‘कोई ज़ेन सेंटर में एक जली हुई सिगरेट के साथ एंटर करता है. बुद्ध की मूर्ति तक चलता है, उस मूर्ति पर धुआं उड़ाता है, और उस मूर्ति की गोद में राख छोड़ देता है. यदि तुम वहां खड़े हो तो क्या करोगे?’
ज़ेन मास्टर सेंग सह सोन शा को यह प्रश्न अपने ज़ेन सेंटर में आए अमेरिकी छात्रों के सामने प्रस्तुत करने का शौक है. ‘ड्रॉपिंग एशेज़ ऑन बुद्धा’ कोरियाई ज़ेन मास्टर सेंग सह और उनके अमेरिकी छात्रों के बीच की बातचीत का एक सुखद, मजाकिया और बहुधा मज़ेदार डायलॉग्स का रिकॉर्ड है. ‘ड्रॉपिंग एशेज़ ऑन बुद्धा’ ज़ेन मास्टर और छात्र के बीच ‘त्वरित संवाद’ की ज़ेन शिक्षण पद्धति पर आधारित है जो विस्मय और विरोधाभासों के माध्यम से ‘परम सत्य’ की समझ को जन्म देती है. प्रस्तुत है उसी पुस्तक के पहले कुछ पन्नों का हिंदी भावानुवाद.
एक शाम, प्रोविडेंस ज़ेन सेंटर में, सेंग सह सोन शा ने निम्न धर्म-प्रवचन दिया –
ज़ेन क्या है? ज़ेन ‘स्वयं’ को समझना है. मैं क्या हूं?
चलिए, ज़ेन को एक सर्कल से एक्सप्लेन करता हूं. सर्कल जो पांच जगह मार्क किया गया है: जीरो डिग्री, नाइंटी डिग्री, वन एट्टी डिग्री, टू सेवेंटी डिग्री और थ्री सिक्सटी डिग्री. 360° और 0° एक ही जगह हैं.
# हम पहले 0° से 90° तक की बात करेंगे.ये ‘विचारों’ और ‘आसक्ति’ का क्षेत्र है. विचार इच्छा है, इच्छा दुःख है. सभी चीज़ें परस्पर विलोमार्थी में विभक्त हैं: अच्छा-बुरा, सुंदर-बदसूरत, मेरा-तेरा. मुझे ये पसंद है, मुझे वो पसंद नहीं. मैं सुख पाने का प्रयास करता हूं और दुःखों से बचना चाहता हूं. अतः यहां पर जीवन यातना और यातना जीवन है.
# 90° के पार का क्षेत्र चेतना या कर्म-मैं का क्षेत्र है.90° से नीचे जहां नाम और रूपों से आसक्ति है, वहीं यहां विचारों से आसक्ति है. जन्म से पहले, तुम शून्य थे, अब तुम एक हो, भविष्य में तुम मर जाओगे पुनः शून्य हो जाने के वास्ते. अतः शून्य एक के बराबर, एक शून्य के बराबर. यहां पर सभी वस्तुएं समान हैं, क्यूंकि वो सब एक ही पदार्थ से बनी हैं. सभी चीजों के नाम एवम् रूप हैं, किन्तु उनके नाम एवम् रूप रिक्तता से निर्मित होते हैं, और अंततः रिक्तता में ही वापस समाहित हो जाते हैं. ये भी किन्तु विचार/सोच ही हुई.
# 180° पर कोई भी विचार नहीं होता. ये वास्तविक रिक्तता का अनुभव है. विचारों से पूर्व, कोई शब्द नहीं, कोई कथन नहीं होते. अतः यहां पर कोई पर्वत, कोई नदी, कोई ईश्वर, कोई बुद्ध, कुछ भी नहीं हैं. है तो बस …
– इस अवसर पर सोन-शा मेज़ को पीटते हैं.
