shabd-logo

व्यंग्य

hindi articles, stories and books related to vyangya


"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

featured image

इंडिया बहुत बड़ा देश है। इसमें साल के बारह महीने कोई न कोई चुनाव चलता रहता है। और कोई भी सरकार रहे कहीं न कहीं किसी मुद्दे पे या मुद्दा खड़ा करके या बेमतलब धरना ,प्रदर्शन ,हड़ताल चलते रहते हैं। लोग जब हड़ताल होती है तो कभी कभी आर्थिक नुक्सान का आंकलन करते हैं। मुझे जिज्ञासा है किसी ने अध्ययन किया हो

"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

featured image

डॉ दिनेश शर्मा का नया लेख – सब पर भारी भक्ति की दुकानदारी – जी हाँ, भक्ति और धर्म आज बहुतों के लिए एक व्यवसाय बनकर रह गयाहै... एक दुकानदारी... इसी पर व्यंग्य है... एक बार पढ़िएगा ज़रूर...सब पर भारी - भक्ति की दुकानदारी ! दिनेश डॉक्टरएक भजन ‘मेरे घर के आगे साईं राम तेरा मंदिर बन जाए, मैं खिडकी खोलू तो

"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

मंटूबड़ा खुश था । प्राइमरी में टीचर लगे उसेअभी साल भर भी नहीं हुआ था कि सरकार द्वारा प्रायोजित डी-एड पाठ्यक्रम के लिए उसकानामांकन हो गया । प्राइमरी स्तर के बालकों कोपढ़ाने के लिए डी-एडकी पढाई काफी महत्वपूर्ण है । समय परसमस्त शिक्षक सेंटर पहुँच गए । पाठ्यक्रमप

"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

featured image

चुनावी मौसम के वादों और उपहारों पर डॉ दिनेशशर्मा का एक व्यंग्य... देश की भैंस और तालाब - दिनेश डॉक्टरजैसे जैसे बाकी मुल्क की तरह देश की राजधानीदिल्ली में भी इलेक्शन पास आते जा रहे हैं , वैसे वैसे एक के बाद एक मुफ्तखोरों के लिए पिटारे खुलते जा रहे हैं ।बिजली फ्री, पानी फ्री, महिलाओं के लिएबस यात्रा फ

featured image

संस्कारों का दिखावा करने वालों पर डॉ दिनेशशर्मा का खरा व्यंग्य... निर्वाण टॉयलेटसीट पर – दिनेश डॉक्टरमन चंगा तोकठौती में गंगाकई बरस पहले की बात है मैं दिल्ली से लंदन कीफ्लाइट पर था । मैं जाकर बैठा ही था कि साथ वाली सीट पर सुप्रसिद्ध और जाने माने गायक श्री अनूप जलोटाजी आकर बैठ गए । इनके गाये भजन सुब

ना कोई फ़ीस लगती है ना कोईसिफारिश लगती है.चाटुकारिता की शिक्षा बिल्कुल मुफ़्त में मिलती है.शिल्पा रोंघे

"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

featured image

मुझे पता है तुमने मुझे देख लिया था पर फोन कीस्क्रीन पर आंख जमाये शो ऐसे किया जैसे मै कमरे में हूँ ही नही । फिर खिड़की की तरफदेखते हुए फोन कान पर लगा कर तुमने बात करनी शुरू कर दी ऐसा दिखा कर जैसे कोई बहुतज़रूरी काल है । दरअसल दूसरी तरफ लाइन पर कोई था ही नही बावजूद इसके कि तुमने हैलोहैलो बोलकर बातचीत ऐस

featured image

वर्तमान में राजनीतिक उठा पटक पर डॉ दिनेश शर्माका खरा व्यंग्य...भेडें और भेड़िये *डॉ दिनेश शर्माफाइव स्टार होटल की लाबी में भेड़ों के बड़े झुंडमें , दो भेडें जो एक दूसरे को अच्छी तरह पहचानती थी,अचानक आमने सामने पड़ गयी ।पहली भेड़ ; तुम यहां क्या कर रही हो ?दूसरी भेड़ ; जो तुम कर रही हो । पहली भेड़ ; मुझे तो

अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

"हैप्पी बर्थ डे ",,(व्यंग्य)"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला "ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये।अब अल

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए