!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन
धर्म आदिकाल से मानवमात्र को एक समान मानते हुए "वसुधैव कुटुम्बकम्" का उद्घोष करता रहा है | वैदिककाल में वर्णव्यवस्था बनाकर
समाज को संचालित करने का प्रयास किया गया था | इस वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र मनुष्य अपने कर्मों के आधार पर बनता था | मध्यकाल में जब विदेशी आक्रांताओं ने हमारे
देश पर आक्रमण किया तो हिंदुओं की एकता को विखण्डित करने के लिए वर्णव्यवस्था को जातिव्यवस्था में परिवर्तित करके हमें तोड़ने का कार्य किया | इसी के बलबूते पर हमें सदियों तक पराधीन बनाकर रखा तो गया ही साथ ही हमारे बीच वैमनस्यता बढ़ाने का कार्य भी किया गया | आक्रांताओं ने सबसे अधिक हमारे धर्मग्रंथों की क्षति करके उसमें भ्रम फैलाने वाले अध्यायों को जोड़ दिया गया , जिसे हम आज तक सत्य मानकर आपस में लड़ रहे हैं | वर्णाश्रम किसी काल में अपने सही रूप में था, लेकिन अब इसने जाति और समाज का रूप ले लिया है, जो कि अनुचित है | प्राचीनकाल में किसी भी जाति, समूह या समाज का व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या दास बन सकता था | पहले रंग, फिर कर्म पर आधारित यह व्यवस्था थी, लेकिन जाति में बदलने के बाद यह विकृत हो चली है | हम इसको इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि जैसे :- चार मंजिल के भवन में रहने वाले लोग ऊपर-नीचे आया-जाया करते थे | जो ऊपर रहता था वह नीचे आना चाहे तो आ जाता था और जो नीचे रहता था वह अपनी योग्यतानुसार ऊपर जाना चाहे, तो जा सकता था | लेकिन जबसे ऊपर और नीचे आने-जाने की सीढ़ियां टूट गई हैं, तब से ऊपर का व्यक्ति ऊपर और नीचे का नीचे ही रहकर विकृत मानसिकता का हो गया है | यही आज का सत्य है |* *आज हमारे चारों ओर जातिगत संघर्षों की बाढ़ सी आ गई है | आज हमारे देश की
राजनीति इतने निम्नस्तर की हो गयी है कि बात बात पर सवर्ण एवं दलित की राजनीति होने लगती है |दलित शब्द का अर्थ भी न जानने वाले राजनेता आज अपने स्वार्थ के लिए आपस में लड़ा रहे हैं और हम भी मैदान में डटे हैं | इन राजनेताओं के द्वारा इसका दोषी सनातन धर्म की व्यवस्थाओं को बताया जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इन छद्मवेषधारी तथाकथित वामपंथी एवं जाति की राजनीति करने वाले राजनेताओं से पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने सनातन के त्यौहार होली , दीपावली का दर्शन नहीं किया ?? क्या सनातन ने सवर्णों एवं दलितों के लिए पृथक त्यौहार सृजित किये हैं ?? समाज को पृथक एवं विखण्डित सनातन ने नहीं बल्कि इन राजनेताओं ने किया | जो भी सनातन संस्कृति का दर्शन करना चाहता हो वह इस समय कुंभ में चला जाय , जहाँ न तो कोई सवर्ण है और न ही दलित | सब एक साथ एक घाट पर स्नान करके एक साथ ही मंदिरों में प्रसाद चढ़ा रहा है | ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र के दर्शन आपको वहाँ नहीं मिलेंगे बल्कि वहाँ मात्र हिन्दू मिलेगा ! यही नहीं अन्य धर्मों के अनुयायी भी कुंभ में दर्शन देकर सनातन धर्म की "वसुधैव कुटुम्बकम्" की मान्यता को बल प्रदान करते हैं | हिन्दू समाज पर वर्तमान में कलंक की तरह नजर आती है जातिवादी व्यवस्था | इसको पिछले ७० वर्षों में जितना बढ़ाया और चमकाया गया उतना गुलामी के काल में भी शायद नहीं किया गया होगा | हालांकि अंग्रेजों ने हिन्दुओं को बहुत से उपनाम से सुशोभित करके उनको और भी जातियों में बांटने का काम जरूर किया | आजकल तो इसे हवा देने वाले लोगों की संख्या भी पर्याप्त हो चली है | ऐसे में हमें सावधान रहते हुए विवेक का प्रयोग करने की आवश्यकता है |* *पहले हम मुगलों के , फिर अंग्रेजों के पराधीन रहे और अब हमें हमारे ही देश के राजनेताओं ने मानसिक गुलाम बना रखा है | हमें इस मानसिक गुलामी से स्वतंत्र होना होगा |*