*इस संसार में मनुष्य को गलतियों का पुतला कहा जाता है , मानव जीवन में स्थान - स्थान पर मनुष्य जाने - अनजाने कोई न कोई भूल करता रहता है जिसके कारण उसके जीवन की दिशा एवं दशा भी परिवर्तित हो जाती है | यदि मनुष्य को गलतियों का पुतला कहा गया है तो उसे अपनी गलतियों का सुधार करने का अवसर प्रदान किया गया है | जितने भी अपनी गलतियों को समय रहते स्वीकार कर लिया वह तो अपयश से बच जाता है परंतु जो अपनी गलतियों को जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करना चाहता वह अपने जीवन में स्थान - स्थान पर अपयश का भागी बनता है | कुछ लोग अपनी गलतियां जामते हुए भी उसे स्वाकार न करके दूसरों के ऊपर दोषारोपण किया करते हैं , यद्यपि उनके इस दोषारोपण को लोग स्वीकार नहीं कर पाते परंतु मनुष्य अपनी एक गल्ती को छुपाने के लिए गल्तियों पर गल्तियां करता रहता है | लंकापति रावण नें वैसे तो अपने जीवन में अनेकों भूल की थी परंतु उसकी सबसे बड़ी भूल सीता का हरण करना हुआ | इतिहास साक्षी कि रावण को माल्वान , मंदोदरी विभीषण एवं अपने अंतिम समय में मेघनाथ ने भी समझाने का प्रयास किया परंतु रावण अपनी भूल को जानते हुए भी उसे मानने को तैयार नहीं हुआ | परिणाम क्या हुआ यह सभी जानते हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि भूल हो जाना तो साधारण सी बात है परंतु अपनी भूल को स्वीकार करना एक महान गुण है | एक छोटी सी भूल को स्वीकार कर लेना मनुष्य के जीवन भर के अनर्गल बोझ से छुटकारा दिला सकता है , और ऐसा करके मनुष्य समाज में बधाई का पात्र भी बनता है , परंतु यह मनुष्य की प्रवृत्ति है कि उसको अपना अपराध अपनी गलती बहुत कम ही दिखाई पड़ती है |*
*आज समाज में एक छोटी सी भूल को स्वीकार न कर पाने के कारण अनेकों प्रकार की विषम परिस्थितियां उत्पन्न होती हुई दिख रही है | छोटी-छोटी बात पर परिवार टूट रहे हैं , जिसका दोष सास एवं बहू पर जाता है जबकि यह सत्य है छोटी-छोटी भूल को स्वीकार कर लिया जाए तो परिवार टूटने से बच सकते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज समाज में अपनी भूल को स्वीकार न करके दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने का प्रचलन सा चल गया है | पिता एवं पुत्र के बीच खराब होते संबंधों का एक कारण अपनी भूल को स्वीकार न करना भी माना जा सकता है | गुरु एवं शिष्य छोटी सी गलतफहमी के कारण अलग हो जाते हैं और अपनी भूल को स्वीकार ना कर पाने के कारण समाज में हंसी एवं उपेक्षा के पात्र बनते रहते हैं | मनुष्य के अंदर अनेक गुण भरे हूं परंतु अपनी भूल को स्वीकार करने का गुण ना हो तो मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर सकता क्योंकि भूल हो जाना मानव का सहज स्वभाव परंतु अपनी भूल को स्वीकार ना कर पाना बहुत बड़ा दोष है | भूल को स्वीकार करना एक महान गुण है जो भी इस गुण को स्वयं समाहित कर लेता है वह अपने जीवन में निरंतर प्रगति के पथ पर सफलताएं अर्जित करता रहता है , वहीं अपनी भूल को न स्वीकार करके वह अपने जीवन में अनेक विषम परिस्थितियों का समाना करने को विवश रहता है | अपनी भूल को स्वीकार ना करना मनुष्य के अहम भाव को दर्शाता है और यही अहम भाव मनुष्य के पतन का कारण बन जाता है |*
*समय रहते आत्मावलोकन करके अपने द्वारा की हुई गलतियों को स्वीकार कर लेना ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है | जो भी अपनी गलतियों को समय रहते स्वीकार नहीं कर पाते हैं उनका जीवन कंटकाकीर्ण हो जाता है |*