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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018

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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य पर गणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇 “ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे ! निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।” उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है। यहाँ देव गणेश वर्णित हैं। यद्यपि आर्य समाजीयों ने वेदों की व्याख्या योगमूलक अर्थ में की परन्तु पुरातत्व एवम् पौराणिक परम्पराओं के अनुयायी रूढ अर्थ में करते हैं । परन्तु हम्हें व्याख्या की दौनों पद्धति से अनुमोदित योग-रूढ़ पद्धति का प्रयोग कर  वेद मीमांसा करनी चाहिए प्रथम मंडल के 16 से 25 सूक्तों का समावेश किया हैं। इन सूक्तो  की अनेक ऋचाओं में में विष्णु का भी स्तुति मिली। जो कि सुमेरियन देवता संख्या 82 वीं इंडो-सुमेरियन मुद्रा(सील )में प्राचीन सुमेरियन और हिट्टो -फॉनिशियन पवित्र मुद्राओं पर उत्कीर्ण है जो ( और प्राचीन ब्रिटान स्मारकों पर हस्ताक्षर किए गए हैं । जिनमें से मौहर संख्या (1) में से परिणाम घोषित किए गया हैं । कि अब इन इंडो-सुमेरियन सीलों  के प्रमाण के आधार पर पुष्टि की गई है कि इस सुमेरियन "मछली देव" पर सूर्य-देवता का आरोपण है । और अन्य ताबीज मुद्राओं के लिए शीर्षक, "स्थापित सूर्य (सु-ख़ाह) की मछली" के रूप में इंडो-आर्यों की सुमेरियन मूल की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साम्य है । और सुमेरियन भाषा के आर्यन चरित्र के रूप में, यह सूर्य-देवता "विष्णु" के लिए वैदिक नाम की उत्पत्ति और अब तक अज्ञात मछली अर्थ के रूप में प्रकट करता है और मछली-आदमी के रूप में उनकी प्रतिनिधि की समान साथ ही अंग्रेजी शब्द "फिश" के सुमेरियन मूल, गॉथिक "फिसक" और लैटिन "पिसिस।" भारतीय पौराणिक कथाओं में सूर्य-देव विष्णु का पहला "अवतार" मत्स्य नर के रूप में दर्शाया गया है। , और अत्यधिक सीमा तक उसी तरह के रूप में सुमेरियन मछली-व्यक्ति के रूप में सूर्य का देवता के रूप में चित्रण सुमेरियन मुद्राओं पर अब मेसोपोटामिया के सुमेरियन मुद्राओं पर उत्कीर्ण है। और सूर्य के लिए "मछली" के इस सुमेरियन शीर्षक को द्विभाषी सुमेरो-अक्कादियन शब्दावलियों में वास्तविक शब्द और अर्थ इस प्रकार के अन्य इंडो-सुमेरियन ताबीज पर व्याख्यायित है। "मत्स्य मानव "पंखधारी मछली मानव " आदि अर्थों के रूप पढ़ते हैं। इस प्रकार पंखों या बढ़ते सूर्य को "पृथ्वी के नीचे के पानी में" लौटने या पुनर्जीवित करने वाले सूरज के मछली के संलयन के साथ सह-संबंधित कथाओं का सृजन सुमेरियन संस्कृति में हो गया था ।। "द विंगेड फिश" के इस सौर शीर्षक को ,(biis )बिस को  फिश" का समानार्थ दिया गया है। सूर्य और विष्णु भारतीय मिथकों में समानार्थक अथवा पर्याय वाची रहे हैं। ("विष्-नु )" में प्रत्यय शब्द नूह स्पष्ट रूप से सूर्य-देवता के जलीय रूप और उनके पिता-देवता  (इ-न-दु-रु ) (इन्द्र) के "देवता  के रूप में सुमेरियन आदिम सत्ता का शीर्षक है। यह इस प्रकार विष्णु के सामान्य भारतीय प्रतिनिधित्व को जल के बीच दीप के नाम पर पुन: और यह भी लगता है कि "दीप के देवता" के लिए प्राचीन मिस्र के नाम आत्म के सुमेरियन मूल का खुलासा किया गया है। __________________________________________ इस प्रकार "विष्णु" नाम सुमेरियन पिस्क-नु के बराबर माना जाता है। और " जल की बड़ी फिश ( मत्स्य) को रीलिंग करना; और यह निश्चित रूप से सुमेरियन में उस पूर्ण रूप में पाए जाने पर खोजा जाएगा। और ऐसा प्रतीत होता है कि "अवतार" के लिए विष्णु के इस बड़ी "मछली" का उपदेश भारतीय ब्राह्मणों ने अपने बाद के "अवतारों" में भी सूर्य-देवता को स्वर्ग में सूर्य-देवता के रूप में लागू किया है। । वास्तव में "महान मछली" के लिए सुमेरियन मूल पीश या पीस अभी भी संस्कृत में एफ्स-ऐरा "मछली" के रूप में जीवित है। जो वैदिक विसार से साम्य "यह नाम इस प्रकार कई उदाहरणों में से एक है जिसे मैं  दीप, पीश, पीश या पीस (वाश-नु) के जल के सुमेरियन सूर्य-देवता का यह़ तादात्म्य मयी रूप है । MISHARU - The Sumerian god of law and justice, brother of Kittu. भारतीय पुराणों में मधु और कैटव मत्स्यः से लिए वैदिक सन्दर्भों में एक शब्द पिसर भारोपीयमूल की धातु से प्रोटो-जर्मनिक  फिस्कज़ (पुरानी सैक्सोन, पुरानी फ्रिसिज़, पुरानी उच्च जर्मन फ़िश, पुरानी नोर्स फिस्कर, मध्य डच विस्सी, डच, जर्मनी, फ़िश्च, गॉथिक फिसक का स्रोत) से पुरानी अंग्रेजी मछलियाँ "मछली" pisk- "एक मछली। स् सादृश्य दर्शनीय है pisk- Proto-Indo-European root meaning "a fish." It forms all or part of: fish; fishnet; grampus; piscatory; Pisces; piscine; porpoise. _________________________________________ It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Latin piscis (source of Italian pesce, French poisson, Spanish pez, Welsh pysgodyn, Breton pesk); Old Irish iasc; Old English fisc, Old Norse fiskr, Gothic fisks. Latin piscis, Irish íasc/iasc, Gothic fisks, Old Norse fiskr, English fisc/fish, German fisc/Fisch, Russian пескарь (peskarʹ), Polish piskorz, Welsh pysgodyn, Sankrit visar Albanian peshk __________________________________________ This important reference is researched by Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'. Thus, no gentleman should not add to its break ! Pisk-पिष्क  आद्य-यूरोपीय मूल रूप जिसका अर्थ है "एक मछली।" पिष्क शब्द व्यापक अर्थों में रूढ़ है । लैटिन पिसीस (इतालवी पेस, फ्रेंच पॉिसन का स्रोत, स्पैनिश पेज़, वेल्श पेस्डोगोन, ब्रेटन पेस्क); पुरानी आयरिश आईसकैस; पुरानी अंग्रेज़ी फिस, पुरानी नोर्स फाइस्कर, गॉथिक फिस्क। विष्णु वैष्णव परमेश्वर वैदिक समय से ही विष्णु शब्द प्रचलन में रहा है । शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि से भी विष्णु की समानताऐं सुमेरियन देवता (पिस्क-नु ) से स्पष्ट हैं । जिसे कालान्ततरण में देवनागरी अथवा डेगन के रूप में कनानी तथा हिब्रू संस्कृतियों में समायोजित किया गया है । संस्कृत भाषा में 'विष्णु' शब्द की व्युत्पत्ति मुख्यतः 'विष्' धातु से ही मानी गयी है।  जो केवल  आर्य समाजीयों की  है । महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ-प्रकाश के प्रथम समुल्लास में है । यह व्युपत्ति केवल आध्यात्मिकता परक है । ('विष्' या 'विश्' धातु लैटिन में - vicus और सालविक में vas -ves का सजातीय हो सकता है) निरुक्त (12.18) में यास्काचार्य ने मुख्य रूप से 'विष्' धातु को ही 'व्याप्ति' के अर्थ में लेते हुए उससे 'विष्णु' शब्द को निष्पन्न बताया है। वैकल्पिक रूप से 'विश्' धातु को भी 'प्रवेश' के अर्थ में लिया गया है, 'क्योंकि वह विभु होने से सर्वत्र प्रवेश किया हुआ होता है। आदि शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में 'विष्णु' शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक (व्यापनशील) ही माना है तथा उसकी व्युत्पत्ति के रूप में स्पष्टतः लिखा है कि "व्याप्ति अर्थ के वाचक नुक् प्रत्ययान्त 'विष्' धातु का रूप 'विष्णु' बनता है"। 