*इस संसार की रचना परमपिता परमात्मा की इच्छा मात्र से हुई है ! ब्रह्मादि देवताओं के आधारभूत पारब्रह्म को जगतनियन्ता , जगत्पिता आदि की उपाधियों से विभूषित किया जाता है | उसी दिव्य शक्ति को विराट पुरुष , श्रीहरि विष्णु ईश्वर , परमेश्वर , भगवान आदि कहा जाता है ! ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है वह तो मात्र श्रद्धा एवं विश्वास का विषय है | यही परम शक्ति सृष्टि के संयोजन के लिए बार बार पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं | भगवान के अवतारों में दो अवतार मुख्य रूप से पूजित हैं | त्रेता में रामावतार और द्वापर में कृष्णावतार ! भगवान श्रीराम को जगत्पिता एवं भगवती सीता को जगज्जननी कहकर सम्बोधित किया गया है | भगवान श्री राम ने अपने जीवन में उच्च आदर्श एवं मर्यादा स्थापित की है ! पितृभक्त , एकपत्नीव्रत , प्रजापालक , असुर विनाशक आदि की उपमा उनके लिए न्यून हो जाती है | ऐसे मर्यादित श्री राम ने रावण जैसे दुर्दान्त व्यभिचारी , बलात्कारी राक्षसराज का वध करके यह संदेश दिया कि नारी पर कुदृष्टि डालने वाला वध योग्य ही होता है ! रावण वध का कारण मात्र सीता हरण ही नहीं बल्कि वेदवती का शीलभंग करना , अपनी पुत्रवधू (नलकूबर मणिग्रीव की पत्नी) के साथ दुराचार करना , कौशल्सा का हरण करना , हरिभक्तों पर हिंसक अत्याचार करना आदि अनेक कारण थे | यदि आर्षग्रन्थों पर दृष्टि डाली जाय तो श्रीराम के अवतार लेने का एक प्रमुख कारण रावण भी था ! सनक , सनन्दन , सनातन एवं सनतकुमार आदि ऋषियों से शापित होकर श्री हरि के पार्षद (द्वारपाल) जय और विजय ही तीन जन्मों तक हरिद्रोही बनकर पैदा हुए और तीनों ही जन्मों में अवतार लेकर जगत्पिता श्री विष्णु ने उनका उद्धार किया | कुछ लोग जिज्ञासा बस या मूर्खता के कारण अपने ही आराध्य श्रीराम में दोष ढूंढ़ते हुए उन्हें भी रावण वध का अपराधी मानने लगते हैं | रावण का वध तो वूर्व नियोजित था इसके अतिरिक्त रावण जैसे दुर्दान्त निशाचर का वध करने के लिए पर्याप्त कारण था |*
*आज हम आधुनिक हो गये हैं , इस आधुनिकता में आज के मनुष्य ने बहुत विकास किया है परंतु साथ ही अपने संस्कार , संस्कृति एवं श्रद्धा - विश्वास जैसी भावना को भी त्याग दिया है ! आज सन्तान अपने ही जन्मदाता माता - पिता को तिरस्कृत कर रही हैं | यह कलियुग का प्रभाव कहा जाय या कि मनुष्य की आधुनिकता कि आज मनुष्य अपनी विद्वता में वृद्धि करने या उसका प्रदर्शन करने के लिए अपने आराध्य एवं सद्ग्रन्थों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उन्हें ही दोषी मानने लगा है | ऐसे लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कड़े शब्दों में कहना चाहता हूँ कि जिस प्रकार माता ही यह बता सकती है कि सन्तान का पिता कौन है और कैसे बालक का जन्म हुआ ! उसी प्रकार हमारे सद्ग्रन्थ ही माता बनकर यह बताते हैं कि जगत्पिता कौन है ? अब उसे मानना या न मानना मनुष्य का अधिकार एवं विवेक है | मनुष्य का पिता कौन है यह वह स्वयं नहीं जानता है माता या परिजनों के बताये हुए व्यक्ति में श्रद्धा एवं विश्वास का भाव जागृत करके उसे पिता कहा जाता है | परंतु आज के युग में जब मनुष्य अपने ही जन्मदाता पिता को दोषी एवं अपराधी बना रहा है तो जगतपिता श्रीराम को भी दोषी कह देना कोई आश्चर्य नहीं कहा जा सकता | कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि जब रावण ने असली सीता का हरण किया ही नहीं तो उसका वध श्रीराम ने क्यों किया ? ऐसे सभी लोग शायद इतिहास एवं ग्रन्थों का अध्ययन नहीं करते | रावण ने सूर्यवंश के राजा अनरण्यक का वध किया , श्रीराम जन्म के पूर्व ही यह जानकर कि कौशिल्या के पुत्र के हाथों हमारी मृत्यु होगी कौशिल्या का हरण कर लिया इस प्रकार रावण ने अपने वध के कई कारण स्वयं पैदा किये थे | हमारे मानने या न मानने से सत्य परिवर्तित नहीं हो सकता | पिता या जगतपिता के कृत्यों पर सन्देह करके या उन्हें अपराधी मानकर आज के मनुष्य स्वयं अपराधी बन रहे हैं | ऐसा करना सकारात्मक मानसिकता का द्योतक नहीं कहा जा सकता |*
*श्री राम ने रावण का वध किया जो कि परम आवश्यक था ! पापी को दण्ड आदिकाल से वर्तमान तक मिलता रहा है और आगे भी मिलता रहेगा ! ऐसे में अपराधियों को निर्दोष कहने वाले भी अपराधी की ही श्रेणी में गिने जाते हैं ! मनुष्यों को ऐसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए |*