!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *किसी भी राष्ट्र ,
समाज व सभ्यता की पहचान उसकी शिक्षा से होती है | शिक्षा मानव मात्र की आवश्यक आवश्यकता है , इस बात को ध्यान में रखते हुए सनातन के मनीषियों ने समाज को शिक्षित करने का उद्देश्य लेकर स्थान - स्थान पर नि:शुल्क
ज्ञान बाँटने का कार्य गुरुकुलों के माध्यम से किया | सनातन
धर्म की प्राचीनता को सम्पूर्ण विश्व समय समय पर स्वीकार करता रहा है | प्राचीन शिक्षा पद्धति मात्र शिक्षा ही नहीं बल्कि शिक्षा के साथ - साथ छात्रों को संस्कार प्रदान करते हुए युद्धकौशल , संगीत एवं कला में भी निपुण बनाने वाली थी | सम्पूर्ण संसार का जगदगुरू कहलाये जाने वाले
भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली की विशेषता यह थी कि बालक का ६-७ वर्ष की अवस्था में उपनयन संस्कार कर दिया जाता था | यज्ञोपवीत हो जाने पर बालक २५ वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण करता था ।ज्ञानार्जन के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर कर्तव्यों का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्ति करता था | विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा-दीक्षा पूरी होने पर स्नातक बनता था, फिर समावर्तन संस्कार होने के बाद अपने गृहस्थ धर्म का पालन करता था | प्राचीनकाल में गुरु एवं शिष्य का सम्बन्ध भावात्मक होता था | उनका सम्बन्ध पिता एवं पुत्रवत था | ऐसे नियमों का जब पालन किया जाता था तब चरित्र निर्माण होता था |* *आज की शिक्षा मात्र व्यवसायिक बनकर रह गई है | हम लॉर्ड मैकाले द्वारा स्थापित आधुनिक शिक्षा पद्धति में फंसकर अपनी प्राचीन शिक्षा पद्धति को भूलते जा रहे हैं या यूँ कहिये कि लगभग भूल चुके हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज हमारे यहाँ शिक्षा का महत्व बस यही है कि जिसने ५ - १० किताबें स्कूल जाकर अध्यापक से पढ़ ली तो समझा जायेगा की वो शिक्षित है | और जिसने जितनी अधिक स्कूल कॉलेज जाकर अपने अध्यापक से शिक्षा ली वो उतना ही अधिक शिक्षित है | आजकल लोगो का यही मानना है जो व्यक्ति अक्षरों से परिचित है वो शिक्षित है , और जिसको अक्षरों का ज्ञान नहीं वो हमारे यहां अशिक्षीत है | आज किताबी शिक्षा होना हमारे
देश में आवश्यक माना जाता है , और जो यह योग्यता नहीं रखता वह कदापि शिक्षित नहीं कहलाता है | वास्तव में शिक्षा का संपर्क स्कूली पठन -, पाठन से ज्यादा नहीं है | आजकल शिक्षा का अर्थ कोई अच्छी सी
नौकरी करना है , अथवा अच्छे व्यवसाय के द्वारा जीविका अर्जन करना समझा जाता है , क्योंकि इन सभी कार्यों मे लिखना पढ़ना अनिवार्य होता है , इसलिएआजकल इन कामो में सफल होने वाले व्यक्ति ही शिक्षित समझे जाते है | प्राचीन काल की शिक्षा पद्धति आज की शिक्षा पद्धति से अलग थी | आज की शिक्षा जहाँ किताबो तक ही सीमित है वहीं प्राचीनकाल की शिक्षा किताबी ना होकर व्यवहारिक होती थी जो मानव को महामानव बनाती थी | आधुनिक शिक्षा आज की आवश्यकता है परंतु प्राचीन शिक्षा हमारी संस्कृति है इसका भी ध्यान रखते हुए उसे भी आत्मसात करने की आवश्यकता है |* *हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली गैर-तकनीकी छात्र-छात्राओं की एक ऐसी फौज तैयार कर रही है जो अंततोगत्वा अपने परिवार व समाज पर बोझ बन कर रह जाती है | अत: शिक्षा को राष्ट्र निर्माण व चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है |*