नई दिल्ली। सूचना के अधिकार के आवेदन के बाद मिले जवाबों से इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि क्या 19 लाख
EVMकहीं गायब हो गईं? आशंका यह भी जाहिर की जा रही है कि संभव है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की खरीददारी में बड़ी धांधली हुई है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में इवीएम सप्लाई करने वाली दो कंपनियों और
चुनाव आयोगके आंकड़ों में बड़ी असमानता सामने आई है। जानकारी के मुताबिक कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की है और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली हैं, उनमें करीब 19 लाख का अंतर है।
चुनाव आयोग हैदराबाद स्थित ECIL और बेंगलुरु स्थित BEL से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें खरीदता है। EVM खरीदी को लेकर दोनों कंपनियों और ईसी के आंकड़ों में बड़ा अंतर सामने आया है। विदित हो कि यह आरटीआई मुंबई के एम एस रॉय ने लगाई थी। इसके जवाब में जो जानकारी उन्हें मिली उसमें इवीएम की खरीद-फरोख्त में गंभीर असमानतएं देखने को मिली हैं।
इससे पता चलता है कि यह एक ऐसी बड़ी गुत्थी है, जो उलझती जा रही है। जबकि रॉय ने बॉम्बे हाईकोर्ट से इस पूरे मामले की जांच की मांग की है। रॉय ने बताया कि 1989-1990 से 2014-2015 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो चुनाव आयोग का कहना है कि उन्हें बीईएल से 10 लाख 5 हजार 662 EVM प्राप्त हुई हैं।
वहीं बीईएल का कहना है कि उसने 19 लाख 69 हजार 932 मशीनों की आपूर्ति की है। दोनों के आंकड़ों में 9 लाख 64 हजार 270 का अंतर है। ठीक यही स्थिति ECIL के साथ भी है जिसने 1989 से 1990 और 2016 से 2017 के बीच 19 लाख 44 हजार 593 ईवीएम की आपूर्ति की।
लेकिन चुनाव आयोग ने कहा है कि उन्हें केवल 10 लाख 14 हजार 644 मशीनें ही प्राप्त हुईं और यहां भी 9 लाख 29 हजार 949 का अंतर पैदा हो रहा है। इसके साथ ही, इवीएम पर खर्च के आंकड़ों में भी बड़ा अंतर है।
पहले की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चुनाव आयोग के अनुसार, BEL से इवीएम की खरीद पर 536.02 करोड़ रुपए का कुल खर्च हुआ है, जबकि BEL ने कहा कि उन्हें 652.56 करोड़ रुपए मिले हैं। यहां इवीएम के खर्च में भी बड़ा अंतर है। ईसीआईएल से इवीएम मंगाने पर चुनाव आयोग के खर्च की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
आश्चर्य की बात है कि ईसीआईएल का कहना है कि उसने 2013-2017 से 2013-2014 के बीच किसी भी राज्य में एक भी इवीएम की आपूर्ति नहीं की थी। फिर भी ईसीआईएल को चुनाव आयोग के माध्यम से मार्च से अक्टूबर 2012 के बीच महाराष्ट्र सरकार से 50.64 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई।
रॉय का सवाल है कि आखिरकार इवीएम की दो कंपनियों से मिले आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर क्यों है? बीईएल और ईसीआईएल द्वारा आपूर्ति की जाने वाली अतिरिक्त मशीनें वास्तव में कहां गईं? यह गड़बड़ी इवीएम पर हुए खर्च में मिली है।
पुरानी इवीएम नष्ट करने का मामला भी स्पष्ट नहीं है। 21 जुलाई, 2017 को चुनाव आयोग ने कहा कि उसने कोई भी इवीएम रद्दी में नहीं बेची है। वहीं ऐसा माना जाता है कि 1989-1990 की इवीएम को निर्माताओं द्वारा स्वयं नष्ट कर दिया गया था। चुनाव आयोग ने कहा है कि 2000-2005 के बीच उन्हें मिली (पुरानी/ खराब/अपूर्ण) इवीएम को नष्ट करने की प्रक्रिया अभी भी विचाराधीन है।
इससे यह भी साफ होता है कि सभी मशीनें अब भी चुनाव आयोग के कब्जे में हैं। बेहतर होगा कि चुनाव आयोग मशीनों की सही-सही गिनती कर ले क्योंकि संभव है कि इस मामले पर उसे स्पस्टीकरण देना पड़ जाए।