | वर्ष पर्यन्त जो धर्मकार्य/व्रत किये जाते हैं उसकी अपेक्षा "अक्षय नवमी" को किया गया व्रत / पूजन अक्षय फल प्रदान करता है | आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है | विशेषरूप से आँवले के वृक्ष पर नारायण का वास मानकर आँवला वृक्ष की पूजा एवं इसके नीचे बैठकर भोजन करने की प्राचीन मान्यता है | भगवान श्री हरि के दो मुख्य अवतारों श्री राम एवं श्री कृष्ण के नगरी की परिक्रमा भी आज के दिन भक्तों के द्वारा की जाती है | पावनधाम अयोध्या में मुख्यरूप से तीन प्रकार की परिक्रमा होती है | चौरासी कोसी , चौदहकोसी एवं पंचकोसी | चौरासीकोसी परिक्रमा में पूरा अवधक्षेत्र आता है | समाज के कल्याण एवं चौरासी लाख योनियों से मुक्ति पाने के लिए यह परिक्रमा संतजन करते हैं | चौदहकोसी परिक्रमा में अयोध्या नगर एवं पंचकोसी परिक्रमा में अयोध्या का मुख्य क्षेत्र आता है | यह दोनों परिक्रमा आम जनमानस प्रभु भक्ति में लीन होकर पूर्ण तन्मयता से करते रहे हैं | चौदहकोसी परिक्रमा करके मनुष्य चौदहलोकों के परिभ्रमण का फल लेता है | वहीं पंचकोसी परिक्रमा देवोत्थानी एकादशी अर्थात चार महीने की निद्रा पूर्ण करके जब श्री हरि जागते हैं तो भक्तजनों के द्वारा उनके पूजन एवं स्वागत के रूप में की जाती है | प्रत्येक वह व्यक्ति जो यह लम्बी दूरी नहीं तय कर सकता वह तीन कि०मी०के क्षेत्र में फैले रामकोट की परिक्रमा कर ले | यदि यह भी न हो पाये तो मात्र कनकभवन की परिक्रमा करके वह यह फल प्राप्त कर सकता है | यदि जाने में ही असमर्थ है तो अपने घर में ही भगवान की मूर्ति रखके सात परिक्रमा करे नहीं तो सर्वोत्तम विधान यह है कि अपने माता - पिता को बैठाकर उनकी परिक्रमा कर लेने मात्र से अयोध्या ही नहीं वरन् समस्त सृष्टि की परिक्रमा का लाभ प्राप्त कर सकता है |* *आज प्रात:काल जैसे ही नवमी तिथि प्रारम्भ होगी वैसे ही अयोध्या में
देश - विदेश से परिक्रमा करने आये श्रद्धालु "जय श्री राम" का उद्घोष करके परिक्रमा प्रारम्भ कर देंगे | जहाँ पहले लोग दूर दूर से पैदल चलकर अयोध्या पहुँचते थे और पूरे भक्तिभाव के साथ यह परिक्रमा करते थे , वहीं आज अनेकों साधन का प्रयोग करके श्रद्घालु यह कार्य कर रहे हैं | परंतु आज परिक्रमा का स्वरूप बदल गया है | यह
धर्म कार्य आज शासन-प्रशासन की निगरानी में हो रहा है | जहां परिक्रमा का विधान है की एक पैर में दूसरा पैर नहीं लगना चाहिए , किसी को धक्का नहीं लगना चाहिए , वहीं आज की परिक्रमा इसके बिल्कुल विपरीत है | श्रद्धा एवं
आस्था का यह पर्व आज नवीनयुग में परिवर्तित होकर युवाओं के लिए
मनोरंजन का साधन बनता जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूंगा की सप्तपुरियों में एक पावन अयोध्या धाम में पहुंचे हुए सभी श्रद्धालु प्रेम , श्रद्धा से एवं आस्था के साथ भगवान के नगरी की परिक्रमा करें एवं अपने जीवन को धन्य बनाएं | आज के ही दिन द्वापरयुग का शुभारंभ हुआ था इसी से इसका महत्व बढ़ जाता है | बच्चे , युवा एवं वृद्धजन , माताएं - बहने सुदूर क्षेत्रों से अयोध्या पधार कर भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करके यह परिक्रमा पूर्ण करते हुए अपने जीवन को धन्य बनाते हैं | देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी अनेकों श्रद्धालु भगवान राम की पावन नगरी में पधार कर सरयू मैया की गोद में स्नान करके हनुमंत लाल जी का दर्शन एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का पूजन करके परिक्रमा का श्री गणेश करते हैं |* *परिक्रमा करना उसी का सार्थक हो सकता है जो भगवान गणेश की तरह अपने माता - पिता की परिक्रमा करता हो | यदि आपके माता - पिता आपसे असंतुष्ट हैं तो कोई भी परिक्रमा फलदायी नहीं हो सकती |*