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एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुँह से स्वर फूटे।   कहो राम ! सबरी की डीह ढूँढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ?  राम मुस्कुराए यहाँ तो आना ही था माँ !  कष्ट का क्या

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥  एक होता है विद्वान और एक विद्यावान।   दोनों में आपस में बहुत अन्तर है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं, रावण विद्वान है और हनुमान जी विद्यावान हैं।  रावण

क्या है नवधा भक्ति श्री राम ने बताया मां शबरी को नवधा भक्ति कैसी होती है । दंडकारण्य में भक्ति-श्रद्धा सम्पन्न एक वृद्धा भीलनी रहती थीं जिनका नाम था शबरी। एक दिन वह घूमती हुई पंपा नामक पुष्करिणी के प

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में श्री राम-केवट संवाद का बहुत मार्मिक व सुंदर चित्रण किया है। पिता की आज्ञा पाकर श्री राम अपने भाई और अपनी भार्या को लेकर प्रस्थान करते हैं। रास्ते में उनको गंगा

रामराज्य का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए केवल श्रीराम ही नहीं राम चरित्र मानस के प्रत्येक पात्र की अपनी एक अहम भूमिका रही है। इसमें महारानी सुमित्रा का त्याग भी कुछ कम नहीं है। महारानी सुमित्रा त्याग की

आखिर यह रामायण है क्या? इससे क्या सीखना है? इसका मनन क्यों करें? तो इस पुस्तक में कुछ प्रसंग हैं जो रामायण के उज्ज्वल पवित्र चरित्रों से आपका परिचय करवा कर रामायण क्या है? आपको यह बताने का प्रयास करे

क्या हो रहा है ?   क्या हो गया हैअब इस जहां को, इंसानियत क्यों यहां मरती जा रही है ? करूणा, प्रेम, त्याग,कम हो रहा है, लालच का दानव खड़ा हंस रहा है, सहनशीलता की शक्ति किसी में नहीं है, क्रोधाग्नि

प्यारी सखी,     कैसी हो।आज मन खुश भी है और उदास भी।अब पहले खुशी की बात बताती हूं आज सुबह जब फोन उठाया तो वहटस अप खोलते ही हमे शैलेश जी का शब्द समूह पर एक संदेश देखा ।कल दो बार इंगित करव

दुनिया में सब खत्म हो गया,प्रेम और भाईचारा सो गया।स्वहित की सब बातें करते,परहित का गुण लोप हो गया।लालच में सब अंधे प्राणी,बदल रहे हर पल जुवानी।गला काटकर खेल खेलते,धोखा कर करते मनमानी।दया,करूणा ना बची

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चान छुपउले जाली कहवाँ , घुँघटा तनिक उठाव । बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव । झुलस रहल धरती के काया छाया ना भगवान लगे । तोहरे बिना ये हो बदरी सब कुछ अब सुनसान लगे । लह लह लहके रेह सिवाने क

दो माह की मेहनत के बाद आखिर पेड पुस्तक लेखन प्रतियोगिता की विजेता बनकर मेरी १० कहानियों का संग्रह पेपर बैक में प्रकाशित होने जा रहा है, तो मन में ख़ुशी है, एक उत्सुकता है। यह प्रतियोगिता यद्यपि सरल तो

दिनाँक: 04.04.2022समय : रात 10:30 बजेप्रिय डायरीजी,आज बचत पर बात करते है।  बचत का संधी विग्रह कीजिये तो उसी से पता चल जाएगा कि अपने को बचाने के लिए किए गए प्रयास ही बचत कहलाते है। फिर वो प्रयास च

क्यूँ नफरतों का सिलसिला, बढ़ता जा रहा है। मानव ही मानव के लिए, जहर उगलता जा रहा है।।  कहीं जाति धर्म तो कहीं, अमीरी गरीबी का भेदभाव।                 

हरीश की मां की लाश के पास बेटे सभी लोग बहुत ही दुखी थे। कुछ लोग उसके गुणों की चर्चा कर रहे थे। वह एक बहुत अच्छी सीधी-साधी औरत थी जिसने कभी भी किसी से बुरे शब्द नहीं कहें सभी लोग रात के तारे गिन रहे थे

बड़ा गजब का मेला लग रहा है आज । लेखन मंच ने सब लेखक लेखिकाओं को "श्रंगार" करके आने के लिए कहा है । लेखकगण को तो क्या श्रंगार करना था ? उनके पास है ही क्या जो उसका श्रंगार करें ? ले दे कर दो चार बाल बचे

तुम्हें-पता है?मेरे-पहाड़ की तरह,अडिग!रहने के कारण ही,तुम-कल कल करती,बहती रही,नदी बनी।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।  

कोमल :- भाभी इतना चुप तो ये कभी नहीं होतीं हैं...। बिमार तो इससे पहले भी बहुत बार हुई हैं लेकिन ऐसे चुप तो कभी नहीं होतीं...। हम बड़ी हास्पिटल लेकर चले क्या इसे...? हीरा :- ठीक हैं कोमल... तुम चि

शाम हो गई पशु-पछ़ी घर लौटने लगें।प्राणी भी अपना काम-काज बंद करके घर लोटने लगें।बच्चे बाहर खेल रहे थे वो भी घरों में लोट आयें।शाम धीरे-धीरे चाँदनी रात में बदलने लगीं। सितारे-झिलमिलाने लगें,तीज का चाँद

सुनैना ने हाथ पकड़ लिया।का सटिया गये हैं जो अपने बेटे को कसाई के हाथों सोंपने चले हैं।खब़रदार जो तुमने काहु फोन के बारे में बताया,भनक तक न लगने देंना।कुछ दिन बाद सब ठ़ीक हो जायेंगा।सबसे चुन-चुनके बदला

माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

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