*सनातन हिंदू
धर्म अपनी ज्येष्ठता एवं श्रेष्ठता के लिए संसार में सर्वत्र मान्य हुआ है | विश्व के अनेकानेक विद्वानों विचारकों एवं दार्शनिकों ने सनातन
धर्म के इस तथ्य को स्वीकार किया है | यह धर्म मात्र कुछ सिद्धांतों , संस्कारों एवं विश्वासों की धर्म व्यवस्था मात्र नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों पर व्यवस्थित है | जिनके कारण आदिकाल से नैतिक , सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन विकसित होता रहा है , और इसी वैज्ञानिकता के कारण इस पृथ्वी लोक में जीवमात्र शक्ति एवं संपन्नता का अनुभव करता रहा है | सनातन धर्म के सभी सिद्धांत वैज्ञानिकता से ओतप्रोत हैं , यही कारण है कि अनेक आघात सहने के बाद भी सनातन हिंदू धर्म आज भी फल-फूल रहा है | सनातन हिंदू धर्म पर अनेक संकट एवं अनेक प्रहारों के बाद भी इसकी आंतरिक शक्ति ज्यों की त्यों विद्यमान रही है और आगे भी रहेगी | सनातन हिंदू धर्म मात्र हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि विश्व कल्याण की उद्दात्त भावनाओं से ओतप्रोत है क्योंकि इसका नाम सनातन है | सनातन का अर्थ ही होता है आदि | इसका अर्थ जीवन की उत्पत्ति के साथ जो व्यवस्था बनी वही सनातन धर्म कही जा सकती है | सनातन धर्म में किसी अन्य धर्म या किसी जाति के लिए संकीर्णता का भाव कदापि नहीं है | जो भी मनुष्य सनातन धर्म को संकीर्णता की दृष्टि से देखते हैं उनकी मानसिकता स्वयं संकीर्ण है ! क्योंकि सनातन धर्म एक दर्पण की तरह है और इसे जिस दृष्टि से देखोगे आपको ऐसा ही दिखाई पड़ेगा | जिसका जैसा चेहरा होता है दर्पण में उसे वैसे ही शक्ल दिखाई पड़ती है | सनातन धर्म में छल कपट या बनावट के लिए कोई स्थान ही नहीं है |* *आज विचार करने की बात की है की शुरू से ही सनातन धर्म पर प्रहार होते रहे हैं | अनेक आक्रांताओं ने सबसे पहला प्रहार सनातन धर्म पर ही किया है | उसके बाद
भारत में अंग्रेज आये , और अंग्रेजो ने सनातन धर्म को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया | भारत में प्रविष्ट ईसाई मिशनरियों में धर्म परिवर्तन का कार्य शुरू किया | उनके आकर्षण को देख कर के कुछ लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और हिंदू धर्म को हीन प्रमाणित करने का प्रयास किया | जिसके कारण ईश्वर , धर्म लोक - परलोक की प्राप्ति को सस्ता सौदा मान लिया गया | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह विचार कर सकता हूं कि इसी कारण से सनातन धर्म की वैज्ञानिकता उपेक्षित होती गई | और लोगों का जीवन बिलासी बनता गया | अपनी शक्ति साधनाओं को लोग भूलते चले गए | और साधना का भाव लुप्त होता चला गया | धीरे - धीरे लोगों में संकीर्णता , स्वार्थ , लोभ , घृणा , विलासिता आदि की विकृतियाँ भी बढीं | जिसका परिणाम यह हुआ कि लोगों में अशांति दिखने लगी | इसका एक मुख्य कारण है यदि धर्म का स्वरूप विकृत हो जाता है तो मनुष्य को कभी सुख नहीं प्राप्त हो सकता है , क्योंकि धर्म ही मनुष्य की भावनाओं को शुद्ध करता है , स्वार्थहीन तथा गौरवपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है | व्यक्ति और समाज को शुद्ध रखने की शक्ति केवल धर्म से ही है | आत्मा की स्वतंत्र सत्ता को बल या कानून द्वारा कभी नहीं दबाया जा सकता है धर्म ही उस आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है |* *आज भी यदि सनातन धर्मावलंबी अपनी चेतना को जागृत करें तो शायद उनको एटमबम बनाने की आवश्यकता ही ना पड़े | राष्ट्र का यह साधना बल यदि मनुष्य में जागृत हो जाए तो सनातन धर्म पुन: अपना गौरव प्राप्त कर सकता है | इसमें कोई संदेह नहीं है |*