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समाज

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*हमारे देश भारत में आदिकाल से संस्कृति एवं संस्कार का बोलबाला रहा है | हमारी संस्कृति एवं संस्कार ने हीं भारत देश को विश्व गुरु की उपाधि दिलवाई थी | संस्कृति क्या है ? यदि इसके विषय में ध्यान दिया जाए तो संस्कृति का नाम ही संस्कार है , संस्कार से परिष्कार होता है और परिष्कार में भी संशोधन करके जो

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*सनातन धर्म एक दिव्य एवं अलौकिक परंपरा को प्रस्तुत करता है , समय-समय पर सनातन धर्म में प्रत्येक प्राणी के लिए व्रत एवं पर्वों का महत्व रहा है | परिवार के जितने भी सदस्य होते हैं उनके लिए अलग अलग व्रतविशेष का विधान सनातन धर्म में ही प्राप्त होता है | सृष्टि का आधार नारी को माना गया है | एक नारी के द्

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*भारतीय संस्कृति में नारियों को सदैव सम्माननीय एवं पूजनीय माना गया है | अपने सभी रूपों में नारी सदैव आदर का पात्र रही है | वैदिक काल में नारियों की स्थिति बहुत ही सुदृढ़ हुआ करती थी परंतु मध्यकाल आते-आते विदेशी आक्रांताओं के भय से नारियों को पुरुष प्रधान समाज के बनाए गए नियमों का पालन विवशता में कर

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*माता - पिता के संयोग से परिवार में जन्म लेने के बाद मनुष्य धीरे धीरे समाज को जानता - पहचानता है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक जीव है। समाज ही उसका कर्मक्षेत्र है। अतः उसे स्वयं को समाज के लिए उपयोगी बनाना पड़ता है। मनुष्य ईश्वर की भक्ति एवं सेवा बहुत ही तन्मयता से करता है परंतु समाज की ओर बगुत ही कम ध्य

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🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🔴 *आज का सांध्य संदेश* 🔴🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻 *संसार में मनुष्य सहित जितने भी जीव हैं सब अपने सारे क्रिया कलाप स्वार्थवश ही करते हैं | तुलसीदास जी ने तो अपने मानस के माध्यम से इस संसार से ऊपर उठकर देवत

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*सनातन धर्म के अनुसार श्राद्ध का अर्थ है :- श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना | "सर्वश्रद्धया दत्त श्राद्धम्" अर्थात जो कुछ श्रद्धा से किया जाय वह श्राद्ध कहलाता है | इसी श्राद्ध नामक वृत्ति को धारण करने के उद्देश्य से आश्विन कृष्णपक्ष श्राद्धपक्ष कहलाता है | इसमें परिजन अपने पितरों को अपनी

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*इस संसार में सबसे कठिन और दुष्कर कार्य है मानव जीवन का प्राप्त होना , क्योंकि हमारे शास्त्रों का कथन है कि अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद बड़ी मुश्किल से मनुष्य का शरीर जीव को प्राप्त होता है | मनुष्य सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है | मनुष्य के लिए अपनी इच्छा से मानव जीवन पाना तो असंभव है परंतु म

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*इस संपूर्ण सृष्टि में आदिकाल से लेकर आज तक अनेकों विद्वान हुए हैं जिनकी विद्वता का लोहा संपूर्ण सृष्टि ने माना है | अपनी विद्वता से संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने वाले हमारे महापुरुष पूर्वजों ने आजकल की तरह पुस्तकीय ज्ञान तो नहीं प्राप्त किया था परंतु उनकी विद्वता उनके लेखों एवं साहित्य से प्रस्फ

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बॉलीवुड अभिनेत्रियांकभी अपने स्टाइल, लुकया फ़िल्मों को लेकर चर्चा में रहती है, लेकिन अपने पॉपुलर के चेहरे के अलावा वो खूबसूरतव्यक्तित्व भी रखती हैं. जी हां बॉलीवुड में कई हीरोइन्सहै जो किसामाजिक उत्तरदायित्वों का बखूबी निर्वाहकर रही है। हम अपने लेख में उन अभिनेत्रियों के

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सुनो छोटी सी गुड़िया की नन्ही कहानी...सच में एक ऐसी मासूम कहानी जो आज पूरे देश में सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हो गई। अमर उजाला ने शुक्रवार के अंक में एक मासूम बच्ची की खबर फोटो के साथ प्रकाशित की थी। जिसमें उस मासूम बच्ची की जिद थी कि उसकी गुड़िया के पैरों पर प्ला

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*प्राचीनकाल में जब मनुष्य अपन्े विकास पथ पर अग्रसर हुआ तो उसके पास उसकी सहायता करने के लिए साधनों का अभाव था | शारीरिक एवं बौद्धिक बल को आधार बनाकर मनुष्य ने अपने विकास में सहायक साधनों का निर्माण करना प्रारम्भ किया | आवश्यक आवश्यकताओं के अनुसार मनुष्य ने साधन तो प्राप्त कर लिए परंतु ज्ञान प्राप्त क

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महिला होने का महत्व : Value of being a woman स्त्री महिला अर्थार्थ दादी , माँ , पत्नि , बहन , बेटी, बुआ , मासी ,............आदि ..... आदि| इनके बिना घर केवल मकान होता है, घर नहीं। इनकी कमी का अहसास तब होता है, जब वे घर में नहीं होतीं या आपके साथ किसी स्त्री का सम्बंध

निर्माण नशेमन का नित करती, वह नन्हीं चिड़िया ज़िद करती। तिनके अब बहुत दूर-दूर मिलते, मोहब्बत के नक़्श-ए-क़दम नहीं मिलते।ख़ामोशियों में डूबी चिड़िया उदास नहीं, दरिया-ए-ग़म का किनारा भी पास नहीं। दिल में ख़लिश ता-उम्र सब्र का साथ लिये, गुज़रना है ख़ामोशी से हाथ में हाथ लिये। शजर

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*आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता संपूर्ण विश्व को दिशा निर्देश देती रही है | हमारे मनीषियों ने माता -;पिता एवं जन्मभूमि की महत्ता को बताते हुए लिखा है :- "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात :- अपनी माता और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी महान है | हमारे सनातन धर्म के धर्मग्रंथों एवं व

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*सृष्टि की संकल्पना , उन्नति एवं विकास का आधार आदिकाल से नारी ही रही है | सृष्टि का आधार होने के कारण नारी को विधाता की अद्वितीय रचना कहा गया है | नारी समाज, संस्कृति और साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है | सृष्टि के आरंभ से ही सृष्टि के निमार्ण और संचालन में नारी की अहम भूमिका रही है | मानव जाति की सभ्य

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*आदिकाल से मनुष्य का सम्बन्ध प्रकृति एवं पर्यावरण से रहा है | घने जंगलों में प्रकृति की गोद में ही बैठकर ऋषियों ने तपस्या करके लोककल्याणक वरदान प्राप्त किये तो इसी प्रकृति की गोद में बैठकर हमारे पूर्वज महापुरुषों ने मनुष्य को सरल एवं सुगम जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करने वाले ग्रंथों की रचना की | प्र

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*परमपिता परमात्मा ने मनुष्य की सृष्टि करने के पहले उसकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए सुंदर प्रकृति की रचना की | धरती , आकाश की रचना करने के बाद मनुष्य के जीवन से जुड़े अग्नि , जल एवं वायु की रचना करके मनुष्य को एक सुंदर जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया | इस धरती पर ऊंचे - ऊंचे पहाड़ तो बनाये ही साथ

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दृढ़ संकल्प इस धरा धाम पर मानवयोनि में जन्म लेने के बाद मनुष्य जीवन में अनेकों कार्य संपन्न करना चाहता , इसके लिए मनुष्य कार्य को प्रारंभ भी करता है परंतु अपने लक्ष्य तक कुछ ही लोग पहुंच पाते हैं | इसका कारण मनुष्य में अदम्य उत्साह एवं अपने कार्य के प्रति निरंतरता तथा सतत प्रयास का अभाव होना ही कहा

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