शम्मी कपूर. एक जमाने के सुपरस्टार. काम करने के मामले में मूडी आदमी. लेकिन इसी सुपरस्टार को एक डायरेक्टर ने उनके प्राइम टाइम में बोल दिया था कि तुम अब हीरो नहीं बन सकते.
दरअसल शम्मी एक बड़े सुपरस्टार थे तो कोई भी डायरेक्टर उन्हें कुछ भी नसीहत देने से डरता था. लेकिन एक फिल्म की शूटिंग के दौरान इस डायरेक्टर ने शम्मी से कहा कि आपकी उम्र के साथ आपका मोटापा भी बढ़ता जा रहा है. अब या तो आप अपना वजन कम करिए या फिर हीरो की जगह कैरेक्टर रोल करना शुरू करिए. इसके बाद शम्मी ने वजन कम करने की नाकाम कोशिश की. जब ऐसा मुमकिन नहीं हुआ तो कैरेक्टर रोल करने ही शुरू कर दिए.
शम्मी जैसे बड़े स्टार के मुंह पर ऐसा कहने वाले उस डायरेक्टर का नाम था, शक्ति सामंता. वही शक्ति सामंता, जिन्होंने राजेश खन्ना की सुपरहिट फिल्मों ‘अनुराधा’, ‘कश्मीर की कली’ सहित 40 से ज्यादा हिंदी और बंगाली मूवीज डायरेक्ट की थीं.
जब यूपी का होने की वजह से नहीं मिला कॉलेज में दाखिला
शक्ति सामंता का जन्म बंगाल के बर्धमान जिले में 13 जनवरी, 1926 को हुआ था. पिताजी इंजीनियर थे. जब शक्ति दो साल के थे, उनके पिता एक दुर्घटना में नहीं रहे. उसके बाद बंगाल में शक्ति को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था. इसलिए उन्हें अपने चाचा के पास यूपी के बदायूं भेज दिया गया.
शक्ति पढ़ाई-लिखाई में तेज थे तो पढ़ने के लिए देहरादून चले गए. वहां से इंटरमीडियट पास कर अपने पिता की तरह इंजीनियर बनने का सपना लेकर कलकत्ता पहुंचे. वहां इंजीनियरिंग के लिए एंट्रेंस का एग्जाम दिया. एग्जाम अच्छे नंबरों से पास भी कर लिया. लेकिन उस टाइम अंग्रेजों का राज था तो एक अलग नियम था. उस नियम के मुताबिक बंगाल में बंगाल के अलावा केवल बिहार और उड़ीसा के छात्रों को एडमिशन मिलता था. क्योंकि शक्ति अब यूपी के रहने वाले बन चुके थे तो उन्हें एडमिशन नहीं मिला. और वापस आने तक यूपी के कॉलेजों का एडमिशन का टाइम निकल चुका था.
इसलिए यह साल बर्बाद होना तय हो गया था. अपने चाचा के कहने पर वो उनके काम में हाथ बंटाने लगे थे. इस बीच शक्ति को ऐक्टिंग का चस्का लग चुका था. जिसके चलते वो काम के साथ साथ थिएटर और ड्रामा भी करने लगे.
थिएटर करने के चलते वो देर-सवेर घर लौटते थे और काम में भी कम ध्यान लगा पाते थे. ये उनके चाचा को पसंद नहीं था. एक दिन वो थिएटर से रात में लेट आए. इस पर उनके चाचा ने बुरी तरह से डांट दिया और बुरा भला सुनाया. इससे शक्ति बहुत दुखी हो गए और हमेशा के लिए चाचा का घर छोड़कर अपना शौक पूरा करने मुंबई निकल गए.
मुंबई के लिए निकले, पर रास्ते में अटके
शक्ति निकले तो मुंबई के लिए थे, पर सीधे मुंबई नहीं पहुंच पाए. उस टाइम वो बस 21 साल के थे पर उनको समझ थी कि बिना किसी सहारे के मुंबई में जगह नहीं मिल सकती. इसलिए उन्होंने मुंबई से 200 किलोमीटर पहले दापोली में एक अंग्रेजी हाई स्कूल में नौकरी ली. यहां से मुंबई स्टीमर से बस दो-तीन घंटे की दूरी पर थी. तो वो आसानी से मुंबई आ-जा सकते थे.