# अगला क्षेत्र 270° तक का है, जादू और चमत्कार का क्षेत्र.यहां पर पूर्ण स्वतन्त्रता है. समय और स्थान का कोई प्रभाव नहीं. यह कहलाता है – लाईव विचार. मैं अपना शरीर सर्प के में बदल सकता हूं. मैं पश्चिमी स्वर्ग के बादल में सवार हो सकता हूं. मैं पानी में चल सकता हूं. यदि मुझे जीवन चाहिए, मेरे पास जीवन होगा, यदि मुझे मृत्यु चाहिए, मेरे पास मृत्यु होगी. इस क्षेत्र में मूर्तियां भी रो सकती हैं, ज़मीन न उजली है न अंधेरी, पेड़ों की कोई जड़ नहीं, घाटियों में कोई गूंज नहीं.
यदि तुम 180° में रुक जाते हो, तुम रिक्तता से आसक्त हो जाते हो. यदि तुम 270° में रुक जाते हो, तुम स्वतन्त्रता से आसक्त हो जाते हो.
# 360° में, सभी वस्तुएं वैसी ही हैं, कि जैसी वो हैं, सत्य ‘ऐसा ही’ है. ‘ऐसा ही’ माने किसी भी चीज़ से कोई आसक्ति नहीं. यह बिंदु बिलकुल 0° वाला बिंदु है: हम वहीं पहुंचे जहां से शुरू किया था, जहां हम हमेशा से ही थे. अंतर ये है कि 0° आसक्ति युक्त विचार हैं, 360° आसक्ति रहित.
0° क्षुद्र मैं है. 90° कर्म मैं है. 180° रिक्त मैं है. 270° मुक्त मैं है. 360° वृहद मैं है. वृहद मैं अनंत काल और अनंत क्षेत्र है. अतः कोई जीवन कोई मृत्यु नहीं है. मेरी एक मात्र कामना केवल सभी जीवों को मुक्त करना है. यदि लोग खुश, मैं खुश, यदि वे दुःखी, मैं दुःखी.
ज़ेन 360° तक पहुंचना है. जब आप 360° में पहुंच जाते हो, वृत्त के समस्त अंश विलुप्त हो जाते हैं. वृत्त मात्र ज़ेन का अध्ययन उपकरण है. यह वास्तिवकता में अस्तित्व नहीं रखता. हम इसे विचारों के सरलीकरण हेतु प्रयोग करते हैं.’
और तब सोन-शा एक पुस्तक और क़लम हाथ में लेकर कहते हैं – ये पुस्तक और ये क़लम – क्या ये एक ही हैं या अलग अलग?
0° में ये अलग हैं. 90° में, चूँकि सभी चीज़ें समान हैं अतः पुस्तक, कलम है और कलम, पुस्तक. 180° पर, सारे विचार मिट जाते हैं, अतः कोई शब्द नहीं कोई कथन नहीं मात्र …’ इस अवसर पर सोन-शा मेज़ को पीटते हैं.
270° पर, पूर्ण स्वतन्त्रता है. अतः एक अच्छा उत्तर है कि: पुस्तक क्रोधित है, क़लम मुस्कुरा रही है. अंततः, 360° पर, सत्य ठीक ‘ऐसा ही’ है. अतः यहां पर उत्तर है कि: पुस्तक पुस्तक है, क़लम क़लम.
अतः हर बिंदु पर उत्तर भिन्न हैं. कौन सा उत्तर सही है? क्या तुम समझे?
अब यहां पर तुम्हारे लिए उत्तर है – पांचों उत्तर ग़लत हैं.
क्यूं?
कुछ क्षण रुकने के पश्चात सोन-शा चिल्लये – काट्ज़!!!
और फ़िर बोले – पुस्तक नीली है, पेन्सिल पीली. यदि तुम ये समझ गए, तुम स्वयं को समझ जाओगे.
किंतु यदि तुम ख़ुद को समझे, मैं तुम्हें 30 मर्तबा पीटूंगा. और यदि तुम ख़ुद को नहीं समझे, मैं फ़िर भी तुम्हें 30 दफ़े पीटूंगा.
क्यूं?
फ़िर से कुछ क्षण रुकने के पश्चात सोन-शा बोले – आज बहुत ठण्ड है.
पुस्तक का नाम: ड्रॉपिंग एशेज़ ऑन दी बुद्धा
लेख क: ज़ेन मास्टर सेंग सह, स्टीफन मिशेल
प्रकाशक: ग्रोव प्रेस (न्यू यॉर्क)
ऑनलाइन उपलब्धता: अमेज़न
मूल्य: 1,535 रूपये
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