'विश्' धातु को उन्होंने भी विकल्प से ही लिया है और लिखा है कि "अथवा नुक् प्रत्ययान्त 'विश्' धातु का रूप विष्णु है; जैसा कि विष्णुपुराण में कहा है-- 'उस महात्मा की शक्ति इस सम्पूर्ण विश्व में प्रवेश किये हुए हैं; इसलिए वह विष्णु कहलाता है, क्योंकि 'विश्' धातु का अर्थ प्रवेश करना है"। ऋग्वेद के प्रमुख भाष्यकारों ने भी प्रायः एक स्वर से 'विष्णु' शब्द का अर्थ व्यापक (व्यापनशील) ही किया है। विष्णुसूक्त (ऋग्वेद-1.154.1 एवं 3) की व्याख्या में आचार्य सायण 'विष्णु' का अर्थ व्यापनशील (देव) तथा सर्वव्यापक करते हैं; तो श्रीपाद दामोदर सातवलेकर भी इसका अर्थ व्यापकता से सम्बद्ध ही लेते हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी 'विष्णु' का अर्थ अनेकत्र सर्वव्यापी परमात्मा किया है और कई जगह परम विद्वान् के अर्थ में भी लिया है। इस प्रकार सुस्पष्ट परिलक्षित होता है कि 'विष्णु' शब्द 'विष्' धातु से निष्पन्न है और उसका अर्थ व्यापनयुक्त (सर्वव्यापक) है। परन्तु ये विद्वान् विष्णु की सर्व व्यापी ईश्वर को रूप में  व्याख्याऐं करने लगे । ऋग्वेद में विष्णु-- वैदिक देव-परम्परा में सूक्तों की सांख्यिक दृष्टि से विष्णु का स्थान गौण है क्योंकि उनका स्तवन मात्र 5 सूक्तों में किया गया है; लेकिन यदि सांख्यिक दृष्टि से न देखकर उनपर और पहलुओं से विचार किया जाय तो उनका महत्त्व बहुत बढ़कर सामने आता है। ऋग्वेद में उन्हें 'बृहच्छरीर' (विशाल शरीर वाला), युवाकुमार आदि विशेषणों से ख्यापित किया गया है। ऋग्वेद में उल्लिखित विष्णु के स्वरूप एवं वैशिष्ट्यों का अवलोकन निम्नांकि बिन्दुओं में किया जा सकता है :- लोकत्रय के शास्ता : तीन पाद-प्रक्षेप-: विष्णु की अनुपम विशेषता उनके तीन पाद-प्रक्षेप हैं, जिनका ऋग्वेद में बारह बार उल्लेख मिलता है। सम्भवतः यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। उनके तीन पद-क्रम मधु से परिपूर्ण कहे गये हैं, जो कभी भी क्षीण नहीं होते। उनके तीन पद-क्रम इतने विस्तृत हैं कि उनमें सम्पूर्ण लोक विद्यमान रहते हैं। (अथवा तदाश्रित रहते हैं)। ‘त्रेधा विचक्रमाणः’ भी प्रकारान्तर से उनके तीन पाद-प्रक्षेपों को ध्वनित करता है। सम्भवत वह जल में मत्स्य रूप में रहकर फिर थल पर से होकर अाकाश में सूर्य रूप में दृष्टि गोचर होते हैं। ‘उरुगाय’ और ‘उरुक्रम’ आदि पद भी उक्त तथ्य के परिचायक हैं। संस्कृत भाषा में विसार: शब्द मूल भारोपीय तथा सुमेरियन  पिस्क-नु मूलक है । वेदों की ऋचाओं में विसार शब्द मछली का वाचक है । विसरति सर्पति (वि सृ अण् ) विसरण मत्स्ये अमरःकोश _____________________________________ (विशेषेण सरति गच्छति इति विसार।  सृ गतौ “ व्याधि मत्स्य बलेष्विति वक्तव्यम् । ३ । ३ । १७ । इत्यस्य वार्त्तिकोक्त्या घञ् ) मत्स्यः ।  इत्यमरःकोश ॥ (भावे घञ् ।  निर्गमः ।   यथा ऋग्वेदे (। १।७९। १। ) “ हिरण्यकेशो रजसो विसारे ऽर्हिर्धुनिर्वात इव ध्रजीमान् ॥ रजस उदकस्य विसारे विसरणे मेघार्न्निर्गमने । “ इति तद्भाष्ये सायणः )☸☸☸☸☸ क्योंकि इसमें संस्कृत में भी स्पष्ट शब्दों में विष्णु की स्तुति हैं। “अतो देवा अवन्तु नो यतो विष्णुर्विचक्रमे। पृथिव्याः सप्त धामभिः।।” “जहाँ से (यज्ञ स्थल या पृथ्वी से) विष्णुदेव ने (पोषण परक) पराक्रम दिखाया, वहाँ (उस यज्ञीय क्रम से) पृथ्वी से सप्तधामो से देवतागण हमारी रक्षा करें।” “इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूळ्हमस्य पांगूँसुरे स्वाहा।।” “यह सब विष्णुदेव का पराक्रम है,तीन प्रकार के (त्रिविध-त्रियामी) उनके चरण है। इसका मर्म धूलि भरे प्रदेश मे निहित है।” “त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन्।। “विश्वरक्षक, अविनाशी, विष्णुदेव तीनो लोको मे यज्ञादि कर्मो को पोषित करते हुये तीन चरणो से जग मे व्याप्त है अर्थात तीन शक्ति धाराओ (सृजन, पोषण और परिवर्तन) द्वाराविश्व का संचालन करते है।” “विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा।।” “हे याजको! सर्वव्यापक भगवान विष्णु के सृष्टि संचालन संबंधी कार्यो(सृजन, पोषण और परिवर्तन) ध्यान से देखो। इसमे अनेकोनेक व्रतो(नियमो,अनुशासनो) का दर्शनकिया जा सकता है। इन्द्र(आत्मा) के योग्य मित्र उस परम सत्ता के अनुकूल बनकर रहे।(ईश्वरीय अनुशासनो का पालन करें)।” “तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः। दिवीव चक्षुराततम्।।” “जिस प्रकार सामान्य नेत्रो से आकाश मे स्थित सूर्यदेव को सहजता से देखा जाता है, उसी प्रकार विद्वज्जन अपने ज्ञान चक्षुओ से विष्णुदेव(देवत्व के परमपद) के श्रेष्ठ स्थान को देखते हैं।” “तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते। विष्णोर्यत्परमं पदम्।। “जागरूक विद्वान स्तोतागण विष्णूदेव के उस परमपद को प्रकाशित करते हैं,अर्थात जन सामान्य के लिये प्रकट करते है।” प्रथम मंडल के सूक्त 24 के इस मन्त्र को देखे। “शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः। अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विद्वाँ अदब्धो विमुमोक्तु पाशान्।” “तीन स्तम्भो मे बधेँ हुये शुनःशेप ने अदिति पुत्र वरुणदेव का आवाहन करके उनसे निवेदन किया कि वे ज्ञानी और अटल वरुण -देव हमारे पाशो को काटकर हमे मुक्त करें।” यहाँ पर तो स्पष्ट शब्दों में वरुण देव को अदिति पुत्र कहा गया हैं। प्रथम मंडल के 25 वें सूक्त में तो साफ साफ वरुण देव के हृष्ट पुष्ट शरीर का वर्णन हैं और वो भी कवच धारण करने वाले। “बिभ्रद्द्रापिं हिरण्ययं वरुणो वस्त निर्णिजम्। परि स्पशो नि षेदिरे।। “सुवर्णमय कवच धारण करके वरुणदेव अपने हृष्ट-पुष्ट शरीर को सुसज्जित करते है। शुभ्र प्रकाश किरणें उनके चारो ओर विस्तीर्ण होती है। इसी प्रकार गणेश भी अन्य संस्कृतियों में विद्यमान है जैसे रोमन संस्कृति में जेनस को रूप में ! सुमेरियन संस्कृतियों में अशेरा के रूप में कृषि की अधिष्ठात्री देवी श्री को एकरूपायित किया जा सकता है । जो ईष्टर अथवा एष्ट्रो के रूप में यूरोपीय संस्कृतियों में विद्यमान है । वास्तव में यह रूप उषा से सम्बद्ध है और जिसके कालान्ततरण में अन्य रूप जैसे संस्कृत भाषा में स्त्री, त्रयी , श्री तथा उषा तो रोमन संस्कृति में कैरेस अथवा सैरेस रूप उद्भासित हुआ है प्राचीन रोमन धर्म में , सेरेस ( s ɪər iː z ) लैटिन रूप : Cerēs [Kɛreːs] कृषि , अनाज फसलों , प्रजनन -क्षमता और मातृ संबंधों की अधिष्ठात्री देवी थी। वह मूल रूप से रोम के तथाकथित पेलबीयन या एवेन्टिन ट्रायड में केंद्रीय देवी थी , फिर रोमियों को "सेरेस् के यूनानी संस्कार" के रूप में वर्णित रोमनों में उनकी बेटी प्रोस्परिना के साथ जोड़ा गया था। सेरेलिया के उनके सात दिवसीय अप्रैल त्यौहार में लोकप्रिय लुडी सीरियल (सेरेस गेम) शामिल थे। उन्हें अंबरवलिया त्यौहार में खेतों के मई लस्ट्रेटियो में , फसल के समय, और रोमन विवाह और अन्तिम संस्कार के दौरान सम्मानित किया गया था। ग्रीस पौराणिक कथाओं के बारह ओलंपियन के बराबर रोम के दीई कंसेंट्स , रोम के बीच रोम के कई कृषि देवताओं में से एक है सेरेस्। रोमनों ने उन्हें यूनानी देवी डेमेटर के समकक्ष के रूप में देखा । जिनकी पौराणिक कथाओं को रोमन कला और साहित्य में सेरेस के लिए दोहराया गया था। सेरेस का नाम पुनर्निर्मित प्रोटो-इंडो-यूरोपीय धातु ḱerhs- से प्रस्तावित है । , " सती करने के लिए, फ़ीड करने के लिए", जो लैटिन क्र्रेसर "बढ़ने" के लिए भी जड़ है और इसके माध्यम से, अंग्रेजी शब्द बनाते हैं और वृद्ध- रोमन व्युत्पत्तिविदों ने सोचा था कि लैटिन क्रिया गेरेरे , "सहन करने, आगे लाने, उत्पादन" करने के लिए, क्योंकि देवी को पशुधन , कृषि और मानव प्रजनन से जोड़ा गया था। रीयल काल में रोम के पड़ोसियों के बीच आर्कैकिक संप्रदायों को प्राचीन लैटिन , ऑस्केन्स और सबेलियन समेत, निश्चित रूप से एट्रस्कैन और उम्ब्रियनों में कम से कम प्रमाणित किया गया है । सी का एक पुरातन फालिस्कन शिलालेख। 600 ईसा पूर्व उसे दूर ( वर्तनी गेहूं) प्रदान करने के लिए कहता है, जो भूमध्यसागरीय दुनिया का आहार प्रमुख था। रोमन युग के दौरान, सेरेस का नाम अनाज का समानार्थी था, और विस्तार से, रोटी के साथ। Cults और पंथ विषयों संपादित करें कृषि प्रजनन क्षमता संपादित करें सेरेस को वर्तनी गेहूं (लैटिन दूर ) की खोज, बैल का झुकाव और खेती, बुवाई, संरक्षण और युवा बीज के पौष्टिक, और मानव जाति के लिए कृषि का उपहार दिया गया था; इससे पहले, यह कहा गया था, मनुष्य acorns पर subsisted था, और निपटान या कानून के बिना भटक गए। उसके पास पौधे और पशु बीज को उर्वरक, गुणा और उतारने की शक्ति थी, और उसके कानूनों और संस्कारों ने कृषि चक्र की सभी गतिविधियों को संरक्षित किया था। जनवरी में, सेरेज़ को चलने वाले फेरिया सिमेंटिव में पृथ्वी-देवी टेलस के साथ वर्तनी गेहूं और गर्भवती बोने की पेशकश की गई थी। यह लगभग निश्चित रूप से अनाज की वार्षिक बुवाई से पहले आयोजित किया गया था। बलिदान का दिव्य भाग एक मिट्टी के बर्तन ( ओला ) में प्रस्तुत entrails ( एक्स्टा ) था। [7] ग्रामीण संदर्भ में, काटो द एल्डर एक पोर्का प्राइडेडेना (एक सूअर, बुवाई से पहले पेश की गई) के सेरेस को प्रस्ताव का वर्णन करता है। [8] फसल से पहले, उसे एक प्रस्ताव अनाज नमूना ( प्राइमेटियम ) की पेशकश की गई थी। [9] ओविड बताता है कि सेरेस "थोड़ी सी सामग्री है, बशर्ते कि उसके प्रसाद जाति हैं " (शुद्ध)। [10] सेरेस का मुख्य त्यौहार, सेरेलिया , मध्य से अप्रैल के अंत तक आयोजित किया गया था। यह उनके plebeian एडील्स द्वारा आयोजित किया गया था और सर्कस खेल ( लुडी सर्केंस ) शामिल थे। यह सर्कस मैक्सिमस में घोड़े की दौड़ के साथ खोला गया, जिसका प्रारंभिक बिंदु उसके एवेन्टिन मंदिर के नीचे और उसके विपरीत था; [11] सर्कस के बहुत दूर की ओर मुड़ने वाली पोस्ट अनाज भंडारण के देवता कंसस के लिए पवित्र थी। दौड़ के बाद, सर्कस में लोमड़ी जारी की गईं, उनकी पूंछ रोशनी वाले मशालों से उभरती हैं, शायद बढ़ती फसलों को साफ करने और उन्हें बीमारी और मुर्गी से बचाने, या उनके विकास में गर्मी और जीवन शक्ति जोड़ने के लिए। [12] सी .175 ईसा पूर्व से, सेरेरिया में 12 से 18 अप्रैल तक लुडी स्केनेसी (नाटकीय धार्मिक घटनाएं) शामिल थीं। [13] सहायक देवताओं संपादित करें प्राचीन सिक्रम अनाज में एक पुजारी, शायद फ्लैमेन सेरियलिस ने फेरिए सेमेन्टिव के कुछ समय पहले ही अनाज चक्र के प्रत्येक चरण में दिव्य सहायता और संरक्षण को सुरक्षित करने के लिए बारह विशेष, नाबालिग सहायक-देवताओं के साथ सेरेस (और शायद टेलस) का आह्वान किया था। [14] डब्ल्यूएच रोशर इन देवताओं को इंडिजिटामेंटा के बीच सूचीबद्ध करता है, विशिष्ट दैवीय कार्यों का आह्वान करने के लिए उपयोग किए जाने वाले नाम। [15] Vervactor , "वह जो हल करता है" [16] रिपेटर , "वह जो धरती तैयार करता है" आयातक , "वह जो एक व्यापक धुंध के साथ हल करता है" [16] Insitor , "वह जो पौधे बीज" Obarator , "वह जो पहले plowing का पता लगाता है" ओकेटर , "वह जो परेशान करता है " सेरिटर , "वह जो खोदता है" Subruncinator , "वह जो खरबूजे " मेसोर , "वह जो reaps" कन्वेयर ( कन्वेक्टर ), "वह जो अनाज लेता है" कंडीशनर , "वह जो अनाज भंडार करता है" प्रमोटर , "वह जो अनाज वितरित करता है" विवाह, मानव प्रजनन और पोषण संपादित करें रोमन दुल्हन की प्रक्रियाओं में, एक जवान लड़के ने सेरेस के मशाल को रास्ते में प्रकाश डाला; "शादी के मशालों के लिए सबसे शुभ लकड़ी स्पाइना अल्बा , मई पेड़ से आया, जो कई फलों को जन्म देती थी और इसलिए उर्वरता का प्रतीक था"। [17] शादी की पार्टी के वयस्क पुरुष दूल्हे के घर में इंतजार कर रहे थे। दुल्हन की तरफ से टेलस को शादी का त्याग दिया गया था; एक बो सबसे संभावित शिकार है । वर्रो एक सुअर के बलिदान को "शादियों का एक योग्य चिह्न" के रूप में वर्णित करता है क्योंकि "हमारी महिलाएं, और विशेष रूप से नर्स" मादा जननांग पोर्कस (सुअर) को बुलाती हैं । स्पाएथ (1 99 6) का मानना ​​है कि सेरेस को बलिदान समर्पण में शामिल किया गया हो सकता है, क्योंकि उसे टेलस के साथ बारीकी से पहचाना जाता है और, सेरेस लेरिफेरा (कानून-धारक) के रूप में, वह शादी के "कानूनों को मानती है"। शादी के सबसे गंभीर रूप में, confarreatio , दुल्हन और दुल्हन दूर से बना एक केक साझा किया, प्राचीन गेहूं प्रकार विशेष रूप से सेरेस के साथ जुड़े हुए हैं। [18] [1 9] एक अज्ञात महिला की फनरी मूर्ति, जिसे गेहूं रखने वाले सेरेस के रूप में चित्रित किया गया है। मध्य तीसरी शताब्दी ईस्वी। ( लौवर ) कम से कम मध्य-गणतंत्र युग से, एक अधिकारी, सेरेस और प्रोसरपीना के संयुक्त पंथ ने मादा पुण्य के रोमन आदर्शों के साथ सेरेस के संबंध को मजबूत किया। इस पंथ का प्रचार एक plebeian कुलीनता, plebeian आम लोगों के बीच जन्मजात जन्म, और पेट्रीशियन परिवारों के बीच जन्मजात में गिरावट के साथ मेल खाता है। देर से रिपब्लिकन सेरेस मेटर (मदर सेरेस) को जेनेट्रिक्स ( प्रोजेनिट्रेस ) और अल्मा (पौष्टिक) के रूप में वर्णित किया गया है; प्रारंभिक शाही युग में वह एक शाही देवता बन जाती है, और ओप्स ऑगस्टा के साथ संयुक्त पंथ प्राप्त करती है, इंपीरियल गाइड में सेरेस की अपनी मां और अपने दाहिनी ओर एक विशाल आनुवंशिकी है। [20] सेरेस के कई प्राचीन इटालिक अग्रदूत मानव प्रजनन और मातृत्व से जुड़े हुए हैं; पेलिग्नान देवी एंजिटिया सेरेलाइस की पहचान रोमन देवी एंजरोना (प्रसव के साथ जुड़ी हुई) के साथ की गई है। [21] कानून संपादित करें सेरेस संरक्षक और दास कानून , अधिकार और ट्रिब्यून के संरक्षक थे। उनके एवेन्टिन मंदिर ने पंखों को पंथ केंद्र, कानूनी संग्रह, खजाना और संभवतः कानून-अदालत के रूप में सेवा दी; इसकी नींव लेक्स सैक्राटा के पारित होने के साथ समकालीन थी, जिसने रोमन लोगों के आक्रमणकारी प्रतिनिधियों के रूप में कार्यालय और जनजाति के पुजारी व्यक्तियों और जनजातियों की स्थापना की। ट्रिब्यून कानूनी रूप से गिरफ्तारी या खतरे के प्रति प्रतिरोधी थे, और इस कानून का उल्लंघन करने वालों की जिंदगी और संपत्ति सेरेस के लिए जब्त कर दी गई थी। 287ईसा पूर्व के लेक्स हॉर्टेंसिया ने शहर और उसके सभी नागरिकों को याचिका दायर किया। __________________________________________ प्राचीन रोमन धर्म और मिथकों में , जेनस ( dʒeɪnəs) नाम का एक देवता है । जो भूत और भविष्यत् काल का ज्ञाता एवं प्रतिनिधि है । ; लैटिन :  ( ja:nus) शब्द ही जेनस शब्द का मूल है । जिसका, उच्चारण है :--  ( ja:nus ) इस शब्द प्रारम्भिक अर्थ है:- 1- द्वार,2- संक्रमण,3- समय, 4-द्वंद्व, आदि और जेनस भी रोमन संस्कृति में द्वार का रक्षक देवता है ! जेनस के तीन भावार्थ हैं द्वार, मार्ग, और अन्त। इसे आम तौर पर मिथकों में दो चेहरों के रूप में भी चित्रित किया जाता है । क्योंकि वह भविष्य और अतीत को समान रूप से देखता है। यह पारम्परिक रूप से विचार किया जाता है कि जनवरी का महीना जेनस ( इयानुअरीस ) के लिए नामित किया गया है । लेकिन प्राचीन रोमन किसानों के अल्मनैक जूनो के मुताबिक जून  ट्यूटलरी (निगरानी) का देवता था। कदाचित् भारतीय पुराणों में भी इस अवधारणा की परिकल्पना की गयी की गणेन ( यानिस) - ज्ञानेश को बुद्धि का और सिद्धि - सिद्धि का देवता बना दिया गया । और जन्म भी गणेश का अद्भुत तरीके से कल्पित कर लिया । देखें👇🌷🐘 __________________________________________.    शिवपुराण के अनुसार स्नान करते समय पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को जन्म दिया। इसके अलावा  उनके सिर कटने की कथा भी शिव पुराण में अलग और ब्रह्मवैवर्त पुराण में अलग -अलग है। शिवपुरण के अनुसार जब शिव ने द्वार के अन्दर प्रवेश करना चाहा तो गणेश ने शिव को रोका ! तो शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया था, और ब्रह्मवैवर्त पुराण में गणेश के बारे में बताया गया है कि शनि की टेढ़ी नजर गणेश जी के सिर पर पड़ने से उनका सिर कट गया था। अब कथाऐं कितनी काल्पनिक हैं जानिए ! शिव पुराण के अनुसार, देवी पार्वती ने एक बार शिवजी के गण नन्दी के द्वारा उनकी आज्ञा पालन  में त्रुटि के कारण अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं। देवी पार्वती ने यह भी कहा कि मैं स्नान के लिए जा रही हूं। कोई भी अंदर न आने पाए। थोड़ी देर बाद वहां भगवान शंकर आए और देवी पार्वती के भवन में जाने लगे। यह देखकर उस बालक ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। बालक का हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। देवी पार्वती ने जब यह देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गईं। उनकी क्रोध की अग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब भगवान शंकर के कहने पर