इस स्कूल में अधिकतर अफ्रीकी मुस्लिम छात्र पढ़ते थे. यहां खेल ने के लिए साज-ओ-सामान नहीं था. शक्ति ने स्कूल प्रशासन से बात कर खेल-कूद के सामान मंगवाए. इससे वहां पढ़ने वाले छात्र शक्ति से बड़े खुश हुए और उनके दोस्त बन गए. यहां शक्ति को काम करने के लिए 130 रुपये मिलते थे.
फिल्मों में काम करने की चाह में शक्ति हर शुक्रवार को मुंबई चले जाते थे और अगले दो दिन वहीं काम की तलाश करते थे. पर मुंबई में काम मिलना इतना आसान नहीं था. उस टाइम बॉम्बे टॉकीज एक बड़ा स्टूडियो था. शक्ति भी वहीं जाकर अपनी उम्मीद तलाशते थे.
शक्ति और भारत देश दोनों की किस्मत ने एक साथ पलटी. अंग्रेजों का राज खत्म हुआ और भारत से दो देश बन गए. बहुत से कलाकारों को रातों-रात भारत छोड़ पाकिस्तान जाना पड़ा. और यहीं से शक्ति सामंता की किस्मत बदल गई.
बॉम्बे टॉकीज में कलाकारों की कमी हो गई थी. उस समय के जाने-माने ऐक्टर अशोक कुमार उर्फ दादामुनि बॉम्बे टॉकीज के साथ जुड़े हुए थे. शक्ति ने दादामुनि के पास जाकर काम मांगा. दादामुनि ने एक असिस्टेंट डायरेक्टर बनाकर शक्ति को काम पर तो रख लिया लेकिन बिना पैसे के. उन्हें सिर्फ खाना-पीना मिलता था, पैसे नहीं मिलते थे. एक ब्रेक पाने की कोशिश में लगे शक्ति के लिए यह बड़ा मौका था. वो बिना पैसे के भी काम करने लगे.
बंगाली और हिंदी दोनों भाषा जानने के कारण वो डायरेक्टर फणी मजूमदार के लिए बांग्ला से हिंदी में ट्रांसलेशन का काम भी करते थे. इस काम के उन्हें पैसे मिलते और खर्चा चलता.
एक दिन शक्ति ने दादामुनि को अपने ऐक्टर बनने के सपने के बारे में बताया लेकिन दादामुनि ने उनके टैलेंट को देखते हुए डायरेक्शन की फील्ड में ही काम करते रहने की सलाह दी.
कामयाबी का ‘इंस्पेक्टर’ कनेक्शन
अपनी ऐक्टिंग की हसरत को पूरी करने के लिए वो मूवीज में छोटे-मोटे रोल कर लेते थे. अमूमन सारी पिक्चरों में उन्हें एक पुलिसवाले का किरदार मिलता था जिसका काम बस ‘फॉलो हिम’ बोलना होता था. लेकिन इस बीच काम करते-करते उनकी बहुत-सी बड़ी हस्तियों से जान-पहचान हो गई थी. इनमें गुरुदत्त और ब्रजेन्द्र गौड़ भी थे. गौड़ को उन दिनों एक फिल्म डायरेक्ट करने का ऑफर हुआ जिसका नाम था ‘कस्तूरी’. पर गौड़ साहब उस टाइम एक दूसरी पिक्चर पर काम कर रहे थे. जिसके चलते उन्हें काम करने में दिक्कत महसूस हुई. उन्होंने इस काम में शक्ति की मदद मांगी. शक्ति तो इस मौके के लिए तैयार थे. उन्होंने 250 रुपये की तनख्वाह में काम करना तय किया. ये शक्ति की फिल्मों से पहली बड़ी कमाई थी.
ये तो अभी छोटी सी शुरुआत थी. अभी बड़ा मौका तो शक्ति का इंतजार कर रहा था. म्यूजीशियन और प्रॉड्यूसर एस एच बिहारी और लेख क दरोगाजी एक फिल्म बनाने जा रहे थे जिसका नाम था ‘इंस्पेक्टर’. वो इस कहानी पर नाडियाड़वाला के साथ मिलकर काम कर रहे थे. उन्हें लगा कि इस स्टोरी को हिट बनाने के लिए किसी बड़े ऐक्टर को लेना पड़ेगा पर इससे बजट बिगड़ जाएगा. ऐसे में उन्होंने पैसे बचाने के लिए किसी बड़े डायरेक्टर की जगह एक नये डायरेक्टर को काम दिया जिसका नाम था शक्ति सामंता. मूवी में दादामुनि और गीता बाली ने काम किया और ‘इंस्पेक्टर’ सुपरहिट हुई. लेकिन मजे की बात तो यह थी कि ‘इंस्पेक्टर’ का काम पहले शुरू करने के बावजूद उनकी एक दूसरी मूवी ‘बहू’ पहले रिलीज हो गई थी.
एक बार चले तो फिर रुके नहीं
‘आराधना ‘ भी शक्ति दा की फिल्मों में से एक है
इंस्पेक्टर मूवी डायरेक्ट करने से शुरू हुआ शक्ति दा का ये सफर चलता ही गया. और एक के बाद एक कई बड़े सितारों के साथ बहुत सारी फिल्में की.
राजेश खन्ना को बॉलीवुड का सुपर स्टार बना देने वाली फिल्म ‘आराधना’, ‘कटी पतंग’, ‘अमर प्रेम’ और ‘अजनबी’ भी शक्ति सामंता ने ही डायरेक्ट की थीं. राजेश खन्ना के सुपर स्टार बनने में एस डी बर्मन और शक्ति सामंता का बहुत बड़ा रोल था.
शम्मी कपूर को हीरो लेकर बनाई पिक्चर ‘कश्मीर की कली’ ने तो हर पिक्चर में रोमांस के लिए कश्मीर के सीन दिखाने का ट्रेंड बना दिया था. इस पिक्चर का गाना ‘तारीफ करूं क्या उसकी’ सुपर-डुपर हिट रहा. शक्ति सामंता ने अशोक कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक कई बड़े सुपरस्टारों के साथ काम किया. उन्होंने हिंदी और बंगाली की 43 मूवीज डायरेक्ट की.
पिक्चरों के साथ गाने भी सुपर हिट
शक्ति दा की एक बड़ी बात हिट पिक्चरों के साथ हिट गानों की भी थी. उनकी फिल्मों के कई गाने एवरग्रीन गाने बन गए. इन गानों की लिस्ट बहुत लंबी है पर इनमें से कुछ खास नगमे ‘रूप तेरा मस्ताना’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’, ‘कोरा कागज था ये मन मेरा’, ‘बार-बार देखो’, ‘चंदा है तू’, ‘एक अजनबी हसीना से’ और ‘ये शाम मस्तानी’ प्रमुख हैं. एस डी बर्मन ने शक्ति दा के साथ बहुत काम किया था. तो ऐसे सुपरहिट नगमे दोनों की पहचान बने.
मधुबाला को एक रुपये में किया साइन
शक्ति दा का एक्सीडेंट हो गया था. वो बहुत दिनों तक बिस्तर पर रहे और पड़े-पड़े एक पिक्चर की कहानी सोच ली जिसका नाम रखा हावड़ा ब्रिज. तय किया कि इस पिक्टर में अशोक कुमार और मधुबाला को लेंगे. पर उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि दोनों सुपरस्टार्स को ले सकें. उन्होंने अशोक कुमार से इस बारे में बात की. स्टोरी को देखकर अशोक कुमार खुद तो तैयार हो ही गये साथ ही मधुबाला से बात करने का जिम्मा भी ले लिया. कहानी को लेकर अशोक ने मधुबाला से बात की और उन्हें सिर्फ एक रुपये टोकन मनी पर काम करने के लिए राजी कर लिया. साथ ही संगीतकार ओपी नैयर को 1000 रुपये देकर साइन किया. ये फिल्म पर्दे पर सुपरहिट साबित हुई. और शक्ति सामंता की पहचान एक प्रॉड्यूसर के रूप में भी बन गई.
जब सफल हुई उनकी आराधना
आराधना राजेश खन्ना की पहली बड़ी फिल्म थी. आराधना में शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना थे. जब यह फिल्म शूट हो गई थी तो शक्ति दा अपने दोस्त निर्माता सुरेंदर कपूर (अनिल कपूर के पापा) की एक फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग में गये. शक्ति दा ने पाया कि उस फिल्म का क्लाईमैक्स आराधना के क्लाईमैक्स से पूरा मिलता है. और इन दोनों फिल्मों को लिखा भी एक ही आदमी ने था जो थे सचिन भौमिक. शक्ति ने इस फिल्म को ड्रॉप करने के बारे में भी सोचा. लेकिन इतना नुकसान वो सहन नहीं कर सकते थे. इसलिए भारी मन से आराधना रिलीज करने का ही फैसला लिया. शुरुआत में इस फिल्म पर लोगों का रेस्पॉन्स भी फीका आया. लेकिन दूसरे हफ्ते से ये फिल्म हिट होना शुरू हुई और थियेटरों के बाहर लम्बी लाइनें लगना शुरू हो गई. और ये फिल्म बड़ी हिट साबित हुई. और एक नया नाम राजेश खन्ना सुपरहिट हो गये. इस फिल्म को तीन फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले थे. शर्मिला टैगोर को बेस्ट एक्ट्रेस का और शक्ति दा को बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर मिला. ये फिल्म भारत के साथ-साथ रूस में भी बहुत हिट हुई थी.
कुछ और फिल्में
‘कश्मीर की कली’ फिल्म के गाने तो आज भी सुपर हिट हैं. इस फिल्म के बाद से ही कश्मीर की खूबसूरती फिल्म के जरिए लोगों के सामने आई.
अमिताभ बच्चन के साथ की मूवी ‘द ग्रेट गैम्बलर’ (1979) एक फ्लॉप पिक्चर साबित हुई. ये पिक्चर मुंबई के बाहर तो बिल्कुल ही नहीं चली और शक्ति दा के लिए एक डिजास्टर साबित हुई.
शम्मी कपूर, शर्मिला टैगोर और प्राण को लेकर पेरिस में बनाई गई मूवी ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ भी सुपर हिट रही. इस मूवी में शर्मिला टैगोर ने स्विम शूट पहन कर सीन किए थे, जो उस जमाने में पिक्चरों में नहीं हुआ करते थे. इसके बाद से शक्ति दा को कुछ नया करने वाले डायरेक्टर के रूप में जाना जाने लगा.
शक्ति दा ने कुछ फिल्में प्रॉड्यूस भी की थीं. और अपना शक्ति प्रॉडक्शन बनाया. आराधना के अलावा उन्हें अनुराग और अमानुष फिल्मों के लिए बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर मिला.
डायरेक्टर के रूप में उनकी आखिरी फिल्म गीतांजलि 1993 में आई थी और प्रॉड्यूसर के रूप में डॉन मुथुस्वामी 2008 में आई थी.
आखिरी समय गुमनामी में कटा
शक्ति दा लाइमलाइट से दूर रहने वाले लोगों में से थे. उनकी पत्नी और दो बेटे हमेशा चकाचौंध से दूर रहे. उनके एक पोते आदित्य सामंता ने ‘ये जो मोहब्बत है’ नाम की पिक्चर में काम किया. मजे की बात ये है कि इस पिक्चर का टाइटल भी शक्ति दा की फिल्म ‘कटी पतंग’ के एक गाने से लिया था.
उनके बेटे असीम ने बताया कि फिल्मफेयर उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देने वाला था लेकिन उससे कुछ दिन पहले उन्हें लकवा पड़ गया. इसके बाद वो ठीक नहीं हो पाए. और दिल की धड़कन रुकने से 83 साल की उम्र में 9 अप्रैल, 2009 को शक्ति दा का निधन हो गया. अपने आखिरी समय में शक्ति दा गुमनामी में जिए. कोई भी बड़ी हस्ती उनके अंतिम संस्कार में नहीं आई और शक्ति दा बड़ी बेरुखी से हमसे रुखसत हो गए.
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