*सृष्टि के आदिकाल में कश्यप जी की पत्नियों से समस्त सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ | जलचर , थलचर , नभचर , पेड़ , पौधे , पशु , पक्षी , देव , दानव , मानव आदि का जन्म कश्यप जी की पत्नियों से ही हुई | अपने कर्मों के माध्यम से अदिति के पुत्र देवता , दिति के पुत्र दैत्य एवं मुनि के पुत्र मनुष्य कहलाये | अपने सकारात्मक क्रियाकलाप एवं सृष्टि के सृजन में सहयोग करने के कारण देवता पूजित हुए तो अपनी नकारात्मक एवं विध्वंसक / घृणित एवं सभ्य
समाज के विपरीत क्रियाकलापों के कारण दैत्य , राक्षस निंदित हुए | सनातन
धर्म के आदि वेद ऋग्वेद में बता़या गया है कि राक्षसों को यातुधान ( जो मनुष्यों के निवास स्थान पर आक्रमण करते हैं ) और क्रव्याद ( कच्चा मांस खाने वाले ) कहा गया है | जो राक्षसी रात में उल्लू के समान हिंसा करने के लिए निकलती है, वह राक्षस है | उल्लू, कुत्ते, भेड़िये, बाज़ और गिद्ध के समान आक्रमण करने वाले राक्षस हैं | इससे यह स्पष्ट है कि राक्षस शब्द तबाही मचाने वाले, क्रूर आतंकियों और भयंकर अपराधियों के लिए प्रयुक्त हुआ है | ऐसे महादुष्ट पुरुष या स्त्री दोनों ही दंड के पात्र हैं | ऐसे लोगों का वध कर देने से कोई पाप नहीं लगता है | राक्षसों के कर्मानुसार उनका स्वरूप भी भयंकर एवं डरावना होता था , इन राक्षसों का वध सकारात्मक शक्तियों के द्वारा समय समय पर किया जाता रहा है | राक्षसों को सदैव से यह लगता रहा है कि इस संसार में सब पर हमारा अधिकार होना चाहिए परंतु उनके कर्म ही उनके पतन का कारण बनते रहे हैं | राक्षस कर्म करने वाले कभी सम्मानित व पूजित नहीं हो सकते बल्कि क्रूरता के साथ उनका वध ही होता रहा है |* *आज देवता एवं राक्षस तो नहीं दिखाई पड़ते परंतु मनुष्य ही अपने कर्मों के द्वारा इन उपाधियों से विभूषित हो रहा है | प्राचीनकाल के राक्षसों का स्थान अब आतंकवादियों मे लिया है | जिस प्रकार पूर्वकाल में राक्षसों को प्रसन्नचित्त , पुष्पित - पल्लवित समाज नहीं अच्छा लगता था और वे अपने घृणित कर्मों के द्वारा रक्तपात एवं हिंसा करते रहते थे उसी प्रकार आज भी राक्षसों की प्रजाति इस पृथ्वी पर जीवित है और समय समय पर अपनी उपस्थिति अपनी घृणित एवं हिंसात्मक कार्यवाहियों के माध्यम से दर्ज कपाते रहते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का स्पष्ट कहना है कि ऐसी राक्षस प्रवृत्ति वाले आतंकवादियों का सर कुचलने में कोई दया का भाव नहीं होना चाहिए | जिस प्रतार भगवान श्रीराम ने समाज विरोधी शक्तियों का वध गिन गिनकर किया था उसी प्रकार आज के शासकों को भी ऐसे तत्वों को चुन चुनकर निर्ममता से कुचल देना चाहिए | आज हमारे
देश भारत में भी कुछ कायर आक्रान्ता हो गये हैं जिनका साहस सम्मुख युद्ध करने की नहीं है | आतंकवादियों के रूप में ये राक्षस छुपकर घात लगाकर प्रहार करकें निर्दोषों के प्राण ले रहे हैं | ऐसे लोग यदि किसी बिल में भी घुस जायं तो उनको खींचकर निकालकर कुचल देना ही शासक का कर्तव्य होता है |* *आज पुन: सभ्य समाज राक्षसी प्रवृत्तियों के आतंक से भयभीत हो रहा है | ऐसे में भगवान श्री राम के आदर्शों का पालन करके ही इनसे छुटकारा पाया जा सकता है |*