देशभर में स्वच्छता अभियान के अंतर्गत बहुत सारे पहले किए जा रहे हैं. स्वच्छाग्राही देश को खुले में शौचमुक्त करने के लिए पूरी लगन से मेहनत भी कर रहे हैं. इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि स्वच्छता जैसे विषय को इतनी तवज्जो पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने दी है.
33 वर्षीय रिंकू कुमारी बिहार के नालंदा ज़िले के अलग-अलग गांवों में जाकर, गांववालों को टॉयलेट का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं. गांव-गांव घूमने पर रिंकू को ये पता चला कि गांववालों को टॉयलेट बनवाने के लिए प्रेरित करना मुश्किल है, लेकिन टॉयलेट इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना बहुत मुश्किल.
रिंकू ने TOI को बताया,
एक मैप और मानसिकता में थोड़े से बदलाव से पीढ़ियों पुरानी आदत को बदलना आसान हो गया. कलर कोड से मैं गांववालों को उन क्षेत्रों पर निशान बनाने को कहा जहां वो पॉटी करने में सहज महसूस करेंगे. मैप पूरी तरह से पीले चिह्नों से भर जाया करता था. उन्हें इससे शर्म महसूस होती थी. वे मुझसे मैप को सब लोगों को दिखाने से मना करते.
पेशे से चूड़ी बनानेवाली रिंकू ने बताया कि उन्होंने 10 गांवों को खुले में शौच मुक्त बनाया है.
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के Ateeq Ahmed, कविता ओं द्वारा गांववालों को टॉयलेट बनाने के लिए प्रेरित करते हैं. Ateeq ने TOI को बताया,
'जब मैं Parents से पूछता हूं कि उन्होंने अपनी बहू-बेटियों के सम्मान की रक्षा के लिए शौचालय क्यों नहीं बनावये, तो उनकी ज़बान लड़खड़ाने लगती है. मैं उन्हें प्रेरित करने के लिए कवितायें पढ़ता हूं.'
'दुल्हन हो या बेटी अपनी
शौच को बाहर जब जाती है
मर्द कोई जब देखे उसको
लज्जा से वो मर जाती है
इस ग़ैरत से बचाओ
शौचालय तुम घर में बनवाओ.'
पेशे से शिक्षक Ateeq का कहना है कि स्कूली बच्चों द्वारा अपने माता-पिता को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करना हर जगह कारगर साबित हुआ है.
'ज़िद करो अभियान' बच्चों की ज़िद करने की आदत का फ़ायदा उठाती है. कुशीनगर, उत्तर प्रदेश की स्वच्छाग्रही, Archana Kharwar ने कहा,
हम स्कूली बच्चियों से कहते हैं कि वो अपने माता-पिता को शौचालय बनवाने के लिए बाध्य करें. कई बार तो बच्चियों का एक ग्रुप, शौचालय बनवाने की मांग को लेकर अपनी सहपाठी के घर पहुंच जाता है.
झारखंड के नक्सल प्रभावित ज़िले, सिमडेगा के किसान, Morish Jariya ने एक साल पहले अपने घर पर शौचालय बनवाया और स्वच्छता अभियान के एक Volunteer बन गए. Morish ने कहा,
मैं आस-पास के घरों में जाने लगा. पहले तो लोग मुझे देखते ही दरवाज़ा बंद कर लेते थे. पर धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है.
केन्द्र के बड़े अभियान को जितनी भी सफ़लता मिल रही है वो ऐसे ही हज़ारों हीरोज़ के कारण मिल रही है.
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सेक्रेटरी, Parmeswaran Iyer ने बताया,
Volunteers और स्वच्छाग्रही, दिनभर लोगों को अलग-अलग तरीकों से स्वच्छ आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं. इन लोगों की मेहनत और सरकार के फंड्स ने 4 सालों में ग्रामीण इलाकों में कई शौचालय बनवाए हैं.
यूपी के दो स्वच्छाग्रहियों, Kharwar और बबीता सिंह ने कैंप डे के बारे में TOI को बताया,
सुबह ऐसी जगह पर On-The Spot Visit होते हैं, जहां आमतौर पर लोग खुले में शौच करते हैं. टॉर्च और सीटियां लेकर ODF(Open Defecation Free) सेना और Volunteer गांववालों को खुले में शौच न करने के लिए कहते हैं. इसके बाद हम घर-घर जाकर किस घर में शौचालय नहीं है, ये पता करते हैं. दिन में लोगों को प्रेरित करने के लिए 'गड्ढा खोदो' कैंपेन चलाया जाता है. शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ प्रोग्राम ख़त्म होता है.
महाराष्ट्र के Behavior Change Motivator, Udhav Phad ने लोगों को प्रेरित करते-करते बिहार तक यात्रा की है. उन्होंने TOI को बताया,
सरकारी अफ़सरों के मुक़ाबले, आम आदमी गांववालों तक सहजता से पहुंचता है. हम साईकिल पर यात्रा करते हुए लोगों से बात करते हैं. ये हम रोज़ करते हैं. लेकिन अभियान का असल चैलेंज है शौचालय बनवाने के बाद उसका रख-रखाव.
स्वच्छता के इन हीरोज़ को सलाम!