विष्णु एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। तब भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए। देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, गणेश के जन्म के बाद जब सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए कैलाश पहुंचे। तब शनिदेव भी वहां पहुंचे, लेकिन उन्होंने बालक गणेश की ओर देखा तक नहीं। माता पार्वती ने इसका कारण पूछा तो शनिदेव ने बताया कि मुझे मेरी पत्नी ने श्राप दिया है कि मैं जिस पर भी दृष्टि डालूंगा, उसका अनिष्ट हो जाएगा। इसलिए मैं इस बालक की ओर नहीं देख रहा हूं। तब पार्वती ने शनिदेव से कहा कि यह संपूर्ण सृष्टि तो ईश्वर के अधीन है। बिना उनकी इच्छा से कुछ नहीं होता। अत: तुम भयमुक्त होकर मेरे बालक को देखो और आशीर्वाद दो। माता पार्वती के ऐसा कहने पर जैसे ही शनिदेव ने बालक गणेश को देखा तो उसी समय उस बालक का सिर धड़ से अलग हो गया। बालक गणेश की यह अवस्था देखकर माता पार्वती विलाप करने लगी। माता पार्वती की यह अवस्था देखकर भगवान विष्णु ने एक हाथी के बच्चे का सिर लाकर बालक गणेश के धड़ से जोड़ दिया और उसे पुनर्जीवित कर दिया। ये हैं भारतीय पुराणों की मनगढ़न्त कथाऐं जो रोमन देवता जेनस के आधार पर सृजित हुई हैं ।आइए जाने जेनस के विषय में भी 👇🐞 रोमन भाषा में जेनस का मूल अर्थ द्वार (Door)है । और यानम्,  गतिं अथवा गर्तिं जैसे शब्द  वैदिक भाषा में द्वार के लिए प्रचलित थे । यानम् मार्ग या द्वार के अर्थ में था । संस्कृत भाषा में द्वारम् शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है ।(द्वरति निर्गच्छति गृहाभ्यन्तरादनेनेति । ( द्वृ घञ् ) अर्थात्  घर के भीतर से जिसके द्वारा बाहर निकला जाय वह द्वार: है । --- पर्य्यायः वाची रूप में 1-निर्गमनम् । 2-अभ्युपायः । इति मेदिनी कोश ।  ४८ पर्य्यायः ।१ द्वाः २ प्रतीहारः ३ । इत्यमरः कोश । २ । ३ । १६ ॥ तथा  वारकम् ४ । इति शब्दरत्नावली ब्रह्मवैवर्त्त पुराणों में देखें👇 ॥ गृहिणां शुभदं द्वारं प्राकारस्य गृहस्य च । न मध्यदेशे कर्त्तव्यं किञ्चिन्न्यूनाधिकं शुभम् ॥ इति ब्रह्मवैवर्त्ते श्रीकृष्णजन्मखण्डम् ॥ अमरकोशः में द्वार के पर्य्यायः वाची निम्न हैं । द्वार नपुं।  द्वारम्  समानार्थक:द्वा, द्वारम्,प्रतीहार,निर्यूह , (निर्गमनम्,) (यानम् )। 2।2।16।1।2  स्त्री द्वार्द्वारं प्रतीहारः स्याद्वितर्दिस्तु वेदिका। तोरणोऽस्त्री बहिर्द्वारम्पुरद्वारं तु गोपुरम्.।  वाचस्पत्यम् कोश में तारानाथ वाचस्पत्यम् व्युत्पत्ति करते हैं । '''द्वार''  नपुंसकलिंग-( द्वृ णिच् अच् )  १ गृहनिर्गमस्थाने। गर्त पुल्लिंग शब्द जो वैदिक सन्दर्भों में द्वार का ही वाचक है । ---- 💐 भूमि में (किया गया) गड्ढा, श्रौत सूत्र और कोषितकी (संहिता) में II 514 ।। गर्त भी प्रारम्भिक रूप में द्वार वाचक था । जैसा कि यूरोपीय भाषाओं में आज भी प्राप्त है । देखें निम्न रूपों में 👇 __________________________________________ From Middle English (M.E.)gate, gat, ȝate, ȝeat , from Old English (O.E.)gæt, gat, ġeat (“a gate, door”), from Proto-Germanic *gatą (“hole, opening”)  (compare Old Norse gat, Swedish and Dutch gat, Low German Gaat, Gööt), from Proto-Indo-European { ǵʰed} -( गर्त )(to defecate) (compare Albanian dhjes, Ancient Greek χέζω (khézō), Old Armenian ձետ (jet, “tail”), Avestan  (zadah, “  back part of body ”)🌸🌸 ______________________________________ अर्थात् मध्य अंग्रेजी भाषा में गेट, गीट शब्द, (ȝate, ȝeat) तो पुरानी अंग्रेज़ी में gæt, gat, ġeat ("गेट, दरवाजा के अर्थ में ") आद्य-जर्मनिक भाषा में  gatą का अर्थ("छिद्र अथवा खोलने की क्रिया") के रूप में  (पुरानी  नॉर्स भाषा में गेट रूप, स्वीडिश और डच की तुलना करें तो वहाँ भी यही रूप गेट है । निम्न-जर्मन में गैट, गौट दौनों रूप प्रोटो-इंडो-यूरोपीय आद्य-भारोपीय रूप  ǵʰed- गर्त या घात ("टूटा") है । (अल्बेनियन भाषा में धजे, प्राचीन यूनानी χέζω (खेज़ो), पुरानी अर्मेनियाई ձետ (जेट, "पूंछ"), अवेस्ता ए जन्द़ में तुलना करें (ज़दाह, शरीर का पश्चभाग शब्द से ))। __________________________________________ संस्कृत भाषा में यानम् , गतिं जैसे शब्द  द्वार वाचक थे जैसे (यान्त्यनेनेति यानम् )अर्थात् जिसके माध्यम से अन्दर जाया जाता है वह यानम् निर्गमनम् है ।।   या धातु ल्युट् (अन ) संज्ञात्मक प्रत्यय के योगेश से नपुंसकलिंग रूप यानम् :- अर्थात् हाथी ,घोड़ा रथ , डोला द्वार आदि इसके पर्याय हैं । हस्त्यश्वरथदोलाद्वारादि। तत्पर्य्यायः ।  ________________________________________ १ वाहनम् २ युग्यम् ३ पत्रम् ४ तोरणम् (द्वार)५ । इति अमर कोश । २ ।८ ।५८॥   विमानम् ६ चङ्कुरम् ७ यापनम् ८ गतिमित्रकम् ९। इति शब्दरत्नावली ॥ 🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰🏰 ✍🌷🌷🌷 और यही शब्द लैटिन में इयानस् हुआ है ग्रीक भाव से जेनस अथवा इयानवस( IANVS) शुरुआती दौर में , द्वार, संक्रमण (निर्गमन), समय, द्वंद्व,  मार्ग, और समापन के देव रूप में प्रतिष्ठित हैं। रोमन सास्कृतिक चयनकर्ता के सदस्य वैटिकन संग्रहालयों में जेनस बिफ्रॉन का प्रतिनिधित्व करने वाली मूर्ति जिसके दुसरे नाम इयानुस्पेटर ("जेनस फादर"), इयानस क्वाड्रिफ्रॉन ("जेनस चतुर फ्रॉन"), इयानस बिफ्रॉन ("जेनस ट्विफस्ड") आदि हैं । संक्रमण के देवता के रूप में, उनके पास जन्म और यात्रा और विनिमय से संबंधित कार्यों का कलाप (समूह) थे, और पोर्टनस के साथ उनके सहयोग में, एक समान बंदरगाह और द्वार - पथ  देवता, ________________________________________ जेनस वह यात्रा, व्यापार और शिपिंग से चिंतित था। जेनस के पास कोई फ्लामेन जर्मन रूप ब्रामिन या ईरानी रूप बरहमन और वैदिक रूप ब्राह्मण अर्थात् विशेष पुजारी ( sacerdos ) नहीं था, लेकिन पवित्र संस्कार के राजा ( रेक्स) बलिदान  ने अपने समारोहों को स्वयं किया। पूरे साल धार्मिक समारोहों में जेनस की सर्वव्यापी उपस्थिति दर्ज रही । __________________________________________ इस प्रकार, किसी भी विशेष अवसर पर सम्मानित मुख्य देवता के बावजूद, प्रत्येक समारोह की शुरुआत में जेनस को गंभीर रूप से बुलाया गया था। जैसे भारतीयों में गणेश की प्रथम वन्दना अनिवार्य है ।   प्राचीन यूनानियों के पास जेनस के बराबर का कोई देवता नहीं था, जिन्हें रोमन वालों  ने अपने आप के रूप में स्पष्ट रूप से घोषित किया था। व्युत्पत्ति के दृष्टि -कोण से  प्राचीन 🐞 शिक्षाओं के  द्वारा तीन जेनस की व्युत्पत्तियाँ प्रस्तावित की गयी थी । उनमें से प्रत्येक से द्वार देवता की प्रकृति के बारे में प्रकाश पड़ता है।  जिनमें पहले व्यक्ति पॉल द डेकॉन द्वारा दिए गए कैओस ( सृष्टि की निराकार अवस्था) की परिभाषा पर आधारित है: हाइटेम , हाइरे , खुले रहें , जिसमें से शब्द इयानस की प्रारंभिक आकांक्षा के अभाव से प्राप्त होगा। इस व्युत्पत्ति विज्ञान में, कैओस की धारणा देव की मूलभूत प्रकृति को परिभाषित करेगी। निगिडियस फिगुलस द्वारा प्रस्तावित एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार यह मैक्रोबियस से संबंधित है। ईनस यूफनी के लिए डी के अतिरिक्त अपोलो और डायना इना होगा। यह स्पष्टीकरण एबी कुक और जेजी फ्रैज़र द्वारा स्वीकार किया गया है। कि  यह जैनस के सभी आकस्मिकताओं को उज्ज्वल आकाश, सूर्य और चंद्रमा का समर्थन प्राप्त होता है। यह एक पूर्व  डियानस का अनुमान लगाता है। द्वार शब्द यूरोपीय भाषाओं में भी प्रकाशित है । प्रोटो-इंडो-यूरोपीय * दवर- ("द्वार, दरवाजा ) से  साम्य दर्शनीय है । प्रोटो-जर्मनिक भाषा में  दुर्ज़ से साम्य तो पुरानी अंग्रेज़ी में डॉर (door) ("दरवाजा"), से साम्य मध्य अंग्रेजी मे भी डोर, है । सजातीय रूप  में सेटरलैंड फ़्रिसियाई  दोर ("दरवाजा"), पश्चिमी फ़्रिसियाई  दोर ("दरवाजा"), और डच दीर ("दरवाजा"), निम्न जर्मन दरवाजा, डोर ("दरवाजा"), जर्मन तुर ("दरवाजा"), तोर (" गेट "), डेनिश और नॉर्वेजियन दोर (" दरवाजा "), आइसलैंडिक डायर (" दरवाजा "), लैटिन फोरिस, (पुरस्) यूनानी θύρα (thúra), अल्बेनियन derë बहुवचन रूप । डायर, कुर्द دررگە (derge), derî, फारसी در (Dar), रूसी дверь (dver'), संस्कृत भाषा में द्वार  / دوار (द्वार), अर्मेनियाई դուռ (duṙ), आयरिश दोरास, लिथुआनियाई (durys) दुरिस आदि रूपों द्वार शब्द ही विद्यमान हैं । हिन्दुस्तान की व्रज उप भाषाओं में देहरी शब्द में द्वार का रूप है । यूरोपीय भाषाओं में आर्टिक्यूलेशन इयानस-इनिटोरस का अर्थ गेट्स ऑफ़ हेवन (स्वर्ग का द्वार )  यह शब्द सिनलप्लेड्स के धर्मशास्त्र से जुड़ा हुआ हो सकता है जो स्वर्ग पर एक तरफ और पृथ्वी पर या अंडरवर्ल्ड पर खुलता है। अन्य पुरातात्विक दस्तावेजों से  यद्यपि यह स्पष्ट हो गया है कि एट्रस्कैन संस्कृति के पास जनसांख्यिकीय रूप से जेनस से संबंधित एक और देवता था: कुल्शांश, जिनमें से कॉर्टोना का विकास हुआ । (अब कॉर्टोना संग्रहालय में) का कांस्य प्रतिमा के रूप में  है । जबकि जेनस दाढ़ी वाले वयस्क हैं, कुल्शन एक अनजान युवा हो सकते हैं, जिससे हर्मीस के साथ उनकी पहचान संभव हो सकती है। उसका नाम दरवाजे और द्वारों के लिए एट्रस्कैन शब्द से भी जुड़ा हुआ है। गैर-रोमन देवताओं के साथ एसोसिएशन विरासत ---- मध्य युग में, जेनस को जेनोआ के प्रतीक के रूप में भी लिया गया था , जिसका मध्ययुगीन लैटिन नाम इयानुआ था । जन्मजात विकार के साथ बिल्लियों डिप्रोसोपस , जो चेहरे को आंशिक रूप से या सिर पर पूरी तरह से डुप्लिकेट (द्वतिकरण )करने का कारण बनता है, उसको ही जेनस बिल्लियों के नाम से जाना जाता है । जेनस का साहित्य में विवरण--- रोमन और ग्रीक लेखकों ने जेनस को एक विशेष रूप वर्णन किया है । यह रोमन ने निगरानी का अधिष्ठात्री देवता बनाए रक्खा  था।  शिलिंग के अनुसार यह दावा अत्यधिक महत्पूर्ण है ।  कि कम से कम जहां तक ​​प्रतीकात्मकता का संबंध है। __________________________________________ सुमेरियन और बेबीलोनियन कला में दो चेहरों वाला एक देवता बार-बार प्रकट होता है। एक सिलेंडर सील देवताओं का चित्रण Ishtar (स्त्री ) Shamash (शम्स) , Enki (एनकी), और Isimud इस्मुद जो (लगभग 2300 ई.पू.) में दो चेहरे के साथ दिखाया गया है प्राचीन सुमेरियन देवता इस्मुद को आम तौर पर विपरीत दिशाओं में सामना करने वाले दो चेहरों के साथ चित्रित किया गया था। इस्मुद के सुमेरियन चित्रण अक्सर प्राचीन रोमन कला में जेनस के विशिष्ट चित्रण के समान ही होते हैं । जेनस के विपरीत, हालांकि, इस्मुद द्वार का देवता नहीं है। इसके बजाय, वह पानी और सभ्यता के प्राचीन सुमेरियन देवता, एनकी का संदेशवाहक है। इस्मुद की छवि का पुनरुत्पादन, जिसका बेबीलोनियन नाम उसिमु था, सुमेरो-एक्काडिक कला में सिलेंडरों पर यह  एच. फ्रैंकफोर्ट के काम के रूप में  सिलेंडर मुहरों में पाया जा सकता है । देखें 👇 _________________________________________ (लंदन सन् 19 3 9) विशेष रूप से पृष्ठ संख्या  प्लेटों में। 106, 123, 132, 133, 137, 165, 245, 247, 254. प्लेट XXI पर, सी, Usmu एक संतृप्त भगवान को पूजा करने के दौरान देखा जाता है। हर्मेस से संबंधित देवताओं के जेनस जैसे सिर ग्रीस में पाए गए हैं, शायद एक यौगिक भगवान का सुझाव देते हैं। विलियम बेथम ने तर्क दिया कि पंथ मध्य पूर्व से आया था और वह जेनस बालदीस के बाल-इयनियस या बेलिनस से मेल खाता है, जो बेरोसस के ओन्स के साथ एक आम उत्पत्ति साझा करता है । पी.ग्रिमल ने जेनस को द्वार के रोमन देवता और एक प्राचीन सिरो-हिट्टाइट यूरेनिक ब्रह्माण्ड भगवान के बारे में माना। पारम्परिक रूप से नुमा के रूप में वर्णित Argiletum के जनस की रोमन मूर्ति, शायद 8 वीं शताब्दी ईसा पूर्व ग्रीक लोगों की तरह, एक प्राचीन तरह का xoanon था। _______________________________________ स्कैंडिनेवियाई देवता हेमडलर से भी साम्य दर्शनीय है। हेमडलर की धार्मिक विशेषताएं जेनस के समान दिखती हैं: अन्तरिक्ष और समय दोनों की वह सीमाओं पर खड़ा है। उसका निवास स्वर्ग की चोटी पर, पृथ्वी की सीमाओं पर है; वह देवताओं का संरक्षक है; उसका जन्म समय की शुरुआत में है; वह मानव जाति का पूर्वज है, वर्गों का जनयितृ और सामाजिक आदेश का संस्थापक है। फिर भी वह प्रभु देवत्व से हीन है Oðinn : माइनर Völuspá Oðinn को अपने रिश्ते को परिभाषित करता है लगभग उन लोगों के रूप में एक ही शर्तों से जिसमें Varro परिभाषित करता है ; कि जानूस, के देवता की प्रथम बृहस्पति, के देवता को सुम्मा : Heimdallr के रूप में पैदा होता है जेठा ( primigenius , वर einn borinn í árdaga), ओडिन्न सबसे महान ( maximus , var einn borinn öllum meiri ) के रूप में पैदा हुआ है ।   इसके अनुरूप ईरानी सूत्रों एक में पाया जा सकता है। अवेस्ता ए जन्द़ में (गाथा ) प्राचीन Latium के अन्य शहरों शुरुआत की अध्यक्षता के समारोह में शायद संज्ञा सेक्स के अन्य देवताओं, विशेष रूप से द्वारा किया गया था विरासत ----- मध्य युग में, जेनस को जेनोआ के प्रतीक के रूप में भी लिया गया था , जिसका मध्ययुगीन लैटिन नाम इयानुआ था , साथ ही साथ अन्य यूरोपीय समुदाय भी थे। साहित्य में शेक्सपियर के ओथेलो के अधिनियम I दृश्य 2 में , इगो ने अपने प्रीमियर प्लॉट की विफलता के बाद शीर्षक के चरित्र को पूर्ववत् करने के बाद जेनस के नाम का आह्वान किया। में 1987 थ्रिलर उपन्यास जानूस मैन ब्रिटिश उपन्यासकार द्वारा रेमंड हेरोल्ड सॉकिन्स "जानूस आदमी जो पूर्व और पश्चिम दोनों का सामना कर रहा" -, जानूस शब्द  ब्रिटिश सीक्रेट इंटेलिजेंस सर्विस में घुसपैठ की एक सोवियत एजेंट के लिए एक रूपक के रूप में प्रयोग किया जाता है। _________________________________________.     💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 उपर्युक्त उद्धरणों का प्रस्तुति करण से हमारा मन्तव्य भारतीय पुराणों में गणेश की परिकल्पना के समीकरण पर ही है । भारतीयों के मिथकों में गणेश एक पौराणिक  देव हैं, जो निश्चित-रूप से भारत में आगत देव -संस्कृति की  रोमन जेनस के सादृश्य पर कल्पना मात्र है। गणेश काल्पनिक ही हैं.. यह पुष्टि करने के लिये किसी प्रमाण की आवश्यकता नही है । अपितु  उनका विवादित-रूप से जन्म होना और हस्तिमुख  होना ही काफी है। क्यों कि ये जैविक सृष्टियाँ वैज्ञानिक व प्राकृतिक सिद्धान्तों की धज्जीयाँ उड़ा देती हैं । वैसे गणेश गजमुख कैसे हुये यह भी बड़ी अवैज्ञानिक कथा है, और संयोग से इस कथा पर समग्र पौराणिक प्रसंग एकमत एवं संगत नही है। जन साधारण अशिक्षित व निम्न- मध्य आर्धिक स्तर पर जीवन यापन करने वाले कहते में ये धारणाऐं व्याप्त हैं । सभी पुराणों में गणेश की पृथक -पृथक व्युत्पत्ति है जो कि इनकी मिथ्या वादिता को सूचित करती है । क्यों कि असत्य बहुरूपिया व क्षणिक ही है । जबकि  सत्य केवल एक रूप में है । जिसका कोई विकल्प नहीं होता है । वह केवल एक रूप होता है। जो कथा लगभग सभी जानते हैं और बहुचर्चित भी है, वह शिवपुराण में इस प्रकार से है। जिसे हम पूर्व में वता चुके हैं । _________________________________________☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸☸ एक बार भगवान शिव कैलाश छोड़कर कहीं गये थे, और इसी अवधि मे पार्वती ने नहाते हुये अपने बदन पर लगे उबटन से एक बालक की मूर्ति बना दी, तथा उसमे प्राण डालकर अपना पुत्र बना लिया! पार्वती ने उसे अपनी पहरेदारी के लिये अपने स्नान-कक्ष के बाहर खड़ा कर दिया, और जब शिव वापस आये तो उस बालक ने उन्हे कक्ष मे प्रवेश करने से रोक दिया! अतः क्रोधित शिव ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया, और फिर पार्वती का शोक मिटाने के लिये एक हाथी के बच्चे का सिर लाकर बालक के धड़ से जोड़ दिया! इस तरह बालक (गणेश) गजमुख हो गये। अब इस आख्यान में भी कई प्रश्न आशंकित व सनेदेह का सर्जन करते हैं । जैसे कि- त्रिकाल दृष्टा शिव  पार्वती के पुत्र को क्यों नहीं पहचान पाते हैं ? और गणेश का मस्तक काट कर हाथी का क्यों लगाया और कैसे ? अब भक्तों ने इस कथा को शिव की लीला  और दैवीय-चमत्कार मानकर ऊहा-पोह  