प्रस्तुत है इराश्रेष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा शंसित का अध्यात्मापगाप्लावित औपनिषदिक ज्ञान से संश्लिष्ट संशुद्धाभिधान अध्यात्म जगत् में प्रवेश करने का हमारा उद्देश्य है कि संसार में रहते हुए हमा
प्रस्तुत है शुचिव्रत आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण बहुत दिनों से सदाचार संप्रेषण का क्रम इस कारण चल रहा है ताकि हम इस मानव चैतन्य जाग्रत शरीर से आनन्दमय कार्य और व्यवहार का प्रसार कर सकें
प्रस्तुत है एक और औपनिषदिक आध्यात्मिक ज्ञान युक्त संपूर्ण संसार में विकार और विचार के प्रवाह चलते रहते हैं विचारों के प्रति आग्रही लोग विकारों को शुद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं विकार का संरक्षण कर
का सौश्रवसानुरूपोद्बोधन ॐ का उच्चारण नहीं ॐ की अनुभूति होना मूल बात है लेकिन यह कठिन भी है मनुष्य के द्वारा ही कलियुग में सतयुग की परिकल्पना की जा सकती है जहां शिक्षार्थी और शिक्षक का सुस्पष्ट दृष्टिक
भारत का अध्यात्म केवल चिन्तन का अध्यात्म नहीं है अपितु चिन्तनपूर्वक कर्म का अध्यात्म है और इसका व्यावहारिक स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता में देखना चाहिए l अध्यात्म और व्यवहार का तालमेल आवश्यक है l स्रष्टा औ
प्रस्तुत है सोत्कण्ठ श्रोताओं के समक्ष आज का सौमेधिक आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी द्वारा शंसित नभोवीथी से प्राप्त निःस्वातीत उद्बोधन आचार्य जी ने आज अनुभूत भावों का सहारा लेकर सदाचार संप्रेषण किया
कल प्रयास केन्द्र सरौंहां में आई आई टी के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर श्री सक्सेना जी कानपुर के एक उद्योगपति चतुर्वेदी जी आदि के साथ सिंचाई कृषि के प्रयोगों पर आचार्य जी की चर्चा हुई l इसका प्रबन्ध महामन्त्
प्रस्तुत है भक्तवत्सल दीक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज उद्वोधन : स्थान : सरौंहां सूचना : सरौंहां में आज कृषिक्षेत्र के विशेषज्ञ और महामन्त्री श्री मोहन कृष्ण जी आचार्य जी से भेंट करेंगे l
हम एक दूसरे से मिलें यह भारत वर्ष के प्रेम का आधार है संपूर्ण संगठन का सूत्र है समय समय पर ऐसे आयोजन हों कि लोग दूर दूर से भी आयें स्थान स्थान पर प्रेम, व्यवहार, संगठन,सदाचार, संयम, स्वाध्याय, राष्ट्
प्रस्तुत है परमप्रख्य आशुकवि आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी का आज दिनांक 29-08-2021 का उद्बोधन कार्य कर्म का प्रभाव है कर्म भावनाओं की अभिव्यक्ति है और भावनाएं परमात्मा की एक ऐसी मानवीय निधि है जो प्
स्थान : उन्नाव जहां प्रेम, आत्मीयता, विश्वास, एक दूसरे के प्रति चिन्ता और एक दूसरे के प्रति आनन्द हो वह परिवार कहलाता है परिवार बढ़ता है तो आनंद होता है और हमने ने तो पूरी वसुधा को ही परिवार माना है जह
चार लोग हमारे प्रयास से आत्मशक्तिसम्पन्न हो जाते हैं तो उस आत्म्शक्तिसंपन्नता का संतोष मिलता है l हम किसी विधि व्यवस्था के माध्यम से इस संसार में आये हैं l हमारा आत्मबोध जागृत है तो हम कहीं भी संघर्ष
विदित हो कि हम अध्यात्म वैराग्य राग पौरुषपराक्रम एकत्र करके सोद्देश्य जीवन जीने वाले असामान्य निषेवक हितप्रवृत्त सत्यधृति आचार्य श्री ओम शङ्कर त्रिपाठीजी द्वारा कथित प्रातिदैवसिक सदाचार वेला से अजस्र
स्थान : सरौंहां मूल विषय : चार खंड वाले केनोपनिषद् में तीसरे से चौथे खंड के बीच की एक कथा देवासुर संग्राम समाप्त होने पर जब देवता जीत गये तो उन्हें दम्भ हो गया इसी दम्भ को दूर करने के लिये परब्रह्
के उद्बोधन में आचार्य जी ने केनोपनषिद् के प्रथम मन्त्र केनेषितं पतति प्रेषितं मनः.... और दूसरे मन्त्र श्रोत्रस्य श्रोत्रंमनसो मनो यत् वाचो....की व्याख्या की प्रकृति से हमारा जुड़ाव जितना दूर हो जाता ह
अभिविश्रुत विद्वान आचार्य श्री ओम शङ्कर त्रिपाठीजी द्वारा उक्त इन प्रातःकालीन प्रतीक्ष्य उद्बोधनों का सातत्य वर्णनातीतहै l हमारी ज्ञानाग्नि दग्ध हो, हम शौर्य -संयुत अध्यात्म में रत हों, हमारा राष्ट्र
रहो संगठित और सदा संन्नद्ध रहो , मितभाषी रहकर अनुशासबद्ध रहो , त्याग निराशा कुंठा शौर्य प्रबुद्ध रहो, शक्ति उपासन सहित भाव से शुद्ध रहो । ऐसी ही अनगिनत पंक्तियों से हमारा मार्गदर्शन करने वाले
"देशप्रेम"का हो गया, जिसका सहज स्वभाव । उसके चेहरे पर सहज, अति उदात्त अनुभाव ।। जैसी देशभक्ति में अभिपरिप्लुत रचनाओं से काव्य -जगत को प्रकाशमय करने वाले, प्रातिदैवसिक श्रवण -सुभग उद्बोधन रूपी वैत
दिनांक 20-08-2021 का ईषल्लभ संवदन स्थान : सरौंहां मनोयोग पूर्वक किया गया कार्य स्वयं को तो आनन्दित करता ही है और जो उस कार्य और व्यवहार को देखता और अनुभव करता है उसे भी आनन्द प्राप्त होता है l
बात- बात पर आँखों से अश्रु आ जाती हैंमानती हूँ कि मैं दिल की कमजोर हूँकिंतु बुरी भी नहीं हूँ||दिल को कठोर रखना सीख रही हूँमानती हूँ कठोर रहना सीख जाऊँगीकिंतु अभी सीख नहीं पायी हूँ||जब तक हृदय कोमल हैत