मन का रावण (व्यंग्य)हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने ,किंतु वह भी दे ना पाया ।था मैंने तुम्हे रुलाया ,,ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज
नजर लागी राजा (व्यंग्य)"नजर नवाज नजारा ना बदल जाए कहीं जरा सी बात है ,मुँह से ना निकल जाए कहीं "जी हाँ बात जरा सी थी मगर बहुत सुर्खियां बटोर लायी है ।रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल पर नींबू की नजर क्या उतारी ,सोशल मीडिया में एक से एक तमाशे शुरू हो गए।राजनाथ सिंह को लोगो
पानी रे पानी (व्यंग्य)"कोस कोस पर बानी बदले चार कोस पर पानी" बानी यानी बोली -भाषा तो हमारे यहाँ बदल ही जाती है। हिंदुस्तानी आदमी अपनी पूरी जिंदगी बोली सीखने में ही लगा देता है फिर भी उसे ये बात खटकती ही रहती है कि काश मुझे ये जुबान भी आती ।अंग्रेजी का स्थायी दुःख तो है ही ,प्रान्तीय भाषा सीख लेने स
"बोलो मियां नियाजी " (व्यंग्य)"ख्वाबे गफलत में सोये हुए मोमिनों ऐशो इशरत बढ़ाने से क्या फायदा आँख खोलो याद रब को करो उम्र यूँ ही गंवाने का क्या फायदा "अल्लामा इक़बाल का ये शिकवा आजकल जनाब इमरान खान नियाजी साहब पर खूब सूट करता है जो यूनाइटेड नेशन के मंच से दुनिया भर के लोगों का आह्वन कर रहे हैं कि य
"हैप्पी हिन्दी डे " (व्यंग्य )हे कूल डूड ऑफ़ हिंदी ,टुडे इज द बर्थडे ऑफ़ हिंदी ,ईट्स आवर मदर टँग एन प्राइड आलसो ,सो लेटस सेलेब्रेट ।यू आर कॉर्डियाली इनवाटेड।लेट्स मीट एट 8 पीएम ,इंडीड देअर विल भी 8 पीएम,वेन्यू,,ब्लैक डॉग हैंग आउट कैफे, ब्लैक डॉग ,,,योर फेवरेट ब्रो "मोबाईल पर ये खबर मिली ज
नॉट आउट @हंड्रेड (व्यंग्य)"ख्वाबों,बागों ,और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है" यही वो इश्तहार है जो उन लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे थे। ये देखकर वो खासे मुतमइन हुए थे । फिर जब जगह जगह उन लोगो ने ये देखा कि "मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं "तो उनकी दिलफ़रेब मुस्कराहटें कान कान
लोहा टू लोहा (व्यंग्य )आजकल देश में मोटा भाई कहने का चलन बहुत बढ़ गया है।माना जाता है कि बंधुत्व और दोस्ती का ये रिश्ता लोहे की मानिंद सॉलिड है। पहले ये शब्द भैया कहा जाता था ,लेकिन जब से अमर सिंह ने अमिताभ बच्च्न को भैया कहने के बाद हुए अपने हादसे का दर्द बयान किया तब से लोग भैया के बजाय मोटा भाई ही
तब क्यों नहीं ,(व्यंग्य)"ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थीपाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने "ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्
"अब आगे क्या "(व्यंग्य) तड़ाक,तड़ाक,तड़ाक ,ये थप्पड़ नहीं एक आवाज है जो कहीं कहीं सुनायी पड़ रहा है। जैैसे हवा भी होती है पर दिखती नहीं है।पिछले हफ्ते देश में पहले तो तीन तलाक पर ये तड़ाक का साया पड़ा और अब जम्मू कश्मीर में ,370,35-A, और स्पेशल स्टेटस
हम हिन्दीवाले (व्यंग्य )अपने कुनबे में हमने ही ये नई विधा इजाद की है ।एकदम आमिर खान की मानिंद "परफेक्शनिस्ट",नहीं,नहीं भाई कम्युनिस्ट मत समझिये।भई कम्युनिस्ट से जब जनता का वोट और सहयोग कम होता जा रहा है तब हम जैसा जनता के सरोकारों से जुड़ा साहित्यकार कैसे उनसे आसक्ति रख सकता है ।एक उस्ताद शायर फरमा ग
पुस्तक मेले में सब हमारी किताबें लपक रहदिल्ली में हर बार की भाँति पुस्तक मेला लगा, दिल्ली देश का दिल है ,अवार्ड वापसी वाले लेखक बहुत परेशान हैं कि जितनी ख्याति उनको अवार्ड लौटाकर नहीं मिली थी उससे ज्यादा प्रचार-प्रसार तो इस मेले में लेखकों का हो रहा है। एक अनुमान के तौर पर सिक्किम की आबादी के जितनी
"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना
"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना लोग दाल से ही करते हैं और अप्रा
इस दौर में जब देश में बाढ़ का प्रकोप है तो नाक से सांस लेने वाले प्राणियों में नाक एक लक्ष्मण रेखा बन गयी है ,पानी अगर नाक तक ना पहुंचा तो मनुष्य के जीवित रहने की संभावना कुछ दिनों तक बनी रहती है,बाकी फसल और घर बार उजड़ जाने के बाद आदमी कितने दिन जीवित रहेगा ये उतना ही बड़ा सवाल है जितनी कि हमारे देश म
"चमचा भाई"काहो चमचा भाई कैसे कटी रात हरजाईभोरे मुर्गा बोले कूँ कूँह ठंडी की ऋतु आईहाथ पाँव में ठारी मोरे साजन की बीमारीसूरज ओस हवाई घिरि बदरी दाँत पिराई।।आज का चमचा, चमचों की के बात कर, हरदम रहते चुस्तचखें मसाला रस पियें, छौंक लगे तो सुस्त।।बड़े मतलबी यार हैं, हिलते सुबहो शामकंधे पर आसन धरें, चमची सह
व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह
'साहित्य आज तक' फिर लौट आया है. इसके साथ ही नवंबर के मध्य में राजधानी में फिर से सज रहा है साहित्य के सितारों का महाकुंभ. तीन दिनों के इस जलसे में हर दिन साहित्य और कलाप्रेमी देख और सुन सकेंगे शब्द, कला, कविता, संगीत, नाटक, सियासत और संस्कृति से जुड़ी उन हस्तियों को, जिन्ह
व्यंग्य गुमनाम लेखक का आक्रोश नफे सिंह कादयान, हमारे मोहल्ले का फेस-बुकिया गुमनाम लेखक चाँद तूफानी आक्रोशित है, गहरे सदमें में है। वह आजकल गहरी सोच में बड़बड़ाता हुआ हर समय चहल-कदमी सी करता रहता है। घूंसा बना कर उसके हाथ इधर-उधर झटकने का अंदाज ऐसा होता है जैसे किसी को जान से मारना चाहता हो। उसे लगत
व्यंग्य अपनी अपनी सुरंगों में कैद विवेक रंजन श्रीवास्तव थाईलैंड में थाम लुआंग गुफा की सुरंगों में फंसे बच्चे और उनका कोच सकुशल निकाल लिये गये. सारी दुनिया ने राहत की सांस ली .हम एक बार फिर अपनी विरासत पर गर्व कर सकते हैं क्योकि थाइलैंड ने विपदा की इस घड़ी में न केवल भ