उचित नही समझा, वराहपुराण के अध्याय-२३  मे वर्णित  है-- कि एक बार ब्रह्मा समेत समस्त देवता किसी विषय पर मन्त्रणा लेने के लिये शिव के पास आये; उन देवताओं की किसी बात पर शिव को हास्य हुआ और उसी हास्य से एक सुन्दर बालक का जन्म  हुआ । वह बालक अत्यधिक सुन्दर था कि उस बालक की सुन्दरता देखकर पार्वती उस पर मोहित हो गयी ! उनका रति भावना जाग्रत हो गयी शिव को लगा कि मुझसे ही प्रादुर्भूत बालक इतना आकर्षक है कि मेरी पत्नी उस पर आशक्त हो गयी है। शिव ने विचार किया "स्त्री स्वाभाव चञ्चल होता ही है, और मेरी पत्नी भी लोकलाज त्याग कर इस पर मुग्ध हो गयी है" तभी .. शंकर  को बड़ा क्रोध आया और उन्होने उस बालक को श्राप दिया कि- "हे कुमार! तुम्हारा मुख हाथी के मुख जैसा हो जाये और पेट भी लम्बा हो जाये" शिव के श्राप से बालक गजमुख हो गया, और बाद मे यही बालक गणेश हुये। अब इस कथा की काल्पनिकताऐं सार हीन व कार्य-कारण के सिद्धान्तों की धज्जीयाँ उड़ा देती हैं पार्वती स्वयं जगदम्बा है, फिर वो इतनी लज्जाहीन कैसे हो सकती हैं ? कि अपने पति के सामने ही किसी बालक पर आशक्त हो कर उससे रति क्रिया करनी चाहें ? क्या इससे उनका पतिव्रत धर्म नष्ट नही हुआ? और यदि बालक पर पार्वती मोहित हुई थी तो शिवजी को उन्हे ही दण्ड देना चाहिये था। निर्दोष बालक को शिव ने श्राप दिया, जो न्याय नही था। वस्तुत वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड में भी राम को सम्बूक का बध करते हुए ऐसे ही कार्य-कारण के सिद्धान्तों से हीन कथाओं के रूप में वर्णित किया गया है। गणेश जन्म की इन दोनों कथाओं के अतिरिक्त एक कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण गणेशखण्ड-12 वें अध्याय में आती है, जो निम्न है-👇 शनिदेव को प्राय:अन्य देवता बहुत चिढ़ाते थे कि आपकी दृष्टि जहाँ पड़ती है, वहाँ सब अमंगल ही होता है! शनिदेव इससे बहुत उदास-मना थे और इसी उदासी के साथ एक दिन वे कैलाश पर्वत पर आये! उस समय शिव वहाँ नही थे और पार्वती अपने पुत्र गणेश के साथ बैठी  थीं । पार्वती ने शनिदेव की वेदना को  सुना और उनसे निवेदन किया कि वे मेरी  और मेरे पुत्र गणेश की तरफ देखें... शनिदेव ने जैसे ही गणेश को देखा, उनकी तीक्ष्ण दृष्टि से से गणेश का सिर विछिन्न होकर गोलोक (कृष्ण के लोक) मे जा गिरा, और स्कन्ध (धड़) रक्तरञ्जित होकर वहीं तड़पने लगा! यह देखकर पार्वती सिर  पीटकर रुदन करने लगी। तभ विष्णु ने वह रुदन सुना ! औल वह वहाँ प्रकट हुए विष्णु ने सोचा कि कहीं कुछ अनिष्ट न हो जाये अतः वे गरुण पर सवार होकर एक वन में गये और वहाँ से एक हथिनी के बच्चे का सिर सुदर्शन से काट लाये! विष्णु ने उसी सिर को गणेश के धड़ से जोड़ दिया, और उन्हे जीवित कर दिया। तात्पर्य   यह कि शिवपुराण जहाँ कहता है कि यह असम्भव सर्जरी शिव ने किया था वहीं ब्रह्मवैवर्तपुराण इसमे विष्णु का योगदान मानता है। ये विरोधी विवरण ही पुराणों की काल्पनिकताऐं सिद्ध करने में सक्षम हैं । अब हम संस्कृत भाषा में भी मूल उद्धरणों को प्रस्तुत करते हैं ।👇 ________________________________________ गणानामीशः अर्थात् गणना करने वालों में स्वामी। १ स्वनामख्याते देवे २ शिवे च । गणेशोत्पत्तिः इभाननशब्दे ९८१ पृष्ठ संख्या बम्बई संस्करण स्कन्धपुराण गणेश-जन्मखण्ड उक्ता । । उक्ता तस्य वक्रतुण्डकपि- लचिन्तामणिविनायकादिरूपेण प्रादुर्भावकथा तत एवावसेया विस्तरभयान्नोक्ता । गणेशस्य परब्रह्मरूपत्वं नामभेदात् तद्भेदाश्च गणपति तत्त्वग्रन्थे विस्तरेणोक्ता दिग्मात्रमुदाह्रियते । “एष सर्वेश्वरः एष सर्वज्ञः एष भूतपतिरेष भूतलय एष सेतुर्विधरणः प्रधानक्षत्रज्ञपतिर्गणेशः इति” श्रुतिप्रसिद्धसर्वेश्वरादिपदवद्गणेशपदस्य नित्यसिद्धेश्वरपरत्वम् दृश्यते इत्युपकम्य “तस्मात् प्रधानक्षेत्रज्ञपतिर्गणेशः” इति श्रुतेः । “गुणत्रयस्येश्वरोऽसि न नाम्रा त्वं गणेश्वरः” इति विनायामसंहितावचनाच्च गणशब्दाभिहितस्य सत्वादिगुणसं- वातस्य पतिर्गणेश इति सिद्धमित्युक्तम्”  अन्ते च नमः सहमानायेत्याद्यनुवाकैस्तस्य सर्व्वेर्षां नाम्नां सङ्कलनेन एकोननवत्यधिकशतद्वयम् इत्युक्तम् । गणपतिभेदाश्च आगममन्त्रैर्व्वेदमन्त्रैर्बाराधनीया इत्यप्युक्तम् । तन्त्रे तु अन्यथा संख्योक्ता यथा शारदतिलकराघवटीका- याम् “विघ्नेशो विघ्नराजश्च विनायकशिवोत्तमौ । विघ्नकृत् विघ्नहर्त्ता च गणैकदददन्तकाः । गजवक्त्र- निरञ्जनौ कपर्द्दी दीर्घजिह्वकः । शङ्कुकर्णश्च वृषभध्वजश्च गणनायकः । गजेन्द्रः सूर्पकर्णश्च स्यात्त्रि- लोचनसंज्ञकः । लम्बोदरमहानन्दौ चतुर्म्मूर्त्तिसदा- शिवौ । आमाददुर्मुखौ चैव सुमुखश्च प्रमोदकः । एकपादो द्विजिह्वश्च सुरवीरः सषण्मुखः । वरदो वामदेवश्च वक्रतुण्डो द्विरण्डकः । सेनानीर्ग्रामणीर्म्मत्तो विमत्तो मत्तवाहनः । जटी मुण्डी तथा खङ्गी वरेण्यो वृषकेतनः । भक्ष्यप्रियो गणेशश्च मेघनादकसंज्ञकः । व्यापी गणेश्वरः प्रोक्ताः पञ्चाशद्गणपा इमे । तरुणारुणसङ्काशा गजवक्त्रास्त्रिलोचनाः । पाशाङ्कुशवराभीतिहस्ताः शक्तिसमन्विताः” । तेषाञ्च पञ्चाशच्छक्तयस्तत्रोक्ता यथा “ह्रीः श्रीश्च पुष्टिः शान्तिश्च स्वस्तिश्चैव सरस्वती । स्वाहा मेधा कान्तिकामिन्यौ मोहिन्यपि वैनटी । पार्वती ज्वालिनी नन्दा सुयशाः कामरूपिणी । उमा तेजीवती सत्य विघ्नेशानी सुरूपिणी । कामदा मदजिह्वा च भूतिः स्याद्भौतिकासिता । रमा च महिषी प्रोक्ता मञ्जुला च विकर्णपा । भ्रुकुटिः स्यात्तथा लज्जा दीर्घघोणा धनुर्द्वरा । यामिनी रात्रिसंज्ञा च कामान्धा च शशिप्रभा । लोलाक्षी चञ्चला दीप्तिः सुभगा दुर्भगा शिवा । भर्गा च भगिनी चैव भोगिनी शुभदा मता । कालरात्रिः कालिका च पञ्चाशच्छक्तयः स्मृताः । सर्वालङ्करणोद्दीप्ताः प्रियाङ्कस्थाः सुशोभनाः । रक्तोत् लकरा ध्येया रक्तगाल्याम्बरारुणाः” । _______________________________________ गजाननः, पुं० (गजस्य हस्तिन आननं मुखमेव आननं यस्य स: इति गजाननः बहुव्रीहि समास) गणेशः । इत्यमरः कोश। १ । १ । ४१ ॥ (यथा, ब्रह्मवैवर्त्ते गणेशखण्डे ६ अध्याये । “शनिदृष्ट्या शिरश्छेदात् गजवक्त्रेण योजितः । गजाननः शिशुस्तेन नियतिः केन बाध्यते ॥ पुराणान्तरे मतभेदोऽपि दृश्यते यथा, स्कन्दे पुराणे गणेशखण्डे ११ अध्याये । गुरुरुवाच । “अवतारो यदि धृतः साधुत्राणाय भो विभो ! प्रकाशयाशु वदनं सर्व्वेषां शोकनाशनम् ॥ नयस्व सर्व्वदेवानामानन्दं हृदये प्रभो । __________________________________________ शिव उवाच:- । प्रत्युवाच गुरुं पुत्त्रः पार्व्वत्या हीनमस्तकः ॥ शिशुरुवाच । महेशाख्येन राज्ञा ते प्रणतौ चरणौ यदा । तदाशीर्या त्वया दत्ता तस्मै राज्ञे गुरो मुदा ॥ गजयोनौ जनिर्मुक्तिः शिवहस्तादुदीरिता । तत् सर्व्वमभवत् तस्य विद्यते चारुमस्तकः ॥ पूज्यमानः शिवेनास्ते शुण्डादण्डः सुशोभनः । अवतारकरोऽसौ मे गुरोऽस्ति भविता मुखम् ॥ शिव उवाच :- आश्चर्य्यपूर्णहृदयो गुरुरूचे पुनः शिशुम् ॥ गुरुरुवाच । भगवत ! विश्वरूपोऽसि त्रिकालज्ञोऽखिलेश्वरः । मया यदुदितं तस्मै त्वया ज्ञातं यतः प्रभो ! ॥ अहमीशस्वरूपं ते परिच्छेत्तुं न च क्षमः । श्रुत्वैव ब्रह्मणः पुत्त्रो नारदस्तत्र चाब्रवीत् ॥ नारद उवाच :-। एवमेवावतीर्णोऽसि हीनमूर्द्धा कथं प्रभो ! । अथवा बालरूपस्य छिन्नं ते केन तच्छिरः ॥ एतन्मे संशयं छिन्धि कृपया परमेश्वर ! ________________________________________ शिव उवाच :-। निपीय नारदीं वाणीमुवाच शिशुरुच्चकैः ॥ शिशुरुवाच । सिन्दूरः कोऽपि दैत्यो मे वायुरूपधरोऽच्छिनत् । अष्टमे मासि सम्पूर्णे प्रविश्योमोदरं शिरः ॥ तमिदानीं हनिष्येऽहं गजास्यं साम्प्रतं द्बिज  ।  शिव उवाच । श्रुत्वैव नारदः प्राह शिशुरूपिणमीश्वरम् ॥ नारद उवाच । अकिञ्चिज्ज्ञा वयं देव ! योजनेऽस्य मुखस्य ते । त्वमेव च स्वभावेन मखमेतन्नियोजय ॥ शिव उवाच । वदतीत्थं मुनिर्यावत् तावत् स ददृशेऽखिलैः । सर्व्वावयवसम्पूर्णो गजानन उमासुतः ॥ किरीटकुण्डलधरो युगबाहुः सुलोचनः । वामदक्षिणभागे च सिद्धिवृद्धिविराजितः ॥ दृष्ट्वा विनायकं स्कन्द ! तथाभूतं निजेच्छया । हर्षेणोत्फुल्लनयना देवाः सर्व्वे तदाब्रुवन् ॥ गजानन इति ख्यातो भविताऽयं जगत्त्रये । एवं भाद्रचतुर्थ्यां स अवतीर्णो गजाननः ”) अमरकोशः में गणेश के पर्य्यायः वाची रूप निम्न प्रकार हैं । गजानन पुं। गणेशः  समानार्थक:विनायक,विघ्नराज,द्वैमातुर,गणाधिप,एकदन्त,हेरम्ब,लम्बोदर,गजानन  1।1।38।2।4  विनायको विघ्नराजद्वैमातुरगणाधिपाः। अप्येकदन्तहेरम्बलम्बोदरगजाननाः॥  वाचस्पत्यम् '''गजानन'''¦ पु० गजस्याननमाननं यस्य।  १ गणेशे अमरः। इभानन १ पृ॰ दृश्यम्। स्कन्दपुराण गणेशखण्ड   तस्य गजाननता वर्णिता तत्र गणेशस्य मस्तक-शून्यतयोत्पत्तौ पुरा शिवच्छिन्नेन कैलासे स्थापितेन गजासुरमस्तकेन मुखयोजनं तेन कृतमित्युक्तं यथा  “गुरुरुवाचअबतारो यदि धृतः साधुत्राणाय भो विभो! प्रकाशयाशु वदनं सर्वेषां शोकनाशनम्। नयस्व सर्वदेवानामानन्दं हृदयं प्रभो! शिव उवाच। प्रत्युवाच गुरुंपुत्रः पार्वत्या हीनमस्तकः। शिशुरुवाच। महेशाख्येनराज्ञा ते प्रणतौ चरणौ यदा। तदाशीर्या त्वया दत्तातस्मै राज्ञे गुरो! मुदा। गजयोनौ जनिर्मुक्तिः शिव-हस्तादुदीरिता। तत्सर्वमभवत् तस्य विद्यते चारुम-स्तकः। पूज्यमानं शिवेनास्ते शुण्डादण्डः शुशोभनः। अवतारकरोऽसौ मे गुरोऽस्ति भविता मुखम्। शिवौवाचआश्चर्यपूर्णहृदयो गुरुरूचे पुनः शिशुम्। गुरुरुवाच। भगवन्! विश्वरूपोऽसि त्रिकालज्ञोऽखिलेश्वरः। मया यदुदितं तस्मै त्वया ज्ञातं यतः प्रभो!। अहमीशस्वरू-पन्ते परिच्छेत्तुं न च क्षमः। श्रुत्वैवं ब्रह्मणः पुत्रोनारदस्तव्र चाव्रवीत्। नारद उवाच।  “एवमेवावतीर्णोऽसि हीनमूर्द्धा कथं प्रभो!। अथवाबालरूपम्य छिन्नन्ते केन तच्छिरः। एतन्मे संशयं छिन्धिकृषया परमेश्वर! शिव उवाच। निपीय नारदींवाणीमुवाच शिशुरुच्चकैः। शिशुरुवाच। (यथा  महाभारते।१।१।७३। “काव्यस्यलेखनार्थायगणेशःस्मर्य्यतांमुने ! ) तत्पर्य्यायः।विनायकः२विघ्नराजः७द्वैमातुरः४गणाधिपः५एकदन्तः६हेरम्बः७लम्बोदरः८गजाननः९।इत्यमरः।१।१।४०॥विघ्नेशः१०पर्शुपाणिः११गजास्यः१२आखुगः१३।इतिहेमचन्द्रः।२।१२१॥शूर्पकर्णः१४।इतिब्रह्मवैवर्त्तपुराणम्॥ तस्योत्पत्तिः। तत्रपार्व्वतींप्रतिवृद्धब्राह्मणरूपश्रीकृष्णवाक्यम्।यथा  -- “नभवेद्विष्णुभक्तिश्चविष्णुमाये त्वयाविना।त्वद्व्रतंलोकशिक्षार्थंत्वत्तपस्तवपूजनम्॥सर्व्वेज्याफलदात्रीत्वंनित्यरूपासनातनी।गणेशरूपःश्रीकृष्णःकल्पेकल्पेतवात्मजः॥त्वत्क्रोडमागतःक्षिप्रमित्युक्त्वान्तरधीयत।कृत्वान्तर्द्धानमीशश्चबालरूपंविधायसः॥जगामपार्व्वतीतल्पंमन्दिराभ्यन्तरस्थितम्।तल्पस्थेशिवबीर्य्येचमिश्रितःसबभूवह॥ददर्शगेहशिखरंप्रसूतबालकोयथा।शुद्धचम्पकवर्णाभःकोटिचन्द्रसमप्रभः॥सुखदृश्यःसर्व्वजनैश्चक्षूरश्मिविवर्द्धकः।अतीवसुन्दरतनुःकामदेवविमोहनः॥मुखंनिरुपमंबिभ्रत्शारदेन्दुविनिन्दकम्।सुन्दरेलोचनेबिभ्रत्चारुपद्मविनिन्दके॥ओष्ठाधरपुटंबिभ्रत्पक्वविम्बविनिन्दकम्।कपालञ्चकपोलन्तदतीवसुमनोहरम्॥नासाग्रंरुचिरंबिभ्रत्खगेन्द्रचञ्चुनिन्दकम्।त्रैलोक्येषुनिरुपमंसर्व्वाङ्गंविभ्रदुत्तमम्॥शयानःशयनेरम्येप्रेरयन्हस्तपादकम्॥” तस्यशनैश्चरदर्शनात्मस्तकविनाशःविष्णुकर्त्तृकगजमस्तकसंयोगश्चयथा  -- “साचदेववशीभूताशनिंप्रोवाचकौतुकात्।पश्यमांमत्शिशुमितिनियतिःकेनवार्य्यते॥पार्व्वतीवचनंश्रुत्वासोऽनुमेनेहृदास्वयम्।पश्यामिकिंनपश्यामिपार्व्वतीसुतमित्यहो॥बालंद्रष्टुंमनश्चक्रेनबालमातरंशानि।विषण्णमानसःपूर्ब्बंशुष्ककण्ठौष्ठतालुकः॥सव्यलोचनकोणेनददर्शचशिशोर्मुखम्।शनिश्चदृष्टिमात्रेणचिच्छेदमस्तकंमुने ! ॥विस्मितास्तेसुराःसर्व्वेचित्रपुत्तलिकायथा।देव्यश्चशैलागन्धर्व्वाःशिवःकैलासवासिनः॥तान्सर्व्वान्मूर्च्छितान्दृष्ट्वाचारुह्यगरुडंहरिः।जगामपुष्पभद्रांसउत्तरस्यांदिशिस्थिताम्॥पुष्पभद्रानदीतीरेददर्शकाननस्थितम्।गजेन्द्रंनिद्रितंतत्रशयानंहस्तिनीयुतम्॥शीघ्रंसुदर्शनेनैवचिच्छेदतच्छिरोमुदा।स्थापयामासगरुडेरुधिराक्तंमनोहरम्॥आगत्यपार्व्वतीस्थानंबालंकृत्वास्ववक्षसि।रुचिरंतच्छिरःकृत्वायोजयामासबालके॥ब्रह्मस्वरूपोभगवान्ब्रह्मज्ञानेनलीलया।जीवनंजीवयामासहूंकारोच्चारणेनच॥” इतिब्रह्मवैवर्त्तपुराणम्॥ ॥अस्यध्यानम्। “खर्व्वंस्थूलतनुंगजेन्द्रवदनंलम्बोदरंसुन्दरंप्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।दन्ताघातविदारितारिरुधिरैःसिन्दूरशोभाकरंबन्देशैलसुतासुतंगणपतिंसिद्धिप्रदंकामदम्॥” इतिपुराणम्॥ ॥ध्यानान्तरंयथा  -- “सिन्दूराभंत्रिनेत्रंपृथतरजठरंहस्तपद्मैर्दधानंदन्तंपाशाङ्कुशेष्टान्युरुकरविलसद्बीजपूराभिरामम्।बालेन्दुद्योतमौलिंकरिपतिवदनंदानपूरार्द्रगण्डंभोगीन्द्राबद्धभूषंभजतगणपतिंरक्तवस्त्राङ्गरागम्॥” इतितन्त्रसारः॥ (तस्यनमस्कारमन्त्रोयथा  --     “देवेन्द्रमौलिमन्दारमकरन्दकणारुणाः।विघ्नंहरन्तुहेरम्बचरणाम्बुजरेणवः॥ इतिपूजापद्धतिः॥) एकपञ्चाशद्गणेशाः। यथा  “विघ्नेशोविघ्नराजश्चविनायकशिवोत्तमौ।विघ्नकृत्विघ्नहर्त्ताचगणैकद्बिसुदन्तकाः॥गजवक्त्रनिरञ्जनौकपर्द्दीदीर्घजिह्वकः।शङ्ककर्णश्चवृषभध्वजश्चगणनायकः॥गजेन्द्रःसूर्पकर्णश्चस्यात्त्रिलोचनसंज्ञकः।लम्बोदरमहानन्दौचतुर्म्मूर्त्तिसदाशिवौ॥आमोददुर्म्मुखौचैवसुमुखश्चप्रमोदकः।एकपादोद्विजिह्वश्चसुरवीरःसषण्मुखः॥वरदोवामदेवश्चवक्रतुण्डोद्विरण्डकः।सेनानीर्ग्रामणीर्म्मत्तोविमत्तोमत्तवाहनः॥जटौमुण्डीतथाखड्गीवरेण्योवृषकेतनः।भक्षप्रियोगणेशश्चमेघनादकसंज्ञकः॥व्यापीगणेश्वरःप्रोक्ताःपञ्चाशद्गणपाइमे।तरुणारुणसङ्काशागजवक्त्रास्त्रिलोचनाः॥पाशाङ्कुशवराभीतिहस्ताःशक्तिसमन्विताः॥तेषामेकपञ्चाशच्छक्तयश्चयथा  -- “ह्रीःश्रीश्चपुष्टिःशान्तिश्चस्वस्तिश्चैवसरस्वती।स्वाहामेधाकान्तिकामिन्योमोहिन्यपिवैनटी॥पार्व्वतीज्वलिनीनन्दासुयशाःकामरूपिणी।उमातेजोवतीसत्याविघ्नेशानीसुरूपिणी॥कामदामदजिह्वाचभूतिःस्याद्भौतिकासिता।रमाचमहिषीप्रोक्ताशृङ्गिणीचविकर्णपा॥भ्रुकुटिःस्यात्तथालज्जादीर्घघोणाधनुर्द्धरा।यामिनीरात्रिसंज्ञाचकामान्धाचशशिप्रभा॥लोलाक्षीचञ्चलादीप्तिःसुभगादुर्भगाशिवा।भर्गाचभगिनीचैवभोगिनीसुभगामता॥कालरात्रिःकालिकाचपञ्चाशच्छक्तयःस्मृताः।सर्व्वालङ्करणोद्दीप्ताःप्रियाङ्कस्थाःसुशोभनाः॥रक्तोत्पलकराध्येयारक्तमाल्याम्बरारुणाः॥ ” इति शारदातिलक टीकायां राघवभट्टः॥ _________________________________________ भारतीयों  के एक प्रधान देवता जिनका सारा शरीर मनुष्य का है, पर सिर हाथी का सा है । विशेष—इनके चार हाथ और एक दाँत है । तोंद निकली हुई है । सिर में तीन आँखें और ललाट पर अर्धचंद्र है । ये महादेव के पुत्र माने जाते हैं । इनकी सवारी चूहा है । पुराणों में लिखा है कि पहले इनका सिर मनुष्य का सा था; पर शनैश्चर की दृष्टि पड़ने से इनका सिर कट गया । इसपर विष्णु ने एक हाथी के सिर काटकर धड़ पर जोड़ दिया । इसके पीछे ये एक बार परशुराम जी से भिड़े, जिसपर परशुराम जी ने एक दाँत परशु से तोड़ डाला । किसी किसी पुराण में लिखा है कि दाँत रावण ने उखाड़ा था । किसी के मत से वीरभद्र या कार्तिकेय ने दाँत तोड़ा था । इसी प्रकार सिर सटने के विषय में भी मतभेद है । गणेश महादेव के गणों के अधिपति हैं । पुराणों का कथन है कि जो शुभ कार्यों के आरंभ में इनकी पूजा नहीं करता, उसके कामों में ये विघ्न कर देते हैं । इसी लिये समस्त मंगल कामों में इनकी पूजा होती है । यह बड़ें लेखक भी हैं । ऐसा प्रसिद्ध है कि व्यास के महाभारत को सर्व-प्रथम  इन्हीं ने लिखा था । इनके हाथों में पाश, अंकुश, पदम और परशु है । ये हिंदुओं के पञ्चदेवों अर्थात् पाँच प्रधान देवताओं में हैं । पर्य्यायः वाची रूप हैं—विनायक । विघ्नराज । द्वैमातुर । गणाधिप । एकदन्त । हेरम्ब । लम्बोदर । गजानन । विघ्नेश । परशुपाणि । गजास्य । आखुग । शूर्पकर्ण । गजानन । वैदिक ऋचाओं में गणपति को भी विष्णु-इन्द्र रूप माना जा रहा है। ________________________________________ निषुसीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्वि प्रतमं कवीनाम्।         न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे         महामर्क मघवन चित्रम च।। ऋग्वेद 10/112/9 आप अपने समूह में विराजें। कवि आपको अग्रगण्य  कहते हैं। नाना प्रकार के दिव्य प्रकाश (ज्ञान) को प्रकाशित कीजिए। आपके बिना कोई भी काम, कहीं भी नहीं किया जाता है। गणपति को गणों का ईश कहते हैं। _______________________________________ प्रस्तुति करण:- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

10 फरवरी 2018
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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश ____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात्  उन पापकर्म करनेवाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शी अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। बौद्ध

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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

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कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
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श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

13 फरवरी 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________(यादव योगेश कुमार'रोहि)'शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ....-यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषणनवीन गवेषणाओं पर आधारित  🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🌃🌃🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🗼🌅🌅🎠🎠🎠🎠      शूद्र कौन थे ? और इनक

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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

7

आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

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अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
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---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

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सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

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भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
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टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
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इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

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ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
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वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

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क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
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-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

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भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

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करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

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भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
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________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

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संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

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यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

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मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
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सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
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राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

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धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
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आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

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पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
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जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

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"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

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"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
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चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

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भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
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_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

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घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
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यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

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मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
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''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

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वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
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वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

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व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
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भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

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चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

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पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
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पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

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समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
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"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

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भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

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जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

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जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

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शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
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रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

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मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

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भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
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वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

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भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
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भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

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कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
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कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

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कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
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गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

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साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

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श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
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यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

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राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

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राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
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ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

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ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
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आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

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कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
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जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

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कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
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एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
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_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

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चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
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पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

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मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
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हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

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अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
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गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

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उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

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"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
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किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

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छलावा ...

18 फरवरी 2020
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धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

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अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
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कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

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अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

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"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
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घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

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गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
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यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

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बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
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होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

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हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
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हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

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"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

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कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

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भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
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सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

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भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
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श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

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लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
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अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

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नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

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अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
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the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

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इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
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प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

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जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
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जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

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दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

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दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

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आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
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अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

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अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
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____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

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मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
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प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

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गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
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ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

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भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
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जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
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चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

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वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
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ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

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हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
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हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

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यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
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भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

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सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
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महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

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पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
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महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

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दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
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यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

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गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
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गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

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यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
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यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

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🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
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यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

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कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
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भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

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यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

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शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
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  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

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ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
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कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

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शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
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  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

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भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
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भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

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देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
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महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

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गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
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यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

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यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
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यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

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