व्यंग्य
गुरु और चेला
विजय कुमार तिवारी
बाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका होता।बस,बरगद की जड़ में उन्होंने राम-लक्षमण-सीता की मूर्तियाँ स्थापित कर ली है।गाँव-जवार के लोग अपना चढ़ावा वहीं चढ़ा जाते हैं।
"मन्दिर रहने न रहने से अंतर नहीं पड़ता,"बाबा अक्सर कहा करते हैं,"बस,प्रभु की कृपा होनी चाहिए।"
और उनपर भगवान की कृपा है।गाँव के लोग भरपूर सेवा करते हैं।खाने-पीने की कोई कमी नही है।कोई-कोई तो कहता है कि बाबा के पास अच्छी-खासी रकम है।
बाबा को ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत है।हरिया की स्थिति कुछ और है।उसे साँझ में जल्दी नींद नहीं आती और जब सो जाता है तो भोर में जल्दी उठने का नाम ही नहीं लेता।
"हरिया,"बाबा ने हांक लगायी।
जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो,चुपचाप पड़ा रहा।
"हरिया,"बाबा ने कड़कदार आवाज में पुकारा।
हरिया ने कुनमुनाकर करवट बदली और सोया रहा।
"ऐसे नहीं उठेगा तू,"बाबा ने कहा और उधर ही बढ़ चले जहाँ वह सोया था।
चट से वह खड़ा हो गया और अपनी आँखें मलते हुए उसने जम्हाई ली।
"खड़ा-खड़ा देखता क्या है,चल जल्दी भगवान को स्नान करा।जा,फूल तोड़ ला। पहले मेरे नहाने के लिए पानी भर।हाँ सुन,रमई सिंह के यहाँ जाकर प्रसाद ले आ।"
"पहले रुको बाबा,"हरिया ने लोटा उठाया और मैदान की ओर मुँह किया।रात गुरु-चेला जीतन पाड़े के यहाँ डटकर खाये थे सो पेट में हड़हड़-गड़गड़ मची थी।
"नित्य कहता हूँ-इतना मत खाया कर। रोज घी का मालपुआ और नाना-प्रकार के गरिष्ठ व्यंजन भला पचेंगें।"
"आप तो पचा लेते हो गुरुजी,तभी तो तीन दिनों से रोज धोती खराब हो रही है। साफ तो मुझे करना पड़ता है ना.।"
"अरे तू जबान लड़ाता है-------।"
"ना-ना,"हरिया ने एक हाथ से कान पकड़ा और तेजी से बढ़ गया। विधवा गंगिया आती दिखाई दी।हरिया ने राहत की सांस ली कि अब बाबा का स्नान-ध्यान हो जायेगा। गंगिया बाबा की बड़ी सेवा करती है।
जब लौटकर हरिया आया तो देखा कि बाबा गुरुचरन दास चौकी पर अलस्त पड़े हुए हैं।समीप जाने पर मालूम हुआ कि बाबा की दो-दो धोतियाँ खराब हो चुकी हैं और उनका दम फूल रहा है। उसने धोतियों को साफ किया और सुखने को डाल दिया।
"भभूत ले आऊँ बाबा?" हरिया ने पूछा।
बाबा ने आँखें तरेरी और बोले,"भला भभूत से यह पेट झरना क्या बंद होगा? तुझे जरा भी अक्ल नहीं आयी।"
"यहाँ आनेवाले हजारों लोगों की एक ही दवा है-यह भभूत। तो फिर आप क्यों नहीं ठीक होंगे?"
"चुप रह,"बाबा ने डांटा और बोले,"जा,भगीरथ डाक्टर को बुला ला।
"राम-राम बाबा,यह मैं क्या सुन रहा हूँ?अब आप जैसे शुद्ध,सात्विक प्रवृति वाले धर्माधिकारी की दवा कोई डाक्टर करेगा। आपने सैकड़ो बार गाँव वालों को सलाह दी है कि सभी उससे दूर रहें।"
"जा----"बाबा चिल्ला पड़े।
हरिया चला गया।
बाबा ने गंगिया को समझाया,"सभी भगवान की सन्तान हैं,चाहे वह कोई भी हो।"
गंगिया ने यह बात हरिया को बता दी।
हरिया भड़क उठा। तू नहीं जानती गंगिया चाची,ये लोग समाज के जोंक हैं। धर्म की आड़ में महापाप होता है और ऐसे ही लोग उसके ठेकेदार हैं। सभी धर्मो में ऐसे लोग भरे पड़े हैं। आज धर्म और जाति के नाम पर बाँटकर उन्हें आपस में भी यही लोग लड़वाते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं। तू भी सावधान रहा कर चाची।
गंगिया सावधान हो गयी।
"का रे हरिया,"एक दिन बाबा ने पूछा,"आजकल गंगिया नहीं आती।"
"पता नहीं बाबा-------"
"तूझे सब पता है।तूने ही उसे सावधान कर दिया है। "
"रतनी को किसने सावधान किया है बाबा-------?"
"मैंने---तेरा ध्यान भगवान की ओर कम होने लगा था। तू मेरी सेवा में भी कोताही करने लगा था। "
बाबा,एक रात मैने सपना देखा-साक्षात् भगवान खड़े थे,"हरिया,तू गंगिया को यहाँ आने से रोक दे।"
मैंने वह सपना उसे सुना दिया।
"तू अधम है,नीच है। "
और तू बहुत पुण्यात्मा हो बाबा। सपने में भगवान ने कहा था,"हरिया,गुरुचरन दास बहुत अधर्मी आदमी है।पहले चोरी करता था। गाँव के सब लोग पीछे पड़े तो भाग निकला और यहाँ आकर साधु बन गया। "
"यह सब तुमने कैसे जाना----?" बाबा कराह उठे।
"अब आँखें खुल चुकी हैं बाबा। लो यह अपना कंठी,कमण्डल। मैं चला। प्रणाम।"
हरिया------हरिया-------हरिया।