*मनुष्य जीवन में संयम का बहुत ही ज्यादा महत्त्व है | ईश्वर ने मनुष्य की अनुपम कृति की है | सुंदर अंग - उपांग बनाये मधुर मधुर बोलने के लिए मधुर वाणी प्रदान की | वाणी का वरदान मनुष्य को ईश्वर द्वारा इस उद्देश्य से प्रदान किया है कि वह जो कुछ भी बोले उसके पहले गहन चिंतन कर ले तत्पश्चात वाणी के माध्यम से उसे अभिव्यक्त करे | मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति दो माध्यमों से ही कर पाता है प्रथम तो बोलकर एवं दूसरा लिखकर जिनमें से कुछ भी लिख पाने में मनुष्य एक निश्चित समय के बाद सक्षम हो पाता है परंतु बोलने की कला उसे जन्म से ही प्राप्त होती है | अपने अन्तर्मन के उद्गारों को , भावनाओं को , सुख एवं पीड़ा को वाणी के माध्यम से ही मनुष्य व्यक्त कर पाता है | प्रत्येक मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए क्योंकि जहाँ वाणी मनुष्य के अस्तित्व एवं अभिव्यक्ति का प्रमुख आधार है वहीं एक प्रमुख कारण भी है जिसके माध्यम से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का क्षरण सबसे अधिक होता है | मनुष्य यदि वाणी के माध्यम से सबका प्रिय बन जाता है तो मनुष्य के अहंकार , क्रोध , द्वेष , तृष्णा , वासना की अभिव्यक्ति वाणी के ही माध्यम से करके मनुष्य
समाज में उपेक्षित होता रहा है | इसीलिए वाणी का संयम जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है | जिन्हें अपनी वाणी पर संयम नहीं होता है उनकी आंतरिक एवं मानसिक शक्ति नष्ट होती रहती है और वे शारीरिक के साथ मानसिक थकान से थकित होकर पड़े रहते हैं |* *आज के युग में जहाँ भी दृष्टि दौड़ाओ वाणी का असंयम स्पष्ट दिखाई पड़ता है | परिवार से लेकर समाज तक ,
देश से लेकर विदेश तक यदि दृष्टि दौड़ाई जाय तो अनेक प्रकार की घटनाओं , परिवारों में विघटन , वैवाहिक सम्बन्ध - विच्छेदन , एवं समाज में फैली कटुता के मूल में वाणी का असंयम ही दिखाई पड़ता है | आज लोग बिना विचारे अपनी वाणी का प्रयोग कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि कुछ भी बोल जाने के बाद मनुष्य यह जान भी जाता है कि हमें यह नहीं बोलना चाहिए था परंतु वह पश्चाताप न करके अपनी ओजस्वी वाणी से अनर्गल प्रलाप करता ही रहता है जिसका परिणाम आज सभी देख रहे हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि वाणी की वाचालता शक्ति के क्षरण के अतिरिक्त संबंधों में कटुता भी पैदा करती है | जिनको दूसरों की चुगली करने की , निंदा करने की , द्वेषपूर्ण बातें कहने की आदतें पड़ती हैं उनके संबंध सदा विषाक्त ही बने रहते हैं | वाचाल व्यक्ति को बिना सोचे समझे कुछ भी बोल पड़ने की आदत पड़ जाती है , और इसलिए वह यह भी नहीं सोच पाता है कि मैं जो कह रहा हूं उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? ऐसे लोग अपने आगे दूसरों की कभी नहीं सुनते हैं ऐसा करके भी किसी नवीन
ज्ञान को जानने - सुनने का अवसर भी गंवा बैठते हैं | शब्द को ब्रह्म कहा गया है | ब्रह्म का प्रयोग कब ? कहां ? कैसे ? करना है यह आज का मनुष्य भूलता चला जा रहा है एवं इसके कारण ही आज समाज में जगह-जगह पर विघटन एवं कटुता का साम्राज्य स्पष्ट दिखाई पड़ता है |* *प्रत्येक मनुष्य को अपनी आंतरिक , मानसिक एवं शारीरिक शक्ति का संचय कर लेने के बाद बहुत सोच समझ कर विषयबद्ध वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए |*