इंडिया बहुत बड़ा देश है। इसमें साल के बारह महीने कोई न कोई चुनाव चलता रहता है। और कोई भी सरकार रहे कहीं न कहीं किसी मुद्दे पे या मुद्दा खड़ा करके या बेमतलब धरना ,प्रदर्शन ,हड़ताल चलते रहते हैं। लोग जब हड़ताल होती है तो कभी कभी आर्थिक नुक्सान का आंकलन करते हैं। मुझे जिज्ञासा है किसी ने अध्ययन किया हो कि उपरोक्त लोकतांत्रिक गतिविधियों का कभीअर्थ व्यवस्था पर क्या कोई अनुकूल प्रभाव भी पड़ता है?
अगर इसका आंकलन नफा नुकसान के आधार पर किया जाय शायद ज्ञात हो कभी किसी गतिविधि से नुकसान कम और फायदा अधिक होता हो।
निम्न लिखित उद्योग धधों पर तो प्रभाव की कल्पना की ही जा सकती है।
१ किसी भी जुलूस में सबसे पहले नजर जाती है झडों, तख्तियों पर।
इनमें उपयोग में आने वाली वस्तुएं हैं। बांस,कागज, कपड़ा।
२ बड़ी संख्या में लोग।
संबंधित व्यवसाय-
जनापूर्ती, लेबर सप्लाई।
३ नवीन व्यसाय जो संभावनाओं से भरा है।
नकाब पोशी का फ्रीलांस व्यवसाय।
नकाबपोशों की आपूर्ति का व्यवसाय।
४- सादा और ब्रांडेड, एक बार और अनेक बार प्रयोग में लाए जा सकने वाले नकाब बनाने, बेचने, सप्लाई करने का व्यवसाय।
मैं सोच रहा हूं कि एक हिन्दी फिल्म का नाम रजिस्टर करा दूं। "वो नक़ाब पोश कौन थे?" मेरी अगली कहानी/ किताब के लिए तो यह शीर्षक हो ही सकता है।